कहानी के पिछले भाग के अंत में आपने पढ़ा, के सुरैया और उसके पिता उस बस पर चढ़ जाते हैं… पर सुरैया अंगद से कहती है, यही उसकी सबसे बड़ी भूल होती है..
अब आगे..
हम बस पर चढ़कर बैठ गए और थके होने की वजह से, थोड़ी देर बाद ही हमारी आंख लग गई… शायद हम बस में खुद को सुरक्षित महसूस कर रहे थे… मैं भी चैन से सो रही थी और रत का वक्त, चारों तरफ शांति, बस भी सरपट सड़क पर दौड़ी चली जा रही थी… अचानक मेरी नींद बाबा के शोर से खुली…
बाबा: रोको बस..! हमें यही उतरना है… मैं कह रहा हूं, रोक दो बस..!
मैं भी अचंभित थी, के क्यों बाबा ऐसा कह रहे हैं..? फिर मैंने बाबा से इसका कारण पूछा… क्या हुआ बाबा.? आप इस बस को क्यों रुकवा रहे हैं..?
बाबा: जरा बाहर झांककर देख..! तुझे सब खुद ब खुद समझ आ जाएगा…
मैंने जब बाहर झांका, तो मेरे होश ही उड़ गए..
अंगद: ऐसा क्या देख लिया तुमने..?
सुरैया: हम वापस अपने कस्बे की रास्ते की ओर ही जा रहे थे…
अंगद: क्या कस्बे की ओर… पर वह कैसे..?
सुरैया: हमारा घर से भागना, हमारी योजना, सभी कुछ आनंद और महेंद्र को मालूम पड़ चुका था… और इसलिए उन्होंने हमारा पीछा करने की जगह, हमें वापस इसी कस्बे में लाने की ठानी.. क्योंकि यही एक जगह थी, जहां वह जो चाहे कर सकते थे… ऊपर से उन्हें पूरा सहयोग मिलता… अगर गलती से उन्हें किसी ने कोई जुर्म करते देख भी लिया, तो भी वह सुरक्षित ही रहेंगे…
खैर उस बस ड्राइवर ने बाबा की एक भी बात नहीं मानी और अंत में हम आ पहुंचे, हमारे कस्बे के स्कूल में… हमें बस से जबरदस्ती उतारा गया और फिर महेंद्र प्रताप ने उस बस ड्राइवर को जाने का इशारा किया.. उसका इशारा पाते ही, वह बस वहां से नौ दो ग्यारह हो गई… मेरी धड़कन इसी तेज चल रही थी कि, मैं बता नहीं सकती… फिर आनंद मेरे सामने आकर मेरे केश पकड़कर, मेरे बाबा से कहता हैं… माखनलाल..! अगर हमारे मुताबिक चलते तो, आज तेरी बेटी का वह हाल नहीं होता जो, अभी इसके साथ होने वाला है… अब तू अपनी आंखों के सामने अपनी बेटी की इज्जत लुटते हुए देखेगा…
बाबा: खबरदार…! जो सुरैया को छूने की कोशिश भी की.. अंजाम बहुत बुरा होगा… तुम लोग सब पछताओगे… तुम्हें नहीं पता, मैं कहां तक पहुंच चुका हूं…? अब भी वक्त है… इस कस्बे को छोड़कर चले जाओ, वरना कहीं इतनी देर ना हो जाए, कि चाह कर भी तुम लोग यहां से सही सलामत जा ना सको..
महेंद्र: अरे माखनलाल..! तेरी बात सुनकर तो ऐसा लगता है, मानो मैं नही, तू ही नेता है… ठीक है..! चल तेरी भी पहुंच देख ही लेंगे… पर पहले जो करने तुमरी बेटी को यहां लाए हैं, वह तो कर ले..
यह सब कहते हुए सुरैया, बिलख बिलख कर रोने लगी… इस पर अंगद उसे पानी ला कर देता है और कहता है.. सुरैया..! आगे क्या हुआ होगा..? मैं समझ गया… पर फिर भी तुम्हें अपनी जुबान से कहना होगा… मेरा बस चलता तो इस प्रक्रिया को यहीं रोक देता, पर मैं भी कानून के हाथों मजबूर हूं…
सुरैया: उसके बाद जो हुआ, यह कोई भी अनुमान लगा नहीं सकता… फिर आप कैसे समझ गए, बिन मेरे कहे..?
अंगद: एक अकेली लड़की, घनी काली रात, चारों तरफ से भेड़ियों का झुंड और उसके साथ हो भी क्या सकता है..? आखिर एक पुलिस वाला हूं… इतना तो समझ ही सकता हूं…
सुरैया: सिर्फ मेरा बलात्कार हुआ होता, तो फिर भी मैं कहती कि आपने सही समझा… पर..?
अंगद: सिर्फ बलात्कार नहीं हुआ…? तो फिर और क्या..? ओह तुम्हारे बाबा की हत्या भी…?
सुरैया: और भी बहुत कुछ सर जी… और भी बहुत कुछ… ऐसे ही मैंने, अपना दिमागी संतुलन नहीं खो दिया… यह लोग इंसान नहीं.. हैवान है… हैवान…
इतना कहते ही सुरैया की हालत बिगड़ने लगी और वह जोर-जोर से सांसे लेने लगी…
अंगद उसकी बिगड़ती हालत को देख, अपनी कानूनी प्रक्रिया रोक देता है और उसे दवाई देकर, सोता छोड़ कमरे से बाहर चला जाता है… पर अब उसकी बेचैनी और बढ़ गई थी… आखिर इतना क्या भयंकर घटा था..? जो सुरैया इतनी बेचैन हो गई… यही सोचते हुए आनंद अगले दिन आएगा, दादी से कहकर चला जाता है… क्या बताती है सुरैया अगले दिन..? यह जानेंगे अगले भाग में…
अगला भाग
दर्द की दास्तान ( भाग-19 ) – रोनिता कुंडु : Moral Stories in Hindi