” नैना! जरा बताना तो मैंने आज डिनर के लिए क्या बनाया है ? “
शाम को रिहर्सल से आने के बाद जैसे ही नैना बाथरूम से नहा कर निकली, अनुराधा पूछ बैठी।
विनोद भाई सोफे पर बैठे बुजुर्गों की तरह मुस्कुरा रहे थे।
” क्या चीज बनाई है, अनु मैं किस तरह बाद सकती हूं ?”
नैना ने बालों को झटकारते हुए कहा,
” याद करो , अम्मा जिसे सावन आने के कुछ दिनों पहले बनाती थी “
अच्छा … चने दाल वाली पूरी और खीर … नैना हंसी ।
अनुराधा और विनोद भी खुल कऱ हंस दिए।
डिनर कर लेने के बाद ,
नैना के हाथ से कंघा लेकर अनुराधा,
” सोफे पर आराम से बैठ जाओ और बालों को मेरे हवाले कर दो “
मुन्नी खड़ी मंद- मंद मुसका रही है।
नैना ने परमानंद का अनुभव किया।
“तुम मुझे बिगाड़ रही हो ”
कुछ देर बाद नैना ने आंखें खोलीं।
” बाबूजी ने कहा है , तुम्हारी सेवा की जाए “
” अच्छा, थोड़ी सेवा कल के लिए छोड़ दिया जाए कल औफिस में मीटिंग है उसकी तैयारी करनी है “
आगे वाले हफ्ते में नैना ने अनुराधा को कुछ आधुनिक कपड़े दिलवा दिए । और भतीजे का एडमिशन पास वाले ही प्राइवेट स्कूल के नर्सरी में करवा दिया।
अनुराधा बहुत खुशमिजाज है।
नैना को लगता है ‘खुशी’ उसकी पर्याय हो सकती है। वह पहले ही दिन से मुन्नी और दिल्ली जैसे बड़े शहर के शहरी वातावरण में घुल- मिल गई है।
नैना को भी उसके बेटे का साथ अच्छा लगता है। जब कभी वो बाहर से थकी हारी लौटती है, वो बूआ- बूआ कर दौड़ता हुआ उसके घुटनों में अपना सिर छिपा लेता है।
तब नैना को महसूस… होता है ,
” कि सब कुछ ठीक चल रहा है , उसकी हिम्मत दोगुनी हो जाती है। वह बांहें खोल जिंदगी को गले लगाने के लिए आतुर हो जाती है “
दरवाजे की घंटी बजी।
दरवाजा खोलने गए विनोद के साथ आने वाला आंगतुक नैना द्वारा अप्वाइंट किया गया उसका सी ए कुमार है।
” आओ कुमार ,
कहो कैसे आना हुआ ?”
मैडम, अच्छी खबर ले कर आया हूं आपके पिछले सारे लोन पूरे हो गए हैं।
राॅय बाबू अगले हफ्ते कलकत्ते वापस लौटना चाह रहे हैं। इससे पहले वे अनुबंध पर अदालती मुहर लगा देना चाहते हैं।
” हां समझ रही हूं,
अब हमें व्यक्ति से ज्यादा कैरियर पर ध्यान देने की जरूरत होगी। अगर मुरली वाले की कृपा बनी रही तो जिम्मेदारी बखूबी निभा पाऊंगी।
सारे लोन चुक जाने के बाद अब उसके मार्ग में कोई बाधा नहीं है।
नैना ने हामी भरी।
” उम्मीदों के पीछे कोई तर्क नहीं होता है। साथ ही उन्हें पूरी करने की चाह हम कलाकारों में स्वाभाविक रूप से होती है। “
नैना ठंडी सांस भरती हुई ,
” सब किस्मत का खेल है। पिछले महीने की तुम्हारी कितनी पेमेंट बाकी है। मुन्नी जरा मेरी चेकबुक ले कर आना “
अनुराधा अपनी ट्रेनिंग सेंटर के लिए निकल पड़ी थी।
नैना ने सिर के नीचे कुशन रखा और वहीं कार्पेट पर लेट गई ।
कभी- कभी उसे अपने आसपास का सारा कुछ अवास्तविक लगने लगता है। एक माया के जाल जैसा जो कहीं आंखों के सामने से पल भर में विलीन ना हो जाए ?।
उसने अपने लिए इतने फैले हुए संसार की कल्पना कभी नहीं की थी।
कुछ लोग बेवजह उससे बात करने की कोशिश करते हैं। लेकिन वो किसी को भी घर नहीं बुलाती है।
अजनबियों के घेरे के बीच एक शोभित और दूसरे हिमांशु को छोड़ कर किसी का भी घर में प्रवेश वर्जित है।
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डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -94)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi