देवकन्या (भाग-18) – रीमा महेन्द्र ठाकुर : Moral stories in hindi

(देवकन्या अनमोल कृति)

अभ्यास “””

*******

कौन था ये मित्र “””‘

मुझे नही पता “””

तो पता करो, एक सैनिक ने आकर हर्षदेव को सावधान किया”””

कुंवर हर्षदेव  आप मेरे मित्र  है, अभी आप देवी देवकन्या  के साथ  प्रस्थान  करे”””

कुछ नवयुवक तरूण इधर ही आ रहे है””””

वो मद्यपान  पीकर धुत है ,,,बेवजह ही आपको परेशान  करेंगे “”

ठीक है मित्र , मै  देवी के साथ  अभी प्रस्थान करता हूं!

देवी देवकन्या  आप अश्व पर विराजमान  हो भवन की ओर प्रस्थान  करे””

ठीक है सेवक “””

मित्र”” आप अश्व को आगे बढाऐं””मै आपके पीछे हूं””””

ठीक है मित्र  हर्षदेव “””””

अमरा   ने घोडे को ऐड मारी”””अश्व हवा से बातें  करने लगा”””देखते ही देखते–अश्व हर्षदेव की नजरों से ओझल हो गया””””

काफी आगे आने तक भी हर्षदेव को न देवी  देवकन्या   नजर आयी,न ही अश्व “” वो चिन्तित हो उठे”””

अश्व सरपट दौडा जा रहा था”””

अमरा,   कुछ समझ  पाती ,उससे पहले ही अश्व ने राज उद्यान  मे प्रवेश किया”””

किसी भी सैनिक ने उसे रोकने का प्रयास न किया”””

कारण उसके सिर पर लटका राज्यचिंह””‘वो अरबी घोडा था ,जो मन की स्थिति  भांप लेता था!

देवी देवकन्या,  के मन मे ,अपनी जन्मदात्री  को देखने की लालसा तीव्रगति  से फैल गयी थी”””””

इसलिए  प्रशिक्षित  अश्व उसे लेकर सीधे ,राजउद्यान  ,मे प्रविष्टि हुआ था!

वो अश्व जहां रूका था वहा सुन्दर बांस की कुटिया बनायी गयी थी””””उस कुटिया   पर अंकित कलाकृति ,,राजनायक के हाथ से बनायी गयी  थी””””जिसे देखकर अमरा    समझ गयी की ,उसके बाबा यही है””‘और मां भी””””

वो अश्व से उतरकर “””

धीमे कदमों से कुटिया के पिछले भाग की ओर बढ गयी””””

कुछ दूर जाकर, वो पलटी ,फिर अश्व की ओर देखा “”‘वो देवी देवकन्या की ओर ही देख रहा था”””देवकन्या  ने कुछ इशारा किया “” अश्व  वो स्थान  छोड दूसरी ओर बढ गया””””देवकन्या   संतुष्ट हो आगे बढ गयी!!!

आगे बडा ही मनोरम दृश्य था “””

सब खुद मे तल्लीन, ,सब ओर शान्ति, ,सुन्दर स्वच्छ  बयार बह रही थी”””जो देवकन्या  के कानों को छूकर ,निशब्द ,खुद को होने का अहसास दिला रही थी”””

हवा के झोके’ से उसके कान के झुमके,नन्हे घुघरू की ध्वनि पैदा कर रहे थे!

वो आगे बढी और कुटिया मे प्रविष्ट हो गयी””‘”

उसे ,बाबा की आवाज सुनाई दी””””

माता”””आप तो सध्वी बनकर सब कुछ त्याग  बैठी””पर मेरी पुत्री, के जीवन मे जो संघर्ष  आ गया ,उसे कैसे दूर करू”””

भान्ते’दक्षांक  “भगवन्  के मार्गदर्शन  से ही मै यहा, उपस्थित हुई हूं,,वैराग्य  मेरा स्वयंम्  का निर्णय  था””””

माता क्या आपको पता था “””” की पुत्री अमरा  ,सोलह कलाओ की स्वामिनी है”””

ये सत्य है राजनायक की मुझे पता था”””भगवन् महावीर की इच्छा से ही मैने ,पुत्री अमरा  को गंगा मैया  की गोद मे सौपा”था —ये सब पहले ही लिखा जा चुका था, की आम्रपाली की देवी,रति ,स्वरूपा “” देवकन्या “

आपकी पुत्री के रूप मे ,विशालपुरी के साम्राज्य को हिलाकर रख देगी””””

अपना  नाम किसी स्त्री”  के मुहं से सुनकर  देवकन्या  ठिठक गयी””””और आगे की वार्ता सुनने के लिए, ऐसी जगह चुन ली जहां से वो किसी को नजर न आये”””और वो सब पर नजर रख सके””””

उसने कुटिया मे लगे, तिनको  से एक छेद निर्मित  किया “”

और अंदर झांककर देखा””””

एक गौरवर्ण स्त्री जो की साक्षात देवी प्रतीत हो रही थी”””

उसके ललाट पर चंदन का टीका लगा हुआ था “”

वो सुन्दर  चौकी जिसपर मखमली आसन बिछा था, उसपर वो विराजमान थी”””वात्सल्य  चेहरे पर टपक रहा था”””

उनसे कुछ दूरी बनाकर बाबा बैठे थे”””उनके चेहरे के भाव से प्रतीत हो रहा था की उनके अंदर जिज्ञासा रूपी बंवडर ने तबाही मचा  रखी थी!

ये कैसा श्राप है माता”””””राजनायक ने प्रश्न किया “””

भविष्य के गर्भ मे जो छुपा है उसका सामना करो राजनायक ,

माता मुझे उसी समय पता चल गया था की आप कौन है,और मेरी पुत्री  ,की जन्मदात्री कौन है”””पर मै संशय मे था””उस समय स्थिति  ऐसी बन पडी थी की चाहते हुऐ  भी पूछ नही सकता था!

हा वत्स  मुझे याद है”””अतीत मे झांकती हुई  बोली ,साध्वी माता “””

” वो दिन”””मेरे भाग्य,मे, काला दिन लेकर आया”””

जब चम्पांपुरी पर आक्रमण हुआ “””

पुत्री”अब चपांपुरी  बलिदान  मांग रही है,किसी और के हाथों राजकुमारी  का अधीन हो जाना मृत्यु सामान  है”””

इसलिए आज ये माता, अपने हाथों ही अपनी पुत्री   को मृत्यु के हाथ सौपेगी””””

मां””””

पुत्री ये विष है ,राजवंश की शपथ  ,खुद को अतिताईयो के हाथों बर्बाद मत होने देना “”

मैने और मां ने एक साथ ही विष ग्रहण किया”””मेरी तडप और चीख ने शायद दुश्मन को आगाह कर दिया “””

मेरी प्रिये दासी मेरे पास दौडकर आयी”””राजकुमारी, कैद से बचने के लिऐ महाराज ने खुद को अज्ञातवास दे दिया “””

सुनकर मेरे अंदर की उम्मीद  टूट गयी””मां की गर्दन एक ओर लुढक गयी”””मैने आखिरी बार उन्हें  देखा,और अंधेरे मे समाती चली गयी”””‘

जब आंख खुली, तो मै महल के एक कक्ष  मे  थी”””

सामने मेरी प्रिय दासी बैठी थी”‘”

मुझे  लगा  मै,सुरक्षित बच गयी”””

राजकुमारी कैसी है ,आप,,,

मैने दासी की ओर देखकर गर्दन हिलायी,की मै ठीक हूं!

उसके चेहरे पर संतोष  था,,

पूरा दिन ही वो मुझे तरह तरह की जडीबूटियां देती रही”””

मां और पिता महाराज “””‘

वो तो”””” उसकी आंखे भर आयी”””

मेरी आंखो से भी कुछ बूदें  निकलकर गालो पर लुढक गयी “”””

कुछ दिन ऐसे ही रोने धोने मे निकल गये”””

पर कोई ऐसा वहां जरूर था,जिसे मै न देख ही पाई,,वो दोनो समय मेरी तबियत  पूछने आता था”””वो अक्सर पर्दे की आड मे होता  था!

फिर एक रात्रि “”‘

किसी ने मुझे  छुआ””” मै सिहर उठी””

कौन “”””

आपका स्वस्थ अब कैसा है राजकुमारी, ,

आप कौन,, मैने इधर उधर देखा मेरी दासी नजर न आयी””

मै अबतक समझ चुकी थी की मै आधीन हूं!

आप जिसे ढूंढ रही है वो मेरी आज्ञा से कक्ष  के बाहर जा चुकी है””‘आप आराम करों मै कल आऊंगा “”

वो मेरे ललाट पर हाथ फेरकर बोला “””

मेरे लिऐ  पिता महाराज  के बाद पुरूष का ऐ पहला स्पर्श था”””मेरा मन पुलकित हो गया””

दूसरे दिन  मैने पूरे दिन ,उस पुरूष को याद किया “”

वो फिर आया”””

इसी तरह कितनी रातें गुजर गयी ,मै उसे देख न पायी”””

उसे देखने की लालसा बढती गयी”””

फिर एक रात्रि,चांद यौवन पर था ,पूरा चांद ,आज दासी ने मेरा पूरा श्रंगार किया था”””

वो आया और मेरे समीप बैठ गया”””

मैने उससे चांद देखने की जिद की,वो सहर्ष मान गया, ,हम दोनों बडे झरोखे के पास आ गये”””वहां से चांद की किरणें हम पर बरस रही थी!!!

उसने मुझे अलिगंन किया, और मेरी ठुढी उठायी””‘

मैने पहली बार उसे देखा और बस देखती रही ,जैसे स्वयम्  कामदेव मेरे सामने उपस्थित हो,मै खुद को न रोक सकी,और समार्पण कर दिया “””‘

पूरी रात्रि बीत चुकी थी”” पर हम दोनों एक दूसरे से अलग न हुऐ”””

भोर जब आंख खुली तो मै पलंग पर अलसायी  मुद्रा मे लेटी रही””””

दासी आयी और उससे मैने सारी बातें बता दी”””

वो आश्चर्य से मुझे देखती रही”””

राजकुमारी  ये क्या कर दिया, जिस प्रतिष्ठा के  लिऐ रानी ने  प्राणों का बलिदान  कर दिया”””

आपने ,उसी शत्रु को अपना कौमार्य दान कर दिया, ,राजकुमारी ये क्या किया, ,,

कौन था वो जानती हो””

नही”””

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रीमा महेंद्र ठाकुर

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