बड़ी धूमधाम से शादी संपन्न हुई थी सरिता की। उसकी शादी चट मंगनी पट विवाह को चरितार्थ करने वाली रही। बहुत गहमागहमी रही उसकी शादी पर ,काम अधिक और समय कम था । पर सब कुछ बहुत अच्छे से हो गया । लाल जोड़े में परी सी सुंदर लग रही थी वो । इसी सुंदरता पर ही तो अमन रीझ गया था जब एक पारिवारिक मित्र कि शादी में उसने सरिता को देखा था। सरिता शादी होकर ससुराल आ गई।
वरमाला, फेरे की गहमागहमी में वह कम ही लोगों को देख पाई थी।वैसे भी दुल्हन कहाँ किसी को देखती है उसका तो सारा ध्यान आने वाले नए जीवन की योजना बनाने में होता है या फिर इस घबराहट में होती है कि पता नहीं ससुराल कैसा होगा, ससुराल वाले कैसे होगें?. अब जब घर आ गई तो गृह प्रवेश के समय उसने ध्यान दिया ,एक चेहरा पुराना जाना पहचाना सा लगा । ओह नो…और ये क्या सरिता का दिल बैठने लगा। नहीं ये कैसे हो सकता है , पर नहीं आँखों का भ्रम नहीं था हकीकत में ही वही था।
ये इन लोग का कौन लगता होगा और यहाँ क्या कर रहा है ? अब क्या होगा जैसे सैकड़ों सवाल हथौड़े की तरह उसके दिमाग में बजने लगे। कुछ ही समय में पता चला ये आदित्य है, अमन(सरिता के पति)का छोटा और लाड़ला भाई जो एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता है और छुट्टी न मिलने के कारण सगाई के समय आ नहीं पाया था, पर अब लंबी छुट्टी लेकर आया है इससे घर पर पापा और भाई के काम में हाथ भी बँटा पाएगा और अपनी नई नवेली भाभीजी की साथ समय भी गुजार लेगा।
सरिता की शादी एक अरेंज मैरिज थी । जो एक महीने पहले ही तय हुई थी और मुहूर्त के कारण बहुत जल्दी में करनी पड़ी थी।
सरिता हमेशा से ही एक कम बोलने वाली और अपने काम से काम रखने वाली लड़की रही है। उसने कालेज टाइम से ही जैसे कसम खा रखी थी कि लड़कों से न कोई दोस्ती करेगी न ही ज्यादा मतलब रखेगी ।उसके नजरिए में प्यार मोहब्बत के अफसाने बेबकूफी के सिवाय कुछ नहीं थे और उसने वो बेबकूफी न करने की ठानी थी।
आदित्य से उसकी मुलाकात एक पन्द्रह दिवसीय कैम्प के दौरान हुई थी। उन दिनों आदित्य उसके लगभग पीछे ही पड़ गया था। नए – नए काम्प्लिमेन्ट्स देना। फिल्मी डायलॉग/गाने सुनाना सब कुछ आजमाया था उसने सरिता को प्रभावित करने के लिए पर सरिता तो सरिता ठहरी सब हल्की मुस्कान के साथ उड़ा देती । इस तरह से उसने आदित्य के मंसूबों पर पानी फेर दिया ।जिसका आदित्य को बहुत बुरा भी लगा था ।पर एक तो एकतरफा प्यार ऊपर से समय की कमी इसलिए वो चाहकर भी कुछ कर न पाया । इस तरह से इस एकतरफा ‘शार्ट लव स्टोरी ‘का अंत हो गया।
अब उसी आदित्य को यहां अपने देवर के रुप में सामने पाकर उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वो क्या करे?
कहीं ऐसा न हो आदित्य अब तक उस बात को दिल से लगाकर बैठा हो, कहीं वो मेरे लिए उल्टा सीधा तो न बोल देगा घर में? वैसे भी सब उसकी बात को ही सच मानेंगे वो इस घर का लाड़ला है और मैं तो अभी नई नवेली दुल्हन हूँ। मैं तो अपने पति को भी ठीक से नहीं जानती।
जाने कितने किंतु परंतु तेजी से उसके दिमाग में आ जा रहे थे। शादी का सारा उत्साह ठंडा पड़ चुका था। कितनी खुश थी वो, हर कोई उसके ससुराल की तारीफ करता था । तो उसका भी मानना था कि इतने लोग तारीफ कर रहे हैं तो अच्छे ही लोग होंगे और एक लड़की को ससुराल और पति दोनों ही अच्छे मिल जाएं ये तो सौभाग्य से ही संभव है। पर अब सब कुछ व्यर्थ लग रहा था उसे । अब मैं किससे कहूँ और क्या कहूँ ?
कुछ था भी तो नहीं पर अगर आदित्य ने कुछ भी कह दिया तो मैं क्या करुँगी?.इसी उधेड़बुन में दिन निकल गया उसे कुछ अच्छा न लग रहा था । वो उदास थी पर इस उदासी का कारण सब लोग नई जगह को मान रहे हैं, कोई नहीं समझ रहा कि उसके अरमानों पर पानी फिर गया है।कोई उसकी उलझन को नहीं समझ सकता ।
जो काम उसने किया ही नहीं ,कहीं उसका इल्जाम न आ जाए उसके सिर पर। कैसे समझाएगी वो अमन को कि वो तो हमेशा से ही विवाह पूर्व प्रेम संबंधों के सख्त खिलाफ रही है।ऐसा कुछ भी नहीं था हम दोनों के बीच । विचार थे कि जैसे खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहे थे।
रात को सब रस्मो-रिवाज निभाने के बाद सोने के लिए अपने निर्धारित कमरे में गई ।अमन का व्यवहार बहुत अच्छा था उसे लगा ही नहीं कि ये उनकी पहली मुलाकात और मिलन है। इस समय वो दिन के घटनाक्रम को लगभग भूल ही गई।
सुबह उठकर बाहर आई सभी बड़ों का आशीर्वाद लिया । सरिता जब तक नहाधोकर आई आदित्य सोकर उठ चुका था । उसने भाभीजी के पैर छूकर आशीर्वाद माँगा । हाथ अपने आप उसके सिर तक पहुंच गया । किसी भी तरह से नहीं लगा कि आदित्य नाराज है या वह दिखावा कर रहा ।
वो पूरे मान सम्मान के साथ सरिता से पेश आ रहा था। अतीत में जैसे वो कभी मिले ही न थे। ऐसे ही दिन गुजर रहे थे ।सब कुछ बहुत अच्छा था अमन उसके परिवार वाले और आदित्य भी। आदित्य ने कभी भी उस घटनाक्रम का जिक्र न किया ।कभी कभी तो लगता कि कहीं आदित्य की याददाश्त तो नहीं चली गई पर ऐसा कुछ न था ।
उसकेपारिवारिक संस्कार ही ऐसे थे कि रिश्तों की मर्यादा को निभाना वो अच्छे से जानता था। आठ वर्ष की शादी में उसने सरिता को वही मान-सम्मान दिया जो एक देवर अपनी भाभी को देता है । कभी उसकी कोई बात नहीं टाली ,यहाँ तक कि शादी के लिए लड़की पसंद- नापसंद का जिम्मा भी उसने सरिता को ही दिया।
शुरू के कुछ दिन तो सरिता परेशान रही थी। पर बाद में उसने भी पूर्ण रूप से एक अच्छी भाभी होने का फर्ज निभाया । उन दोनों ने ही कभी भी कैम्प वाली कहानी को होठों पर न आने दिया।
आपको कैसी लगी सरिता की उलझन, बताइएगा जरूर।
पूनम सारस्वत, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश।