देवकन्या (भाग-13) – रीमा महेन्द्र ठाकुर : Moral stories in hindi

!!परिवर्तन !!

सुबह से ही लिच्छवी  राजा मनुदेव का मन बैचेन था””

उसकी आंखो के सामने नृत्य करती युवती का प्रतिबिम्ब

घूम रहा था!!

वे संघ के शानदार  लिच्छवी  कबीले के प्रसिद्ध  राजा थे”

पर आज एक कन्या ने उन्हें  हताश कर दिया “”

वो ग्यारह बाराह वर्ष की बाला”तीखे नैन नक्श, हिरनी सी “”

आह कोमलांगी, शब्द फूट पडा “””

वो बस उसे एक बार और देखना चाहते थे””

जब राजा मनुदेव की स्थिति  ऐसी थी तो नवयुवकों की कैसी रही होगी””उस नृत्य के बाद वो मधुशाला मे ही पडे रहते”””

प्रातःकाल से ही महल के द्धार पर सूर्य पताका लहराने लगी””

एक सैनिक   मगध से घोडे पर बैठा,विशालपुरी की ओर चला आ रहा था!!

द्धार पर प्रहरी ने उसे रोक “””

वो क्रोधित होकर बोला “उसे अभी राजा मनुदेव से मिलना “”

अभी वो नही मिल सकते”””

बहस बढती जा रही थी”और भीड भी””

सहसा राजनायक के कानों मे जानी पहचानी आवाज पडी””

वो उधर ही बढ गया””

युवराज कुणिक  वो मन ही मन बुदबुदाया “

हर्षदेव , पुत्र—

काका वो घोडे से उतर गया “”

प्रणिपात काका”””

क्या हुआ पुत्र ,—

काका”””

श श श “चलो भवन मे “”

राजनायक समझा बूझाकर कुणिक को अपने साथ ले गया “”

कुणिक के  भवन पहुंचते ही ,चपला की नजर उसपर पडी “”

वो दौड पडी ,अमरा  के कक्ष की  ओर,

काका”रात्रि जैसे ही मुझे चपला का संदेश मिला मै खुद को रोक न सका””आप संघ की बात मत मानना””

अभी हमारे पास काफी समय है”तबतक  कुछ रास्ता निकल जाऐगा””

मित्र हर्षदेव नजर नही आ रहे”””

हा वो”अमरा के बचपन की सखी, मधूलिका को लेने,आंमवां गये है”

काका,अम्बा “””

कक्ष की ओर इशारा किया राजनायक ने”

कुणिक उधर ही बढ गया!

मेरी प्यारी कुमारी ,युवराज  का आगमन हुआ है”‘

क्या””चौंक कर उठ बैठी अमरा  “”

मेरा सिंगार जल्दी से कर दे,सखी चपला, वो कही चले न जाय””

हम कही नही जा रहे है,देवी “”

युवक कुणिक कक्ष मे  प्रवेश  करते हुए  बोले”””

कुणिक  पर नजर पडते ही अमरा   शैया से उतर उनकी ओर बढी”””

और कुणिक के गले से लिपट गयी””

क्या हालत बना रखी है”””

अब आप आ गये है तो ,सुधर जाऐगी अमरा  कुणिक की आंखों  मे झांककर बोली””

प्रिये””””  बस कुछ दिन धीरज धरो””

एकांत “””

युवराज   के बोलते ही आंखो मे आंसू  पोछती हुई  चपला बाहर चली गयी”””

चपला के लिए  कुणिक अमरा का मिलन ,बडा महत्वपूर्ण था!

सुनों प्रिये ,बहुत जल्द मै”, मगध से सेना लाकर ,विशालपुरी पर आक्रमण करूंगा””

नही नही””

क्यूँ “”

मै तुम्हे भारत साम्राज्य की सम्राज्ञी बनाऊंगा “

मै नही बनना चाहती “”सम्राज्ञी “””

क्यूं “””

मुझे युद्ध स्वीकार नही,,उफ कितना रक्तपात होगा””उसमे तुम्हें कुछ हो गया तो””सोच कर ही सिहर उठी देवकन्या  “”

मुझे कुछ नही होगा, प्रिये”””

चलो आज ही मगध चलते है”””

नही युवराज,

क्यूं, ,

मगध पर भी तो अतिताईयो ने हमला बोल दिया है”

“पहले मगध की रक्षा करो”

फिर तुम्हारा, ,,,

मै इंतजार करूंगी तुम्हारा होना ही काफी”””

पुत्र मुझे कुछ बात करनी है””

द्धार के बाहर खडे,राजनायक बोले””

आ जाईऐ”””, काका””

अब तो आप जान चुके है मै कौन हूं “”

हा पुत्र”””

मुझे एक वचन दो ,,

क्या वचन””

तीन वर्ष पूरा  होने से पहले ,अमरा को तुम विवाह करके ले जाओगें,,

वचन दिया “”” काका””

हम दोनों ने गंधर्व विवाह किया है,अभी अमरा बहुत छोटी है,मेरी अमानत आपके पास है,मै आऊंगा मेरा  इंतजार करना”””

कुणिक बिना मुडे तेजी से बाहर चला गया “

कुणिक ने घोडे को ऐड मारी ,घोडा सरपट उस दिशा की  ओर बढ गया जिधर से आया था””

राजनायक चुपचाप खडे देखते रहे,,,जब तक की कुणिक आंखो से ओझल न हो गया!!

राजनायक पलटे और उस कक्ष की ओर बढ गये ,जहां अमरा को कुछ देर पहले छोडकर गये””

बाबा”””अमरा  सिसक उठी”””

उन्होने जाते समय पलटकर भी नही देखा “”

कैसे देखता पुत्री”””वो युवराज हैं  उसपर  राज्य के उत्तर   दायित्व का भार है “””

उसमे मेरी क्या गलती”””

पुत्री””  साहस रखों, आज वो तुम्हारे लिऐ मगध से अकेले,पूरे संघ से लडने आया था”उसमे ज्जबात है,जो उसे कमजोर कर रहा है,तुम स्वार्थ वश उसे भीरू मत बनाओं””

मै प्रेम करती हूँ “”

पुत्री प्रेम ,,प्रेमी को उच्च शिखर पर पहुंचाता है ना की मृत्यु “”

मृत्युं”””  कांप उठी देवकन्या “””

नही नही बाबा,मै उन्हे कुछ  न होने दूंगी””

तो धैर्य रखो ,जैसा जैसा मै बोलूं तुम करती”जाओ”

हा मे सिर हिलाया देवकन्या ने””

अंदर कोई है ,किसी ने आवाज लगायी”’

कौन””

मै भवन का राजसिपाही”

वही रूको विप्र  ,मै आता हूं” “”

राजनायक कक्ष से बाहर निकलते हुऐ बोले””

जलपान करोगें””

नही राजनायक योद्धा,  राजा मनुदेव ने उपहार भेजा है””

उसकी अवश्यकता  नही है””

आप राज्यभवन के उपहार की अवहेलना कर रहे है योद्धा “”

मोटे पेट वाले राजपुरोहित गणपति  ने प्रवेश करते हुए बोला “”

नही मान्यवर”””क्षमा करे”

ये मत भूलो देवी, देवकन्या   आज से राजभवन की अमानत है”

नही भूला हूं”””

फिर उपहार स्वीकार करो””

राजनायक ने गर्दन झुका ली”

एक दर्जन दासियो ने एक साथ  प्रवेश किया “”

सबके हाथों मे स्वर्ण थाल थे,जिनपर रेशमी झालर वाली गोल कपडे के पोश बिछे हुऐ थे”

राजपुरोहित ने एक एक थाल खोलना प्रारंम्भ किया, ,हीरे जवारात, मेवा मिष्ठान, तरह तरह की चीजे””

राजनायक ने नजर उठाकर भी नही देखा””उनके लिऐ ये सब चीजे तुच्छ थी”””

ये देवी के लिऐ””

और हा एक वस्तु और जिसे महाराज मनुदेव ने खुद अरब से मंगवाया है,इत्र  की शीशी आगे बढाते हुऐ, राजपुरोहित बोले”””

राजनायक ने चुपचाप हाथ आगे बढा दिया “””

एक बार देवी ,देवकन्या”  के दर्शन हो जाते तो”””

वो अभी निद्रा से उठी नही”””

ठीक है राजनायक मै फिर आऊंगा, इस बार कोई बहाना नही सुनूंगा”””

स्वागत है मान्यवर “””

ये सब दासियां आज से देवी। देवकन्या की सेवा मे रहेगी”””

मान्यवर  ये मत भूलिऐ,अमरा  मेरी पुत्री,है”” उसका उत्तरदायित्व मै उठा सकता हूं”

यही तो नही भूला हूं राजनायक, ,,

तुम्हारा इतिहास तुमने अपनी जिद मे अपने पद को ठोकर मारी थी,याद है,

हा जिसका भुगतान  मुझे आज करना पड रहा है”””

सबकी बनायी  प्रथा का अनुदान”

मेरी पुत्री  भारत साम्राज्य की सबसे सुंदर, युवती है,

ये आपका सौभाग्य है राजनायक “”

नही ,,ये दुर्भाग्य है,और भगवान न करे भविष्य आपकी  वंशावली से  सुन्दर  कन्या का जन्म हो””

राजनायक, अपनी वाणी को विराम दो””

स्वयंम्  पर बात आयी तो “””

राजनायक मै यहां  बहस करने नही आया, मै राजपुरोहित स्वयंम् चलकर देवी। देवकन्या को सम्मानित करने आया हूं!

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