ऐसा ‘कुछ भी’ नहीं है दीदी “
आंखों में कुछ तैर गया था उसने नज़रें फेर लीं।
” चलो मान लिया,
ऐसा कुछ नहीं है … फिर भी ‘कुछ तो’ है … मैं जानना चाहती हूं उस छोटे से कुछ को भी “
नैना ने मुंह दूसरी तरफ फेर लिया,
“आप जजमेंटल तो नहीं होगी ना ? मतलब सब सुनने के बाद ये सोचे,
कि मैं कैसी औरत हूं ? “
“कितनी दफा औरतों के जीवन का सच उतना सफेद और चमकीला नहीं होता है जितना उपर से दिखता”
जया ने उसे कस कर गले से लगा लिया,
“देख मैं मां तो नहीं पर मां जैसी जरूर हूं। और … तू इस दुनिया की सबसे बेहतरीन औरत है, जिसे मापने का कोई पैमाना तो मेरे पास नहीं है , अगर होता भी तो तुझे और तुम्हारे अंदर समाये हिमांशु के प्रति इस अंतहीन सागर के समान गहरे प्रेम को नहीं माप पाती “
नैना ने परतें खोलनी शुरु कीं।
इतने सालों मे उसे खुद की जिंदगी के ओर-छोर ढ़ूढ़ने में काफी मेहनत करनी पड़ रही है।
उसे लग रहा जैसे ही मन के कपाट खुलेंगे कहीं सब कुछ बह न जाए। फिर भी कहना शुरु किया।
घर में पिता , अनुराधा इन सबके आने से मैं बहुत खुश थी।
पिता जब यहां आए थे उनकी तबीयत ठीक नहीं थी। तब मैंने पहली बार उन्हें कटघरे में खड़ा किया था,
” जब तबियत खराब थी तो थोड़ा पहले आ जाना चाहिए था “
पिता भर्राए गले से ,
” मैं तो अभी इसी भाव से जला जा रहा हूं। कि कुंवारी बेटी के यहां आया हूं। उसके यहां का दाना पानी खा रहा हूं “
” मुझे तुम्हारी चिंता है नैना ,
आत्मनिर्भर हो तो भरसक मनमानी भी करती हो “
” चिंता मत करो, पिताजी मुरली वाले की कृपा से सब अच्छा ही होगा “
कुछ भी कहो,
पिता के आगमन और उन्हें अपनी चिंता में सलंग्न देख कर मन प्रफुल्लित हो गया था।
अब मैं खुश हूं, दुखी हूं या इन सबसे परे हूं, कुछ सोच पाना संभव नहीं हो पा रहा है।
इस दौरान बहुत कुछ अप्रत्याशित और अकल्पनीय भी घटा था।
” नैना मेरी प्यारी बहना, तू अपना घर बसा ले ,
जया की आवाज मिन्नतें करने वाली हैं। नैना मुस्कुराई,
“देख नैना,
अब ये स्टार वाली मुस्कान से बात नहीं बनेगी, कला साधना बहुत हो गयी “
माना कि अब तुम्हें हाई सोसाइटी मेंटेन करनी पड़ती है तथा तुमने अपने पैसों और पहुंच से सब परिवार वालों की बहुत मदद की है। जिससे सब तुम्हारे हिमायती भी बन गये हैं “
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डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -98)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi