कहानी के पिछले भाग के अंत में आपने पढ़ा के, विभूति अंगद के मुंह से सुरैया के ठीक होने की खबर से विचलित होकर, हड़बड़ाता हुआ अंगद के घर से निकल जाता है..
अब आगे…
अंगद अब एक अनहोनी की आस कर रहा था… क्योंकि उसने इस अनहोनी को खुद दावत दिया था.. अगले दो दिनों तक अंगद सतर्क बैठा रहा, कि अब उसे किसी संकट की खबर मिलेगी.. पर वह हैरान था, क्योंकि ऐसी कोई भी खबर उसे नहीं मिली.. वह आगे क्या करेगा..? यही सोच रहा था कि, इतने में विभूति भागता हुआ उसके पास आया..
विभूति: मास्टर जी..! बड़ा गजब हो गया..
अंगद: क्यों क्या हुआ..?
विभूति: सुरैया की दादी का कछु पता नाहीं चल रहा है… पता नाहीं कब से गायब है..? वह तो सुबह जब उसे किसी ने दुकान खोलते नाहीं देखा… तब पता चला वह पूरे कस्बे में कहीं नाहीं है..
अंगद तो समझ रहा था कि, हमला उस पर या सुरैया पर होगा… लेकिन इस सतर्कता में उससे एक गलती हो गई… उसके दिमाग से दादी निकल ही गई… पर अब क्या करें..? जो जाल उसने बिछाया था, उसमें सबसे पहले वही जा फंसा…
अंगद हड़बड़ाकर घर से निकलने ही वाला था, कि उसे सुरैया को अकेला नहीं छोड़ना चाहिए, यह बात याद आ गया.. फिर अगले ही क्षण उसने सोचा के, शिकार को पकड़ने के लिए चारा तो डालना ही पड़ेगा… यही मौका है.. सुरैया को अगर यह पकड़ कर ले जाए, तो मैं भी उनका पीछा कर दादी और उन लोगों तक पहुंच जाऊंगा…
फिर अंगद विभूति से कहता है… सुनो विभूति..! मैं दादी को ढूंढने जा रहा हूं.. जो वह ना मिली, फिर जाऊंगा पुलिस स्टेशन.. तुम तब तक सुरैया का ध्यान रखना..
अंगद ने जानबूझकर यह बात कही, ताकि सुरैया को जब अकेला पाकर, वह लोग उसे लेने आए, वह भी उन तक पहुंच सके..
अंगद यह कहकर जैसे ही जाने लगा, विभूति कहता है… ठहरो मास्टर जी..! अब आप अकेले-अकेले, दादी को ढूंढने के लिए कहां-कहां भटकेंगे..? हम आपका काम आसान कर देते हैं…
यह कहकर विभूति अंगद को पीछे मुड़ने का इशारा करता है… अंगद हैरान विभूति के इस बात से, जब पीछे मुड़ता है, तो देखता है… एक गाड़ी में दादी बेहोश पड़ी है… आनंद और उसके जीजा भी उसी गाड़ी में बैठे हैं… इससे पहले अंगद कुछ कह पाता…
विभूति: ज्यादा जोश या हिम्मत दिखाने की जरूरत नाहीं है मास्टर जी..! जाकर सुरैया को ले आइए और इसी गाड़ी में आप दोनों भी बैठ जाइए..अंगद तो पहले ही जान चुका था के भभूति कैसा है..? पर फिर भी वह अनजान और हैरान होने का नाटक कर कहता है… विभूति..! मैं तो समझ रहा था, के तुम बहुत भले इंसान हो और इस कस्बे की भलाई का सोचते हो… पर आज तुम्हारा यह चेहरा देखकर मैं तो हैरान हूं…
विभूति: वैसे हम एक अच्छा इंसान ही है, पर सिर्फ अपने लिए… जहां फायदा, वहां विभूति…
इससे पहले अंगद कुछ और कहता, कुछ लोग अंदर से सुरैया को पकड़कर ले आते हैं… अंगद चुपचाप यह सब घटता हुआ देख रहा था… उसने एक योजना बनाई थी… पर यहां उसके योजना के विपरीत ही सब कुछ चल रहा था…
हम जो सोचते हैं, वह कहां होता है..?
और जो नहीं सोचते, वही हो जाता हैं…
इस योजना को कैसे अपने हित में लाया जाए..? अंगद अब यही सोच रहा था है… फिर आनंद की गाड़ी एक सुनसान से खंडहर में आकर रुकी और सब को खींचकर बाहर निकाला गया…
आनंद: जीजा जी..! आप लोग यहां इन मास्टर से निपटो… मैं और सुरैया, जरा एकांत में घूम कर आते हैं…
महेंद्र: तुझे अब भी यही सब सुझ रहा है..? यहां हम क्या करने आए हैं..? बस यही याद रख… वरना हमसे बुरा कोई नाहीं होगा..
आनंद: जीजा जी..! सब याद है मुझे.. पर आज ही हम सुरैया को उसके परिवार समेत खत्म कर देंगे… तो इससे पहले सोचा के आखिरी बार एक बार…? आखिर मेरी बहुत पुरानी प्रेमिका जो है.. बड़ा खिंचाव सा हैं इसके साथ…
यही सारी बातें अंगद खड़े वहां सुन रहा था… वह तो गुस्से से उबल रहा था… पर समय की मांग को देखकर, वह चुप रहने की सोचता है… क्योंकि उसे पता था, जोश में उठाया उसका एक कदम, उसकी सारी योजना को धराशाई कर देगी… एक तो पहले से ही उसकी बनाई योजना के विपरीत सब कुछ चल रहा था और अब जो उसने जोश में कोई और कदम उठा लिया, तो माहौल और भी बिगड़ सकता है…
महेंद्र: पहले इन सब को अंदर ले जाओ और इस कार को कहीं छुपा कर पार्क करो आनंद… बाद में कुछ और सोचना..
इधर सब को अंदर ले जाया जाता है और आनंद गाड़ी पार्क करने चला जाता है…
आनंद के जाते ही महेंद्र अपने आदमियों से कहता है.. सारे को एक साथ गोली मार तो तुरंत… मुझे ज्यादा झंझट नहीं चाहिए और उसके बाद इसी खंडहर के पीछे कहीं गाड़ देना सभी को…
विभूति: पर साहब जी..! इतनी गोलियां चलेगी तो काफी आवाज आएगी… जगह सुनसान है, दूर तक आवाज फैल जाएगी.. एक काम कीजिए… सब का गला रेत दीजिए.. ना कोई शोर, ना कोई शराबा… सबकी मुक्ति पक्की..
महेंद्र विभूति की इस बात पर खुश हो जाता है और कहता है… अरे वाह विभूति…! का एडिया दिया हैं..?
पर फिर वह एक और ऐसी बात कहता है… जिससे वहां मौजूद सभी अचंभित हो जाते हैं… यहां तक कि विभूति भी… क्या थी वह बात..?
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दर्द की दास्तान ( भाग-13 ) – रोनिता कुंडु : Moral Stories in Hindi