दर्शना भाभी का दर्शन शास्त्र – शुभ्रा बैनर्जी: hindi stories with moral

hindi stories with moral : पंजाब के एक छोटे से गांव की बेटी थीं दर्शना भाभी।पिता की मौत के बाद बड़े भाई ने ही पाला था। पढ़ाई-लिखाई ज्यादा कर नहीं पाईं थीं वह।उनके ही गांव के शर्मा परिवार के बड़े बेटे से शादी कर दी गई थीं उनकी,जो मध्यप्रदेश की एक सीमेंट कंपनी में डंपर ड्राइवर थे।ससुराल में आते ही माता-पिता विहीन तीन ननदों और दो देवरों को संभालने की जिम्मेदारी उन पर आ गई थी।

बचपन से परिस्थितियों से समझौता कर – कर के धीरज संचय किया था उन्होंने भर-भरकर।दो ननदों की शादी करवाकर अब पति और दो देवरों के साथ पति के साथ ही रहने लगीं थीं दर्शना भाभी। साधारण नैन नक्श की भोली सूरत वाली भाभी का सबसे छोटा लाड़ला देवर मीना का सहपाठी था कॉलेज में।सभी दोस्तों के साथ उसके जन्मदिन की दावत में घर जाना हुआ था।

पहली बार मिलकर ही भाभी बड़ी अपनी सी लगीं।उनके पति को राखी बांधने लगी थी मीना।पापा की मौत के समय सगे बड़े भाई की तरह दर्शना भाभी के पति (यशपाल )और बड़े देवर(सुरेंद्र पाल ) ने ख्याल रखा था मीना का।हमेशा अपनी छोटी बहन ही माना।

सुरेंद्र पाल शर्मा भाई साहब को सभी एस पी भैया कहते थे। दर्शना भाभी उनका बहुत लिहाज़ करतीं थीं।बात कम करती थीं उनसे।जब भी मीना ने पूछा, उन्होंने हंसकर कहा”मैं गांव की गंवार हूं रे।भाई साहब अफसर बन गए।मैं उनसे बात करने लायक कहां हूं।”उनके पति बात-बात पर उनके गंवार होने की सत्यता जताते रहते थे।मीना से अपने मन की सारी बातें करतीं थीं भाभी।

एक दिन उनके छोटे देवर ने भी खाने को लेकर उनका मजाक उड़ाया मीना के सामने।मीना को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा।कॉलेज में अपने सहपाठियों के सामने एक दिन जब फिर उसने अपनी भाभी की हंसी उड़ाई तो मीना से रहा ना गया।राजेश(भाभी का छोटा देवर)को उसने कहा”ये जो गंवार भाभी है ना तुम्हारी,उन्हीं की बदौलत आज तुम इतनी शान से ज़िंदगी जी पा रहे हो। पढ़ी-लिखी समझदार और आधुनिक भाभी मिलती ,तो कबका भाई साहब के साथ अलग रहकर अपने दो बेटों के साथ।”शायद राजेश को भी पता था इस बात का।

दर्शना भाभी की रसोई कभी व्यवस्थित नहीं होती थी। फ्रिज में पूरे एक हफ्ते का आटा सना हुआ होता था,गंज भर के कढ़ी के साथ।जब भी मीना उनके घर जाती,समेट आती थी उनकी रसोई।उनके दोनों बेटे ट्यूशन पढ़ाते थे मीना के पास।यशपाल भाई सा हमेशा चिढ़ाते “देख ले मीना,इस गंवार को किसी चीज़ का शौक नहीं।कोई पसंद ना पसंद नहीं।ना अच्छे कपड़े पहनती है,ना ही सजती संवरती है।वह हमेशा हंसकर मानो अपने गंवार होने की सहमति देती।

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एस पी भाई साहब की शादी तय हुई।बहू पढ़ी लिखी सुंदर थी। दर्शना भाभी के लिए एक बेटी जैसी ही थी देवरानी।नई बहू ने आते ही घर का नक्शा बदल दिया।जेठ और देवर उनकी तारीफ़ के पुल बांधने लगे। दर्शना भाभी को अब अपने गंवार होने का ज्यादा भरोसा होने लगा था।चुप सी हो गईं थीं वह।पहले पति,फिर देवर,बच्चे अब देवरानी ने भी गांव की दर्शना को समझाना शुरु कर दिया था गंवार का मतलब।

साल बीतते ही एस पी भाभी अपने पति के पास अरब देश चली गई।देवर भी कुरुक्षेत्र चला गया था एम कॉम करने।दोनों बेटे पढ़ाई करने पंजाब चले गए।घर में बचे यशपाल भाईसाहब और दर्शना भाभी।सेकेंड शिफ्ट ड्यूटी पर जाते हुए भाई साहब का भाभी को कहना”बुआ फड़ लंई छेती नाल”मीना को बहुत पसंद था।इतने सालों में यही पंजाबी के शब्द सीख पाई थी बोलना।समझ तो अब आ जाता था सब।

अब मीना की शादी भी तय हो गई थी। भाईसाहब आए थे शादी पर।विदा होकर मायके पंहुंची तो पता चला, भाईसाहब ने पास के एक गांव में ही घर बना लिया है बड़ा सा।

मीना उनसे मिले बिना कैसे जाती?पहुंच गई भाईसाहब के घर पर।हमेशा की तरह आज भी कढ़ाही भर कर कढ़ी बनी थी। दर्शना भाभी आज भी गंदे से सूट में थीं।चेहरे पर कुछ भी नहीं बदला था सिवाय बालों में कुछ चांदी के।हमेशा की तरह सरलता से गले लगाकर बैठाया उन्होंने।मीना ने भाईसाहब से पूछा”आप लोग तो रिटायर होने के बाद पंजाब वाले घर में जाने वाले थे।सारे रिश्तेदार के पास ही रहने वाले थे,फिर यहां घर क्यों बनवाया आपने?”

भाई साहब ने आज पहली बार दर्शना भाभी को गंवार कहे बिना” तेरी भाभी “उद्बोधन किया और कहा”तेरी भाभी ने ज़िंदग़ी में पहली बार मुझसे यही मांगा कि हम यहां रहेंगे,मैं मना नहीं कर पाया।”मीना ने आश्चर्य से पूछा”अरे आपने मेरी गंवार भाभी की बात कैसे मान ली?”

“इस गंवार को मैं हमेशा अपने हिसाब से चलाता रहा,इस बार इसने अपने हिसाब से मुझे आईना दिखा दिया।इस गंवार का फायदा उठाकर सभी शहरजादे हो गए।बुढ़ापे में मेरी गंवार भली,मैं भला,और मेरा यह गांव का छोटा घर भला।”भाईसाहब की बातें मानो किसी बड़े रहस्य का पर्दाफाश कर रही थीं।बाद में भाभी ने बताया कि बड़ी देवरानी ने बहुत अपमानित किया सभी के सामने भाभी का।

छोटा देवर भी शादी करके दिल्ली में ही बस गया।भाभी के दोनों बच्चे अब नौकरी कर रहे थे दूसरे शहर।सच में शायद कोई रहना ही नहीं चाहता था ,गंवार के साथ।भाभी ने सारी ज़िंदगी गंवार होने का दंश इतना झेला था कि अब परिवार वालों के मुंह से,यहां तक कि अपनी बहुओं के भी मुंह से गंवार सुनना उन्हें मंजूर नहीं था।

भाई साहब के रिटायर के बाद जब उनके नाम ली हुई जमीन, भाईसाहब ने बेचनी चाही ,तो वह गंवार औरत पहली और शायद आखिरी बार अड़ गई थी।किसी भी कीमत पर जमीन के कागजात पर अंगूठा नहीं लगाया उन्होंने।पति से भी साफ-साफ कह दिया कि, अब बुढ़ापे में ना तो शहर की हवा रास आएगी और ना ही लोग। मजबूरी में भाई साहब को यहां घर बनना पढ़ा।

मीना ने दर्शना भाभी को बधाई देते हुए कहा “वाह!!!!मेरी दर्शना भाभी।इतनी हिम्मत थी तुममें,तो पहले कभी विरोध क्यों नहीं किया भाई साहब के फैसले का?”उन्होंने भी चुटकी लेते हुए कहा”गांव की गंवार को इतनी आज़ादी नहीं होती,अपनी पसंद-नापसंद बताने की।अब तेरे भैया की हड्डियां में भी ताकत कम हो रही है ना,इसलिए शायद मना नहीं कर पाए मेरी जिद के आगे।

ज़िंदग़ी में मुझे हर किसी ने गंवार कहकर मेरा मान बढ़ाया है,पर बुढ़ापे में मैं किसी को यह अधिकार नहीं दे सकती।सब अपने-अपने परिवारों के साथ खुशी-खुशी रहें,और मुझे भी रहने दें।कल को मेरी ख़ुद की औलाद या बहू के मुंह से अपने लिए गंवार शब्द सुनना मैं बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगीं मीना।मैं तो बदलने से रही।मेरी बहू क्यों बदलने की कोशिश करें मुझे।मैं गंवार बनी रहने में ही ख़ुश हूं।दूर राज्य में जाकर बसने से लोभ,-,कपट और पाप ही राज करेंगे।

शुभ्रा बैनर्जी

 

 

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