कहानी के पिछले भाग के अंत में आपने पढ़ा, के सुरैया अपने और अंगद की शादी को मानने से इंकार कर देती है… जिससे उसकी दादी काफी नाराज हो जाती है..
अब आगे..
दादी: अब तोहार का होई..?
सुरैया: दादी..! कोई भी भला इंसान एक पागल के साथ शादी कर लेता है… क्योंकि उस वक्त वह एक काम पर होता है, उसने मेरे बाबा के कातिलों को पकड़ने में, मुझे इंसाफ दिलाने में, मेरी इतनी मदद की… क्या यही कम बड़ी बात है..? जो अब उसके गले पड़ जांऊ…? दादी..! मैं उनके लायक नहीं हूं… आप यह क्यों नहीं समझती..?
दादी: जब तू पागल रहे, उ तब तोहार से ब्याहे रहो… फिर अब तो तो तू ठीक हो… फिर तो कोई सवाल ही ना उठो है और सबसे अलग… उका ई शादी से कोनो दिक्कत ना रहे.. फिर तू काहे आपन पैरन मां कुल्हाड़ी मारले..? अभी तो हम जिंदा हई, पर इ बुढ़िया भी कब तक जिंदा रही..? फिर तोहार का होई..? अकेला पाकर फिर एक आनंद आ धमकी… बेटा..! जमाना बड़ा खराब हो… जहां एक अकेली लड़की का देख सब भूखा भेड़िया बन जात है…
सुरैया: मानती हूं.. अब मैं ठीक हो गई हूं… पर क्या यह कभी ठीक हो सकता है, कि मैं एक बलात्कार पीड़िता हूं..? कोई भी भला आदमी उस लड़की के साथ रिश्ता क्यों निभाएगा..? जो अपनी इज्जत पहले से ही गवा चुकी है… एक बच्चा भी गिरा चुकी है..
दादी: तो इ सब मां तोहार कछु गलती रहे का..? और इस सब बात बबुआ से छुपल भी नाही है…
सुरैया: ओहो दादी..! कैसे समझाऊं आपको..? जब हम अस्पताल में थे, सर जी की मां का फोन आया था… वह तो मेरे पास से उठकर बाहर चले गए, पर मैं उनकी बातें सुनने के लिए उनके पीछे गई, वह बात तो शायद वह मेरे सामने कभी कह पाते… शायद उनकी मां हमारी शादी के बारे में ही पूछ रही थी… तो उस पर सर जी ने कहा… हां मां..! हमारे काम में ऐसे बहुत सारे काम होते हैं जिसे, करने में हमारी मर्जी नहीं होती… पर फिर भी करना पड़ता है… अब सब कुछ अचानक से छोड़कर तो नहीं आ सकता ना..? हां… पर जल्दी आने की कोशिश जरूर करूंगा…
उनकी बातों से साफ जाहिर हो रहा था, कि वह इस शादी को लेकर चिंतित है… और मैं बोझ बन गई उन पर… इसलिए उनकी चिंता को मैंने ना कहकर अपनी तरफ से ही खत्म कर दिया… वह बहुत ही भले इंसान है, मुझे मना करके वह कभी मेरा दिल नहीं दुखाएंगे.. मुझे यह पता था, इसलिए मैंने ही उन्हें मना कर दिया, और उनके बोझ को हल्का कर दिया.. ताकि यहां से वह बिना किसी दुविधा के चले जाए, वह फरिश्ता है दादी… मेरा और उनका कोई मेल नहीं…
अगले दिन अंगद ना तो सुरैया के घर आया और ना ही उसको किसी ने कस्बे में देखा… सुरैया को लगा वह जाने के लिए इतना उत्सुक था के, मेरे मना करते ही यहां से चला गया… सुरैया थोड़ी उदास तो हुई, पर फिर वह अपने आप को सामान्य दिखाने लगी… तभी गांव का एक आदमी आकर दादी से कहता है… अम्मा..! उ नया मास्टर का तबीयत बहुतेई ही खराब हो, सुबह से बिस्तर पर पड़ो है… उ तो मोहन काका ओका दूध देवे गए रहो, तो पता चलो…
सुरैया भी वही थी… यह खबर सुनते ही वह दौड़ी अंगद के घर, तो देखा अंगद बिस्तर पर पड़ा कराह रहा है.. सुरैया फटाफट से उसके लिए काढ़ा बनाकर ले आती है और काढ़ा पिलाने के बाद, अंगद के सर पर पानी की पट्टी करने लगती है… उसके बाद सुरैया वहीं रहकर अंगद की सेवा करने लगती है… धीरे-धीरे अंगद ठीक होने लगा… वह देखता है उसके कुछ भी कहने से पहले ही, सुरैया सब कुछ उसके सामने हाजिर कर देती है… एक दिन वह सुरैया को एकटक देखे जा रहा था और शायद कुछ पूछना भी चाहता था…
सुरैया: क्या पूछना चाहते हैं सर जी..? यही कि मैं यहां हूं..? अपने घर नहीं जा रही..? आप चिंता मत कीजिए… आप एक बार ठीक हो जाइए… मैं चली जाऊंगी… आप भी अपनी मां के पास चले जाइएगा… आखिर उनको भी आपकी फिक्र सताती होगी…?
अंगद: मां…? तुम्हें कैसे पता..?
सुरैया: क्या पता..? आपकी मां है यह..? मां तो सबकी होती है ना..? तो जाहिर है आपकी भी होगी… हां कुछ एक जन्म से बदकिस्मत होती है… खैर छोड़िए… यह सारी बातें… आपके लिए खिचड़ी बनाई है, अभी वह खाकर, यह काढ़ा पी लीजिए…
अंगद: नहीं मुझे नहीं खानी खिचड़ी और ना ही यह काढ़ा पीना है…
सुरैया: हां समझ आ रहा है कि, तबीयत ठीक हो गई है… वरना अब तक क्या दे रही थी..? कुछ सुध भी था..? अब चुपचाप कुछ दिन और यह सब खा लीजिए… बाद में जो मर्जी वह खा लीजिएगा… अब आपको लग रहा होगा कि, मैं एक पत्नी की तरह आपके ऊपर हुकुम चला रही हूं…. पर नहीं.. यह बस दोस्ती ही समझ लीजिए…
अंगद चुपचाप उसकी बातें सुनता रहा… ना जाने क्यों सुरैया की बातें बहुत अच्छी लग रही थी..? फिर सुरैया कहती है… एक बात पूछूं आपसे..? यहां से जाने के बाद, हम सबको याद रखिएगा या भूल जाइएगा..? मतलब अब हम तो आपसे मिलने शहर जा नहीं पाएंगे… पर आप तो कभी कबार आएंगे ही ना..?
अंगद उसकी इस बात पर उसे एकटक देखे जा रहा था… सुरैया उससे नजरे चुरा रही थी… और चाहकर भी सुरैया अंगद के लिए अपनी भावनाओं को छुपा नहीं पा रही थी…
अंगद: तुम्हारे सवाल का जवाब देने से पहले, मेरे एक सवाल का जवाब तुम दोगी क्या..?
सुरैया: हां पूछिए…
अंगद: तुमने हमारी शादी को मानने से इंकार क्यों किया..? क्या सच में तुम ऐसा ही चाहती हो..?
सुरैया अब तक जो अपनी भावनाओं को छुपाने की कोशिश कर रही थी, अंगद के इस सवाल से अपने आंसुओं को रोक ना सकी… पर क्या उसने अंगद को सच बताया, या फिर उसने अपने आंसुओं को कोई और ही नाम दे दिया..? जानेंगे अगले भाग में…
अगला भाग
दर्द की दास्तान ( भाग-21 ) – रोनिता कुंडु : Moral Stories in Hindi