दहलीज के भीतर – कंचन श्रीवास्तव

रोज की किच किच लड़ाई झगड़े से तंग आकर रेखा ने आज घर छोड़ने का फैसला कर ही लिया,फिर क्या था कुछ भी साथ न लिया बस तन पर जो कपड़े पहने थे वहीं शायद रवि के कमाई के थे।यहां तक की कान नाक और पैर में पहनी पायल को भी उतार के ड्रेसिंग टेबल पर रख दिया ।

और निकल पड़ी रात के अंधेरे में सोते हुए पति और बच्चे को छोड़कर ।

वो बाहर निकली ही थी कि नाइट वाक करती सुनिता जी मिल गई और बोली अरे आज तुम भी वाक करने निकली हो पति बच्चे को सोता छोड़कर।

इस पर इसने हां में सिर हिला दिया और थोड़ी देर उन्हीं के साथ चहलकदमी करती रही, करते करते उन्होंने पूछा क्या बात है आज बड़ी गुमसुम सी लग रही  वैसे बुरा न मानों तो एक बात पूछूं ।

तो थोड़ा रूआंसी सी होती हुई ये बोली  पूछिए।

तो वो बोली सुनो न तुम्हारे घर जब से नया बच्चा आया है खुशियों की जगह मातम  पसरा हुआ है क्या तुम लोग खुश नहीं हो मुझे तो लगता है बेटी चाहिए था इसलिए………..।

इस पर ये बिलख पड़ी और बोली ऐसी बात नहीं ये जब से हुआ है हमारे घर का सुख चैन सब छिन गया है न प्यार से बात करते हैं हम लोग न ठीक से खाते बनाते हैं बस किसी तरह जिंदगी काट रहे हैं। घर का माहौल हमेशा तनाव पूर्ण रहता है।किसी तरह हम लोग पेट भरते हैं बस जीवन में कोई उत्साह नहीं रह गया ।

तो इन्होंने कहा आखिर ऐसा क्या कर दिया इसने ,इसके आने से बिजनेस में घाटा लगा  या फिर कोई मुसीबत घर आई ,हमें तो ऐसा कुछ नहीं लगता।


इस पर वो बोली नहीं दरअसल बात ये है कि हमेशा हमें कि कोसते रहते हैं कि तुम्हीं ने इसे जन्म दिया है तो तुम्हीं संभालो मेरी नज़रों से दूर रखो वरना मैं इसका गला घोट दूंगा।

अब आप ही बताइए मां हूं भला कैसे बर्दाश्त करूं।

कहते हैं मैं चला जाता हूं या तू खुद लेके कहीं चली जा।

तो ये बोली बेटे से इतनी नफ़रत क्यों आखिर ऐसा क्या हुआ बेटा पाकर तो सब बहुत खुश होते हैं फिर ऐसा क्या है चलो मैं पूछती हूं।

तो ये बोली नहीं नहीं आप मत जाइए वरना अनर्थ हो जाएगा।

मैं बताती हूं सही बात क्या है फिर हाथों में हाथ लेके बोली दरअसल वो न बेटा है न बेटी वो  किन्नर है और इनका कहना है कि तुमने इसको पैदा किया है तो लेके कहीं चली जा।

अब आप ही बताइए मैं कहां चली जाऊं।

भला इसमें मेरी क्या ग़लती।

तो वो बोली हां ये बात तो है।

किसी बच्चे के जन्म में दोनों का सहयोग होता है फिर अकेले तुम कैसे जिम्मेदार हो सकती हो।

इस पर इसका माथा ठनका और सोचने लगी हां ये बात तो सही है फिर हम घर छोड़कर क्यों जाएं।

या तो दोनों मिलकर परवरिश करें या उन्हीं के समाज में इसे छोड़ आए। क्योंकि देखा जाए तो ये अर्धनारीश्वर है जिसके घर बिन बुलाए चले जाएं उनका घर खुशियों से भर जाता है। यही मनन करते हुए फिर उसी दहलीज के भीतर चली गई जिसे छोड़ने का फैसला अभी कुछ देर पहले ही लिया था।

स्वरचित

कंचन श्रीवास्तव

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