देवकन्या (भाग-3) – रीमा महेन्द्र ठाकुर : Moral stories in hindi

अब तक—-

विशालपुरी,  उन्नतिशीलता की दृष्टि  धन सम्पदा  से परिपूर्ण  नगरी थी “व्यापारिक दृष्टि  से भारत वर्ष  के सभी राज्य इस नगर से जुडे हुए “ऐतिहासिक  दृष्टि से परिपूर्ण नगर खुद मे बहुत कुछ समेटे हुआ ” था”””उसी विशालपुरी  को पुरी नाम से भी जाना जाता था”””मगध के राजा का,राजनायक  सेनापति दक्षांक  था,जो शूरवीर के साथ साथ साहसी,और बुद्धिमान था””जब महाराज सिद्धार्थ  के पुत्र  कुमार हर्षवर्धन ने वैराग्यवश नगर को त्यागा  तो ,

नगर मे अराजकता फैल गयी””इन सबको देखते हुऐ, आचार्य  ,ने एक नये संघ की स्थापना  की””जिसमे पुरूषो को बांधने के लिऐ सुन्दर युवतियों को गणिका बनाया गया! !

पर दक्षांक  इस बात के खिलाफ थे !

और  उन्होने  संघ का वहिष्कार कर दिया!

आगे””””

पुरी  का वैभव”””

ऊंचे नीचे रास्ते को पार करता हुआ राजनायक, अमरा का हाथ थामे तीव्रगति से आगे बढता जा रहा “”

अमरा के पाव थक चुके थे,

बाबा अब नही चला जाता”””

बस कुछ समय और हम पुरी के नजदीक पहुंच  चुके है””

बाबा, ,भूख भी लगी है,,,

बस कुछ समय और ,जीवन का स्वर्णिम पल आने वाला है””

राजनायक ऐसे ही पूरे मार्ग में अमरा को दिलासा देता हुआ आया था!

उसे पता था,विशालपुरी  ,विलासता का नगर है,वहा हर अनैतिक  चीज से दो चार होना पडता है!

बाबा”””

चौंक गया राजनायक पुत्री की चीख सुनकर, वो पीछे मुडा “”

अमरा जमीन पर बैठी थी””उसके अगूंठे से रक्त निकल रहा था वेदना उसके चेहरे पर साफ नजर आ रही थी!!

राजनायक के मन में  आया की दौडकर पुत्री को गले लगा ले”””पर वो अम्बा को कमजोर नही करना चाहता  था”””

छोटी सी चोट है उठ जाओ””

दक्षांक   का मन ग्यारह वर्ष पीछे  चला गया “” जब उसके अगूंठे की चोट ने उसे अम्बा तक पहुंचाया था”””

और आज एकबार फिर अम्बा के अंगूंठे की चोट  उन्हे  नियति के हाथों जाने कौन सा मार्ग देने वाली है!

अम्बा   बाबा की ओर बेबसी से देखती रही “

आखिर बाबा ऐसा बर्ताव क्यूँ कर रहे है,ऐसा तो पहले कभी नही किया””

बाबा नाराज तो नही है”””अम्बा  के बालमन में ये विचार कोंधा “”

उसने उठने की कोशिश की पर लडखडा  गयी!

आसपास सहारे के लिए  कोई न था!

वो एक बार फिर जमीन पर बैठ गयी”””

अम्बा  ने इधर उधर देखा बाबा नजर न आये””

प्यास से उसका गला सूखने लगा “”

उसे मां की याद आ गयी!

बाबा”””पदचाप सुनकर अम्बा के मुर्झाऐ चेहरे पर खुशी तैर गयी!

उसने गर्दन घुमायी””””””

बाबा उसके सामने आकर  घुटने के बल बैठ गये!

उनके हाथ मे कुछ पत्तियां थी ,जिन्हे वो हथेली पर तेजी से मसल रहे थे”

उन पत्तियों  से कुछ बूंद रस निकल रहा था “

जिसे वो धीरे धीरे चोट वाली जगह पर टपका रहे थे,

रस की बूंदों से रक्त बहना बंद हो गया था!

ये लो””

लौकी के फल से बने कमंडल  से  जल भर कर लाऐ थे बाबा”””

बाबा मेरी कितनी परवाह करते है””

मन ही मन सोचा  अम्बा ने””

जल पीने के बाद अम्बा ने बाबा की ओर ध्यान  से देखा”‘

कितना बदलाव आ गया है न””‘केश श्वेत,चेहरे पर झुर्रिया “

मां के जाने के बाद कितने बदल गये!!!

उसके  मन में पिता  के प्रति  स्नेह उमड पडा “””

वो पिता के गले लग गयी””

बेटी के अलिंगन से राजनायक  दक्षांक की आंखे भर आयी””

पर वो अपने निर्णय पर अडिग रहे”””

अब चले”””अम्बा को खुद से परे करते हुए  राजनायक बोले””

हा बाबा अब मै चल सकती हूं””

अमरा लडखडाते हुऐ खडी हो गयी””

अनायास  पिता का हाथ उसकी ओर बढ गया “

जिसे तुरन्त ही अम्बा ने थाम लिया “””

पिता के हाथ की कंपन अम्बा भाप गयी”, की अब पिता को अम्बा की जरूरत है”””

शाम हो गयी थी,

पुरी मे पहुंचते ही,अम्बा की आंखे चौधिया गयी””

पहली बार इतनी सज्जा सजावट देखी थी वो आवाक रह गयी””

इधर उधर देखते हुऐ  उसे अपनी पीडा याद न रही””

उसके कानों मे जैसे घुघरू बज उठे”””

राजनायक अपनी धुन मे आगे बढते जा रहे थे,,अम्बा  उनके पीछे ,पैर घसीटती हुई चल रही थी!!!

उसने अपने चेहरे को घूघट से ढक रखा था”””

ये रूको”””किसी ने पीछे से आवाज दी”””

राजनायक के पैर जड हो गये”””

उन्होनें पलट कर पीछे देखा”””वहां एक तमोली की दुकान थी”””

वो लकडी के बने खांचे में बैठा ,उसी की ओर देखें जा रहा था””

राजनायक को कुछ याद आया, वो उधर ही बढ गया “”

कहां जा रहे है,,तमोली ने पूछा “”

पुरी ही आया हूं मान्यवर “”

आये कहां से हो”””इस बार तमोली की वाणी मे साफ दंभ झलक रहा था!

पास के अंचल से”””राजनायक  धीमे से बोला”””

दस्यु तो नही हो न ,आजकल पुरी में चोर उच्चके  भेष बदल कर घूमते रहते है””

नही मान्यवर””

वाणी से तो समझदार लगते हो,पर वेशभूषा  शंका के दायरे में खडा करती है!

मान्यवर। समय समय की बात है,पहले आपकी जगह जो महाशय बैठते थे ,शायद वो आपके पिता थे””

ग्लानि इस बात की है की ,आपमें वो अपने संस्कार नही भर पाये””

कटाक्ष साफ झलक रहा था राजनायक के शब्दो मे””

आशय क्या है आपका,तमोली की भृकुटि मे बल पड गये!!

यहां क्या हो रहा है””

दो नवयुवक घोडे पर से उतरकर उनके नजदीक आ गये!!

राजनायक  ने बिना कुछ जबाब दिये पुत्री की ओर देखा “”

जो थकान की वजह से सिर घुटनों मे डालकर जमीन पर बैठ गयी थी!!

क्या मुहं मे दही जमा रखा है”””

दो युवको मे  से एक बोला”””

बनारसी पान खाईऐ,जनाब ,उसको छोडिऐ””

कोई भटका हुआ  मुसफिर है,आश्रय की तलाश में है””

तमोली चापलूसी भरे वचनों से सैनिकों को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश करने लगा “”

कहा से आये””है”

जानाब मुसफिरखाना तक जाना था” राजनायक ने युवक की बातों का जबाब  न देते हुऐ,मुसाफिर खाने का मार्ग पूछा “”

युवक जबाब न पाकर तिलमिला गया “”

वो राजनायक के करीब आ गया! !

ये जितना पूछा जाऐ उतना जबाब दो”””

युवक की बातों से राजनायक का  रक्त गर्म हो गया””

उसका हाथ म्यान मे रखी तलवार  पर कस गया “

उम्र  भले ही मध्य पडाव पर  ,सफर कर रही थी”

पर बाहुबल आज भी वही था!

साथ कौन कौन है”””

मेरी पुत्री और मै”””अम्बा की ओर देखते हुऐ  राजनायक बोला ,अम्बा की याद आते ही, राजनायक की पकड तलवार पर ढीली पड गयी”””

पुत्री का पिता होने की बेबसी साफ उसके चेहरे पर झलक रही थी!!

पुत्री का सौदा करने आये हो”””

इस बार  हसंते हुए  युवक बोला “””

नही””””

चल छोड उस बिचारे को क्यूं परेशान  रहा है”””

दूसरा  युवक पहले वाले युवक से बोला”””

बडी सहानुभूति  हो रही है, संघ रायजादे की कुलवधू बनाना है क्या इसकी पुत्री को”””

अरे इसकी पुत्री  जैसी तो दासी भी न रक्खूं “””वधू से ज्यादा  मुझे दासी की तालाश है!

जरा देख तो ले””शायद तेरे काम की हो”””

मदिरा की गंध उसके मुहं से निकल कर वातावरण  को दुर्गंध पूर्ण कर रही थी

वो ,युवक अमरा के नजदीक जाकर ,उसपर झुक गया “”

उसे अमरा का चेहरा नजर न आया””

अच्छा दाम मिलेगा इसका पुरी के बाजार में,,

वैसे ये तेरी पुत्री  लगती नही ,कहां से उठाकर लाया है!

बस अब बहुत  हो गया “” इस बार राजनायक को क्रोध आ गया!!!

तो आपको क्रोध आ गया, महाशय ,अब आप हम पर वार करेंगें”””

नही ,,पर मै इतना जरूर बताना चाहूंगा, की मै पुरी का पूर्व पदाधिकारी हूं,क्रोध मुझमे भी है,पर तुम लोगों से भिन्न हूं मै,

मेरे साथ मेरी पुत्री है,मै नही चाहता की ,मेरी पुत्री वो सब देखें जिससे मैने उसे इतने वर्षो से दूर रखा””

एक ही सांस मे बिना रूके राजनायक बोलता चला गया “”

तमोली और दोनो युवक उसे अवाक् देखते रहे””

और हा” जिस रायजादे की बात आप कर रहे है,वो मेरे परम मित्र  थे””

चेहरे पर बढ आयी दाढी को पीछे झटकते हुए  दक्षांक  बोला”””

मान्यवर क्षमा करें, पहला युवक हाथ जोडकर याचना से बोला””

पुत्र इसमें क्षमा की बात नही है,””

, बस मुझे मुसफिर खाना जाना है मार्ग बता दो,रात्रि काफी हो गयी है,

मेरी बेटी के पैर मे चोट लगी है,,उसे आराम की सख्त जरूरत है “”

युवक राजनायक का चेहरा बडे गौर से देख रहा था”उसे कुछ याद आया”””

काका””””मै”””हर्षदेव “”

राजनायक ने युवक को चुप रहने का इशारा किया “””

तमोली और दूसरा युवक अपलक मूक से खडे दोनों का वार्तालाप सुन रहे थे!!!

अगला भाग

देवकन्या (भाग-4) – रीमा महेन्द्र ठाकुर : Moral stories in hindi

कृति-

रीमा महेन्द्र ठाकुर “”

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