देवकन्या (भाग-20) – रीमा महेन्द्र ठाकुर : Moral stories in hindi

वैराग्य –

******””

मैने लडखडाते कदमों से ,मठ मे प्रवेश किया”””

वहा काफी भीड थी”””””

सभी मुझे आश्चर्य  से देख रहे थे””””

अचानक  से सबकी आवाजे एकसार  हो कर ,मेरे कानों मे गूजंने लगी”

और मै अचेत हो गयी!!!!!

जब आंख खुली तो मैने देखा सामने,भगवान महावीर ध्यानमुद्रा मे तल्लीन  थी””””मै उठकर उनके चरणो मे गिर पडी”

शरण गच्छामि  भगवन् “””

वो तटस्थ रहे””””

मेरी आंखो   से आंसुओं  का वैग रूकने “का नाम नही ले रहा था””””मै उनके चरणो मे जाने कब तक उसी अवस्था मे पडी रही”””एक पहर बीत चुका था”””

भगवन् ने आंखें खोली”””””देवी”””

उनकी दृष्टि मुझपर पडी ,,मेरी सारी पीडा दूर हो गयी””””

चारों तरफ उजास फैल गया, मेरा मन शांत हो गया, मै घुटनों के बल बैठ गयी,ठंडी हवा मुझे छूकर जा रही थी”””

तभी मेरे सामने अलौकिक  दृश्य  उभरा “””

चारों ओर रक्तपात मचा हुआ था””””कौशम्बी मे जैसे आसमान मे उल्कपात हो रहा था””””बडी रानी पर किसी ने तलवार से वार किया “”” फिर महाराज”””का अंत,,मै चीख उठी””””

फिर मेरी पुत्री””‘का जीवन,,,,मैने डरकर आंखे खोल दी””””

देवी आपकी आयु दीर्घ है,,सह पाओगी ,यदि सहन कर पाओ तो लौट जाओ””””नही भगवन, अब तो लौटने का औचित्य ही नही है,,,मै यही रहूंगी”””परन्तु  यहां “””” स्त्रियों का रहना वर्जित है “”””

भगवन् ये नियम बनाया किसने”””समाज ने न तो ,मै नही मानती”””समाज के नजरिऐ मे स्त्री कुछ नही”””

ठीक है ,,नियम का पालन करने मे डिग तो नही जाओगी”””

कदापि नही भगवन्, ,,तो ये लो अक्षय पात्र””””

देवी तुम प्रथम भिक्षुणी  होगी””कलान्तर मे ,तुम्है देखकर अन्य स्त्रिया भी  वैराग्य का चयन करेगी””””तथास्तु “”””

मेरे देखते देखते भगवन्  फिर ध्यान  मे चले गये”””””

मै वहा से उठकर गंगा नदी मे  प्रवेश कर गयी,,,बाहर आयी तो एक पुरानी कटार पर नजर पडी”””जो शायद तरूणी की थी””” मै कुछ देर कटार को देखकर तरूणी की याद मे रोती रही”””

मैने अपनी  शिखा,को काटकर गंगा मे प्रवाहित कर  दिया”””

और वापस मठ की ओर बढ गयी””””

मुझे देखकर वहा उपस्थित  सभी भिक्षु  मेरे नजदीक आकर प्रणाम करने लगे”””

कुछ समय बाद मुझे वस्त्र  प्रदान किये गये”””””

मेरे अंदर जैसे उर्जा का संचार बढने लगा “””””

कुछ देर मे मैने अनुभव किया की सारे भिक्षु एक ओर जा रहे है ,,मै उनके पीछे चल दी,,,

वो सब वहां जाकर रूक गये ,जहां वटवृक्ष के नीचे बैठे भगवन् उपदेश दे रहे थे”””””

मै भी उनके साथ बैठ गयी,,तभी एक भिक्षु ने मुझे  कुछ फल दिये”””उन्हे चखा ,,वो अमृत के समान थे,,,,फल  खाते ही मुझे नीदं आने लगी,,,मै बैठे बैठे ही अलौकिक  दुनियां मे चली गयी”””जहां मै शून्य मे परिवर्तित होने लगी”””””

किसी शिशु के क्रदन से आंख खुली,,सामने देखा तो,एक नन्हा शिशु भुख से विलाप कर रहा है,,,

देवी ,इसकी क्षुधा शांत करना आपका उत्तरदायित्व है, ,

जैसे मां शक्ति  आपना कार्य करते हुऐ संसार को बिना भेदभाव के पोषण करती है”शिशु के क्रंदन से मेरे अंदर ममत्व का वेग बढ गया, ,स्तन से दुग्ध की धार बह निकली, ,,मैने शिशु को झपट कर सीने से लगा लिया, ,वो ऐसा सुख था जिसका वर्णन नही किया जा सकता “””

मै धन्य हो गयी”””””

नही माता धन्य तो मै अभागा हो गया “”” जिसकी संतान को आपने ,अपना दुग्धपान कराकर जीवनदान  दिया”””

दक्षांक ने बार बार झुककर प्रणाम किया”””

उसके बाद तो आपको सब ज्ञात है”””””पुत्री के जाते ही मेरा मन पूर्ण संतुष्ट हो गया “”” मेरे अंदर वैराग्य का उदय हो गया””

जिससे बाहर आना संभव नही था””””

सारा वार्तालाप सुन  – देवकन्या   खुद को न रोक सकी”””

वो ओट से बाहर आ गयी,,और सध्वी के चरणों मे गिर गयी””””

माता मुझे गर्व है की आप मुझे  संसार मे लायी””””

मुझे अब कोई शिकायत नही”””””अश्रु की धार बह निकली  देवकन्या  के नेत्रों से””””अश्रुबूंदे  जब गिरी तभी मेघ घुमडने लगे”””

“”पुत्री देवकन्या खुद को सम्भालों नही तो इस अश्रुवेग से ,विशालपुरी   बह जाऐगी””

माता प्रथम बार अश्रु गिरे है,गिर जाने दो”””

बाबा ने न हंसने दिया न रोने””””

बस आपके चरण धुल जाऐ ,इतना समय दीजिऐ”””

पुत्री धैर्य रखो”””””

अभी आपको बहुत ही धैर्य रखना  होगा “”” आपका जीवन  आने वाले समय की आधार शिला है”””

आप नारी जाति के उद्धार की वजह बनेगी””””

माता””””

अब मै अधिक देर न रूक पाऊंगी,विशालपुरी  मे बस इतना ही समय देना था–मानव जाति के लिए  हमे आगे प्रस्थान करना होगा “””

माता आपके दुर्लभ  दर्शन हमारा सौभाग्य  है”””

राजनायक  शीश झुकाकर बोला””””

साध्वी मां ने मुडकर देखा””‘देवकन्या के आंखों मे अश्रुबूंदे  “”

आह”””” हूक सी उठी”””

ज्यादा  समय ठहरना उचित नहीं “”””

उन्होने मन ही मन सोचा “”

सूर्यअस्त  के पहले हमे ये स्थान  छोडना होगा राजनायक “””

जो आज्ञा माता”””

संध्या हो गयी थी”””

नगर के बाहर””‘कुछ देवी रूपी सध्विया तेज कदमों से निरंतर उस स्थान से दूर होती जा रही थी”””

उन्हें  दो आंखें अपलक देखे जा रही थी””””

दूर कही संध्या को बैल अपने मालिक के साथ खेत से घर की ओर प्रस्थान  कर रहे थे”””उनके गले मे बंधी घंटियों की टन टन कानों को मंत्रमुग्ध कर रही थी”””

जैसे जैसे वो दूर हो अपने निश्चित स्थान की ओर बढ रहे थे “””

पीछे धूल का गुबार आसमान की ओर उठ रहा था”””

कुछ क्षण बाद सबकुछ समाप्त, ,,

सूर्य की  ललिमा धीरे धीरे,लुप्त हो रही थी”””””फिर वही रोज की तरह चांद”””अपनी शीतल किरणों  को धरा पर फैलाने की पूर्ण चेष्टा करता हुआ “”” दीप्यमान हो रहा था !

बाबा चले”””

हा  पुत्री””

बाबा अब मां से कभी भेंट न होगी”””

पता नही पुत्री””समय के गर्भ मे क्या छुपा है”””

मै स्वंयम्  अनभिज्ञ  हूं”””

अंधेरे ने चादर फैलानी  शुरू कर दी थी”””

और चांद ने अधेंरे को परे करने का प्रयत्न “”””

दूर से दो अश्व आते नजर आये”””

पुत्री चलों अपने वाहन आ गये””””

क्षणिक हंसी फूट पडी ,राजनायक के चेहरे पर”””

कुछ श्रण मे अश्व नगर के प्रवेश द्धार की ओर बढ गये!

दो पहर रात्रि  बीत चुकी थी”””राजनायक की आंखो से नीदं गायब थी”””

वो उठकर चहलकदमी करने लगे”””

माता  चन्द्रबाला  का चेहरा, उनकी आंखों  से दूर न हो रहा था !

मां”””उनके मुहं से अनायास फूट पडा”””

वो एक बार फिर अतीत मे खो गये!

वटवृक्ष की घनी छाया में बैठे भगवन्  महावीर स्वामी, प्रखर तेज उनके मुखरविन्दु पर फैला था”

उनके भक्तगण उनके सामने खडे होकर ,मंत्रमुग्ध  होकर अपलक  उन्ही की ओर देखे जा रहे थे!

उन्ही के समीप खडे दक्षांक ने जैसे ही देवी चद्रबाला के सामने बलिका को लेने के लिऐ हाथ बढाया”””

तभी भगवन् बोले””””

ठहरो भन्ते “””दक्षांक “”

राजनायक   के बढते हाथ रूक गये”

राजनायक, अबूझ सा कभी देवी चद्रबाला को कभी भगवन् की ओर देखे जा रहा था!!!

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रीमा महेंद्र ठाकुर “” वरिष्ठ लेखक सहित्य संपादक,

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