देवकन्या (भाग-2) – रीमा महेन्द्र ठाकुर : Moral stories in hindi

अबतक आपने पढा””

पुरी,  उन्नतिशीलता की दृष्टि  धन सम्पदा  से परिपूर्ण  नगरी थी”व्यापारिक दृष्टि  से भारत वर्ष  के सभी राज्य इस नगर से जुडे हुए थे”ऐतिहासिक  दृष्टि से परिपूर्ण नगर खुद मे बहुत कुछ समेटे हुआ “”” था”””

आगे——

ढोल ताशे बज रहे है,लगता है पुरी मे कोई उत्सव है,,

चपला ने पास बैठी स्त्री की ओर देखकर  बोली””

ना “””री

मुनादी वाला है,,,

चल सुनते है,आखिर  राजा ने अब कौन सी घोषणा की है””” उत्सुकता  से वो स्त्री बोली””””

वो स्त्री प्रोढ अवस्था  की दहलीज पर खडी थी””

उसके चेहरे पर अनुभव  साफ दिखाई दे रहा था  !

मौसी चल ,बाहर बडा हंगामा हो रहा है,

कोई अपनी बच्ची को नदी के पास वाले वृक्ष  के” नीचे छोड गया है,,,एक सांस मे बोल गयी गयी ,केतकी”””

जो की अभी अभी दौडकर आयी थी,और हांफ रही थी”””

केतकी अभी युवा अवस्था की  दहलीज पर कदम रख ही रही थी”””

तीखे नैन नक्श ,गेहुंआ रंग, भारी पलकें,किसी को भी आकर्षित करने की खूबी”””

हा री,,पता नही कौन निर्दयी माता पिता  इस भरी बरसात में  अपनी दुधमुंही बच्ची को छोड गये!

प्रोढ स्त्री ने असंतोष  से गर्दन घुमायी”””

बरखा मौसी आप सच कह रही है”””केतकी उदास होकर  बोली”””

अभी चर्चा चल ही रही थी की किसी की आहट सुनाई दी”””

लगता है कोई आया””””

केतकी के बोलते ही एक युवती ने कक्ष मे प्रवेश किया”””

अरे कजरी ,,,चल आ जा”””

युवती पर नजर पडते ही बरखा बोली”””

वैसे इतना हांफ क्यूँ  रही है””””

वो आज की  खबर सुनी”””उतावले पन से कजरी बोली”””

हा सुना है राजनायक  दक्षांक “को आम के वृक्ष  के नीचे,गंगा मैया की  जलधारा में कन्या प्राप्त हुई “””

बिल्कुल  सत्य है मौसी”””

मै वही से आ रही हूं””इतनी सुन्दर कन्या है की मै तो पलकें झपकाना भूल गयी!!!

अच्छा “”

हा,,,,,लगता है जैसे कोई  देवी “”” सुनने मे आया है की झरने मे बहकर आयी है””

आश्चर्य से सबके मुंह खुले रह गये””

कजरी  कुछ ज्यादा  नही हो रहा “”” चपला बोलने से खुद को न रोक सकी””

सच्ची  जीज्जी””””

आप चलो मेरे साथ ,खुद ही देख लो””””

अद्भुत, फिर तो वो कन्या देवकन्या होगी,,,जो इतनी ऊपर से ,गिरकर सुरक्षित  है,,,

चपला अविश्वास से बोली”””

हा हा चलो””केतकी ने कजरी के हा मे हा मिलाई””

कुछ समय बाद वो चारों भीड को चीरती हुई, राजनायक के सामने पहुँच गयी!!!!

बरखा देवी, पुरी   की देवदासी थी”””

उसको वहां देखकर ,लोग खुद ही पीछे हट गये”””

अदितीय , कन्या,

बरखा कन्या का मुख देखकर खुद को न रोक सकी”

राजनायक,इस नवजात पर मेरा अधिकार ,,है”बरखा  देवी  की नजर उस कन्या पर पडी तो वो चौंकते हुऐ बोली”””

नही देवी ,मै निसंतान हूँ, ,,इसे मै अपनी पुत्री बनाना चाहता हूं!

राजनायक विनय पूर्वक बोला”””

इसकी सुदंरता  इस नगर मे आपको रहने नही देंगी””‘

संशय से ,झूठी  मुस्कान के साथ  कटाक्ष करती हुई वर्षा देवी बोली””

मै”नगर को छोडकर कही दूर चला जाऊंगा””””

वैसे भी अब मुझे  इस नगर मे घुटन होती है””

फिर ठीक है, आज से ये आपकी पुत्री””

राजनायक “” बरखा  बोली””

राजनायक के चेहरे पर दया साफ छलक रही थी!

“””

देवी आभार ,,नतमस्तक होते हुऐ राजनायक बोला”””

पर एक बात कभी मत भूलना,  ये कन्या  पुरी की अमानत है”जाते जाते,मुडकर देखते हुऐ  बरखा देवी  बोली””””

बरखा की बात सुनकर”, राजनायक के पैर जमीन से चिपक गये”””

बरखा के जाते ही ढोल ताशे फिर से बजने लगे”””

वादे के मुताबिक छठे दिन  राजनायक ने पुरी  छोड दी””””

दूर कही ग्रामीण क्षेत्र अमरा मे जाकर  एक झोपडी बनाकर  पुत्री”और पत्नी के साथ रहने लगा”””

समय धीरे-धीरे  बढने लगा”””

समय के साथ ,कन्या अमरा, दिन दूनी  रात चौंगनी बढने लगी”””चांद सी आभा वाली पुत्री ,पाकर मां कानन का ममत्व सार्थक हो गया, ,,

मां ,के सनिध्य मे बच्ची की परवरिश होने लगी”””

अमरा मे कब राजनायक के साथ दस वर्ष बीता दिये पता ही नही चला इस बीच राजनायक की पत्नी ने, उनसे अंतिम विदाई  ले ली”””पत्नी के परलोक गमन से राजनायक का जीवन  खाली पन से भर गया””वो वियोग से ग्रसित हो गये””

वो सबकुछ छोडकर भिक्षु बनने की ओर अग्रसर हो गये!

पर पुत्री मोह ने उन्हें  जाने न दिया ‘संसार के प्रति  उनके  मन में विरक्ति ने जन्म ले लिया था!!!

पर पुत्री अम्बा के लिए  चितिंत थे”””हमेशा वो भयभीत रहते की  अम्बा को कही किसी की कुदृष्टि  न लग जाये””

जब अम्बा पांच वर्ष की थी”” एक दिन बालक्रीडा के दौरान जब खीचांतानी में,अमरा से एक बच्चे  का वस्त्र  फट गया ,तो ,राजनायक  को अहसास हुआ की  अमरा का जीवन ,यहां नही ,एंकात वास के लिए  ही हुआ है”

*

ये अमरा सुन कल संध्या को क्या  हुआ था”

सखी ने मधूलिका ने पूछा “””

कुछ नही अमरा भोलेपन से बोली”””

पर कल जो घटित हुआ  था वो अमरा के मन मष्तिक से अभी तक नही निकला था!!!

सखी मधूलिका  समझ चुकी थी की अमरा उदास है ,तो उससे आगे पूछने की हिम्मत न हुई “””

मै चलती हूं, बाबा के लिए कुछ  पकवान बनाना है”””

सखी मधूलिका, अमरा को जाते देखती रही”””

अमरा सीधे राजनायक के कक्ष  मे पहुंची,,

बाबा “” बाबा “”

राजनायक ने पुत्री को खाली आंखों से देखा””

ऐसा पहली बार हुआ,

राजनायक का चेहरा सपाट था,  कही कोई प्रतिक्रिया  नही”””

बाबा बाबा,कुछ बोलो”””

हूं”छोटा सा शब्द “””

मुझे भी रेशम की कंचुकी चाहिए, नुपुर और बहुत कुछ “”

हूं”””राजनायक का फिर  छोटा सा जबाब”

बाबा दिलाओगे  न ,,

सबके पास है बस मेरे नही है,सब मखौल बनाते है””

अमरा भोलेपन से बोलती जा रही थी!!

क्या सच में तुम्हें  विलासता की हर वस्तु चाहिऐ””

हा बाबा””सबकुछ जो सबके पास उससे ज्यादा “””

पुत्री चलो “” कहां बाबा””

बिना किसी को कुछ बाताऐ दक्षांक ने अमरा छोड दिया,

इस बीच छै वर्ष गंगा किनारे  कुटिया बनाकर अज्ञातवास पर चले गये””””मीलों तक किसी को पता नही था की राजनायक अपनी पुत्री  के साथ कहां चले गये!!!!

जैसे ही अम्बा ने ग्यारहवें  बंसत मे कदम रखा “”” प्रथम बार नटराज  शिवालय  मे घटित घटना ने राजनायक  दक्षांक  को बदल कर रख  दिया!

कुछ दिनो पहले जो घटनाऐं घटी थी  नटराज शिवालय मे वो उनके समक्ष  फिर आकर खडी हो गयी! कब तक भाग सकेगें नियति से””””इस बीच महामात्य का आगमन,और अम्बा के साथ पुरी ,जाने की याचना””””कुछ नयी घटनाऐं घटित होने को तत्पर थी!

*

कुछ  समय से दक्षांक  सोच रहा था की अब उसे पुरी के लिऐ प्रस्थान  करना चाहिए, क्योकि उसके परम मित्र  ने जो उसे बताया  यदि वो सत्य है ‘तो नटराज  शिवालय का  युवान  अबतक महामात्य द्धारा शिक्षित हो चुका होगा “”इस घटना को एक वर्ष से ज्यादा  समय हो चुका है घटित हुऐ”

अम्बा  तुम्हे   बालपन मे विलासता की वस्तुऐ चाहिए  थी न “”

कुछ सोचते हुऐ  बोले राजनायक “”

बाबा वो तो बालपन की बात थी”””

अब हमारा यहा रहना हमारे लिऐ, अनिष्ट होने की संम्भवना दर्शा रहा है””

बाबा फिर एक बार स्थान परिवर्तन क्या सही होगा “बहुत मुश्किल होता  ,है, नये स्थान को स्वीकारना “

आज ही हमें  कुटिया  से पुरी के लिए  प्रस्थान करना होगा””

अम्बा की बात अनसुनी करते हुऐ  दक्षांक  बोले””

बाबा मेरी””””

हमे जाना होगा, क्योकि,पुरी का कर्ज है मुझपर””””

उस पुरी ने मुझ निसंतान को संतान  का सुख दिया, मै डरता था किसी अनहोनी से भाग रहा था “”” पर ये भूल गया की नियति के हाथ पैर नही होते ,वो सब जगह पहुँच  सकती है””

बाबा””””बाबा की बाते अम्बा नही समझ पा रही थी!

पुत्री चले””””

अम्बा ने सहमति मे सिर हिलाया “””

बाबा हम वहां जीविका के  लिये  क्या करेगें”””

“”उसके लिऐ फिर से एक बार म्यान की तलवार हाथ मे लेनी होगी”””

फिर से संघ मे वापस जाना होगा “राजनायक के चेहरे पर दृढता 

साफ झलक रही थी””

पर बाबा”””अम्बा  कुछ भयभीत होती हुई बोली””

डरो मत तुम्हारा  बाबा है न तुम्हारे, साथ”””

चिंता मत करो ,

पुत्री के सिर पर हाथ फेरते हुए  ,राजनायक बोला “”

चलो “”

कहां”””

पुरी”””

पर बाबा सारी संखिया मेरी  छै वर्ष पहले छूट गयी,एक बार उनसे मिल लेते ”’ ,

कुछ पाने के लिये बहुत  कुछ छोडना पडता है”””परन्तु  वो सखियां तो काफी दिनों से हमारे निवास  से दस मील दूर रहती है ,उनसे कभी कभी तो मिलती हो,,फिर इतना  लगाव क्यूं””

कुछ और कारण तो नही है पुत्री अम्बा””

नही बाबा “”””

महानामन  के मन मे आया की उस युवान के बारे मे अम्बा से पूछ ले”””पर फिर पूछना सही नही लगा”

राजनायक ने कुटिया छोडने का  अंतिम फैसला कर लिया था!!!

अमरा न चाहते हुऐ  राजनायक के साथ चल पडी””‘

मिट्टी के घर मे ऐसा कुछ नही था जो साथ ले जाया जा सके,,सिवाय ,वो पत्थर का चक्की चूल्हा ,जिससे गृहस्थी निर्मित होती है!

बस एक मात्र तलवार थी,जो दस वर्ष से उपेक्षित  थी!!

राजनायक ने पुत्री का हाथ थामा, फिर पलट कर एक नजर पूरे घर पर दौडाई, छै वर्ष की कुछ यादें थी””

कुछ स्वर्णिम पल भी थे जो ,रिक्त आंखों में नीर की तरह भर गये थे”””

राजनायक ने पुत्री अमरा का हाथ कसकर थाम लिया, फिर बिना मुडे कच्ची पगडंडियों  को पार करते हुऐ  पुरी की  ओर बढ गया! !!

हप्ता भर होने को आ गया, रास्ते मे छोटी नदियां, घने वृक्ष  लताऐं सबकुछ अमरा को अपनी ओर खींच रहे थे!!

पर राजनायक का लक्ष्य कुछ और  ही था!!!!

अगला भाग

देवकन्या (भाग-3) – रीमा महेन्द्र ठाकुर : Moral stories in hindi

रीमा महेन्द्र ठाकुर 

द्धारा  लिखी-अनुपम कृति”

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