कहानी के पिछले भाग के अंत में आपने पढ़ा के, अंगद के सवाल से सुरैया भावुक हो जाती है, पर क्या उसने, उसके रोने की असली वजह बताई..?
अब आगे…
सुरैया: सर जी..! कहां आप पढ़े-लिखे एक बड़े अफसर और कहां में एक गांव की मामूली सी लड़की..? माना आपको अपना फर्ज निभाने के दौरान, मुझसे शादी करनी पड़ी और तब मेरी मानसिक अवस्था भी ऐसी नहीं थी कि, यह सबकुछ रोक या समझ पाती.. पर अब तो सब समझती हूं ना..? फिर क्यों जबरदस्ती उस रिश्ते को ढोना..? जिसमें कोई लगाव या प्यार ही ना हो… और आपको मेरे लिए बुरा महसूस करने की भी कोई जरूरत नहीं… मैं बिल्कुल ठीक हूं… आप एक बार जब अपने घर वापस चले जाइएगा, देखिएगा इस सुरैया को ज्यादा दिनों तक याद भी नहीं रखिएगा..
अंगद: और तुम..? तुम भी मुझे भूल जाओगी..?
सुरैया: हां तो और क्या..? जिंदगी के सफर में आगे बढ़ते ही रहना है… लोगों का क्या है..? आते जाते रहते हैं… और वैसे मेरी दादी का और मेरा एक दूसरे के साथ होना ही काफी है…
अंगद कुछ नहीं कहता और सुरैया भी अपने घर चली जाती है.. शाम को अंगद सुरैया के घर आकर कहता है…. दादी..! आपका आशीर्वाद लेने आया हूं… कल मैं यहां से जा रहा हूं… आप लोगों से मिलकर बहुत ही अच्छा लगा…
सुरैया भी वहीं बैठी सब्जियां काट रही थी… अंगद की जाने की खबर सुनकर उसने अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी पर, उसका दिल जोरो से धड़कने लगा… उसकी बेचैनी वह शायद बयां ही नहीं कर सकती… मानो उसकी कोई अमूल्य चीज छिनने वाली हो… मैं तो यही चाहती थी, फिर क्यों मेरा दिल इतना रो रहा है..? सुरैया ने मन ही मन सोचा… उसका ध्यान कहीं और होने की वजह से उसकी उंगली कट गई, अंगद दौड़ कर आता है और दादी से शक्कर मांग कर उसके चोट पर लगाने लगता है… फिर वह सुरैया से कहता है… जब तन और मन दोनों एक दूसरे से लड़ रहे हो, तो ऐसा होना तो स्वाभाविक है…
सुरैया अंगद के इस बात का मतलब तो समझ रही थी, पर उसे खुद को पत्थर बना कर रखना था… वरना जो वह आज कमजोर पड़ी, तो उसके सारे जज्बात बाहर आ जाएंगे..
अंगद: ठीक है दादी..! अब मैं चलता हूं.. इतने में उसका फोन बज उठा और वह हेलो कहकर बाहर निकल गया… सुरैया भी उसके पीछे गई, शायद आखरी दफा उसे देखने…
अंगद फोन पर: नहीं मां…! पता नहीं मैं बड़ा ही बेचैन हूं… यह सच है कि मैं भी इस शादी को निभाना नहीं चाहता था, पर आज यहां से सब कुछ छोड़ कर जाते हुए, उसे छोड़ कर जाते हुए, बड़ी तकलीफ हो रही है… जिस दिन से मैंने यहां अपने कदम रखे हैं, बस उसकी तरफ ही खिंचा चला गया… यह जानते हुए भी उसकी हालत कैसी है..? मैं उससे खुद को दूर नहीं रख पाया… आज जब उसने खुद ही मुझे मना कर दिया, फिर भी उसके पास ही जाने को मेरा दिल कर रहा है… मैं क्या करूं मां..? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है…
सुरैया यह सारी बातें सुन लेती है और रोते-रोते अपने घर के अंदर चली जाती है… दादी भी उसकी हालत समझ लेती है… पर वह जानती थी कि, इ माखन की बेटी है… जिद्दी… एक बार जो ठान लियो, उ करके ही दम लेवेगी…
अगले दिन अंगद जाने की तैयारी कर रहा था… इतने में कस्बे का एक आदमी अंगद के पास आकर कहता है, कि सुरैया की दादी अब इस दुनिया में नहीं रही…
अंगद दौड़ता हुआ सुरैया के घर पहुंचता है… जहां सुरैया बुत बनी बैठी थी…
अंगद: सुरैया..! अचानक से दादी को क्या हुआ..? कल तक तो ठीक थी..?
सुरैया एक हल्की सी मुस्कान के साथ कहती है… हां.. इस बुढ़िया ने अपनी चाल चल दी…
अंगद अपनी भौंहे सिकुड़ते हुए: यह कैसी बातें कर रही हो तुम..? इतना बड़ा हादसा हो गया और तुम मुस्कुरा रही हो..? कहीं वापस से तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया..?
सुरैया: मेरा दिमाग कभी सही होना ही नहीं चाहिए था, तो सारे झंझटो से बच जाती… दादी को लगा, इसके मर जाने से मैं आपसे अपना ब्याह नहीं तोडूंगी… क्योंकि मैं इसके भरोसे ही आप से हुई शादी को इंकार कर रही थी… तो इसलिए इसने खुद को ही हटाना मुनासिब समझ लिया..
अंगद: पर तुम यह सब इतने यकीन से कैसे कह सकती हो..?
सूरैया ने अंगद को एक दूध का गिलास दिखाया, जिसमें धतूरा कुटकर मिलाकर पिया था दादी ने…
अंगद: सुरैया..! अगर तुमने यह सब ना किया होता, तो शायद दादी आज जिंदा होती…
सुरैया: पर अब भी मैं अपने फैसले पर अडिग हूं… यह मत समझिएगा के दादी के ना रहने पर, मैं अपने रिश्ते को मान लूंगी… आप चले जाइए सर जी..! दादी ने अपनी मर्जी चला ली… अब मैं भी अपनी मर्जी की मालिक हूं….
अंगद गुस्से में वहां से निकल जाता है और इधर सुरैया अपनी दादी के क्रियाकर्म में लग जाती है… आखिर सुरैया के इस बेरुखी और पत्थरदिली का राज क्या था..? जबकि वह अंगद को दिल ही दिल बहुत चाहती थी…
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दर्द की दास्तान ( भाग-22 ) – रोनिता कुंडु : Moral Stories in Hindi