दरार – गीता वाधवानी : Moral Stories in Hindi

 सब अड़ोसी पड़ोसी और रिश्तेदार यही सोच रहे थे कि यह भी कोई उम्र है जाने की। वह भी इतने बुरे तरीके से, मासूम से बच्चे को छोड़कर। भगवान इसके साथ ऐसा क्यों हुआ, ऐसा किसी के साथ ना हो। आरती का पार्थिव शरीर आंगन में पड़ा था। 5 साल के बच्चे पार्थ को स्कूल भेज कर आरती कुछ सामान लेने बाजार गई थी। 

 वहां मुख्य सड़क पर कोई ट्रक वाला उसे ठोकर मार गया, बेचारी वहीं पर चल बसी। उसके पति सूरज को खबर की गई। वह ऑफिस से दौड़ता भागत आया। आरती की मां, बाकी रिश्तेदार और सूरजसभी रो रहे थे।पार्थ भी स्कूल से आ चुका था। उस मासूम को समझ नहीं आ रहा था कि मम्मी ऐसे सज संवरकर आंगन में क्यों लेटी हुई हैऔर सब क्यों रो रहे हैं। 

 उसने अपनी नानी से पूछा-” नानी,क्या हुआ, सब लोग क्यों रो रहे हैं? ” 

 नानी-“बेटा, तुम्हारी मम्मी हम सबको छोड़कर, भगवान के पास चली गई है। ” 

 बेचारे बच्चे को क्या पता कि उसकी मां ऐसी जगह पर गई है जहां से कोई लौट कर नहीं आता। 

 13वीं हो जाने के बाद, सूरज को समझ नहीं आ रहा था कि पार्थ को संभालू या ऑफिस जाऊं। थोड़े दिन के लिए उसने उसे नानी के साथ भेज दिया। लेकिन स्कूल छोड़कर वह  नानी के घर कब तक रह सकता था। 

 थोड़े दिन के लिए पड़ोसियों ने संभाला, कुछ दिन फिर से नानी रहने आ गई। लेकिन ऐसा कब तक चलता। आखिरकार सब ने सूरज से कहा कि तुम्हें पार्थ  की खातिर विवाह कर लेना चाहिए। अब जबकि  पार्थ को कभी भी अपनी मां नजर नहीं आती थी, तो उसे लगने लगा था कि हां मां चली गई है। उसे अपनी मां की बहुत याद आती थी और वह उदास हो जाता था। कभी-कभी वह बहुत चिड़चिड़ा हो जाता था। अब वह पढ़ाई में भी पिछडने लगा था। 

 ऐसा लगता था उसकी आंखें हर वक्त आरती को खोज रही हैं। उसकी आंखों से उदासी और सूना पन छलकता था। 

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 उसके स्कूल से बुलाए जाने पर सूरज उसके स्कूल गया। उसकी शिक्षिका ने बताया कि  पार्थ कभी भी किसी भी बच्चे से  उलझ जाता है, कभी अचानक रोने लगता है और इसका मन पढ़ाई में नहीं लगता है, जबकि पहले ऐसा नहीं था। 

 सूरज हालात समझ रहा था, पर फिर भी उसने सारा गुस्सा पार्थ पर निकाल दिया। उसने उसे बहुत डांटा। पार्थ कमरे में जाकर मां की तस्वीर लेकर बहुत रोया। एक दिन स्कूल से वापस आने पर उसने देखा कि उसकी माँ की साड़ी पहने कोई खड़ा है। पीछे से देखने पर उसे बिल्कुल अपनी मांँ लगी। वह पीछे से उस औरत से लिपट गया और बोला,, ” मम्मी आप आ गई? मैं बहुत अकेला हो गया था, पापा भी बहुत डांटते हैं, अब आप मुझे छोड़कर कभी मत जाना। ” 

 फिर वह औरत  जैसे ही पलटी, पार्थ उसे छोड़कर दूर जाकर खड़ा हो गया और उसकी शक्ल देखकर कहने लगा, ” आप मेरी मम्मी नहीं हो, आप कौन हो, आपने मेरी मम्मी की साड़ी क्यों पहनी है, इसे उतार दो। ” 

 सूरज यह सुनकर  जोर से चिल्ला कर बोला, ” पार्थ यह क्या बदतमीजी है, कैसे बात कर रहे हो, नई मम्मी है। ” 

 नई मम्मी, जिसका नाम  अर्चना था। उसने सूरज को चुप रहने का इशारा किया और खुद पार्थ से बोली-” मुझे तुम्हारी मम्मी ने भेजा है, मैं भगवान जी के घर उनसे मिली थी। उन्होंने बताया कि पार्थ बहुत अच्छा बच्चा है और तुम उसका ध्यान रखना। मैं आपका ध्यान रखने आई हूं। ” 

 पार्थ अपने कमरे में चला गया। थोड़े दिन तक सब शांत था। एक दिन अर्चना ने राजमा चावल बनाए। स्कूल से आने पर पार्थ ने खाना खाने से मना कर दिया। सूरज ने  उसे फिर से बहुत डांटा। अर्चना उसे बार-बार समझाती थी, कि इतना छोटा बच्चा है अपनी मां को खो चुका है उसे बात-बात पर डांटा मत करो, ऐसे आप दोनों के बीच में दरार पड़ जाएगी। वह तो ना समझ है पर आप तो समझदार हो। ऐसे आपके रिश्ते में दूरियां बढ़ती जाएगी। जो भी कहना हो प्यार से समझाया करो। ” 

 फिर एक दिन अर्चना को पता लगा कि वह प्रेग्नेंट है, उसे बहुत खुशी थी और चिंता भी थी। उसने एक प्यारी सी गुड़िया को जन्म दिया। 

 पार्थ ने उससे एक दिन कहा, ” मेरी मम्मी ने मुझे बताया था कि जब शादी होती है तो परी एक बेबी देकर जाती है, अब तो आपको गुड़िया मिल गई, अब मुझे  आप प्यार नहीं करोगे और पापा पहले से भी ज्यादा डांटेंगे क्योंकि वह अभी भी छोटी गुड़िया को उठाकर घूमते हैं और प्यार करते हैं। मुझे छोटी गुड़िया बिल्कुल अच्छी नहीं लगती। ” 

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 अर्चना की आंखों में आंसू आ गए थे क्योंकि वह उसे नन्हे बच्चे के  भाव अच्छी तरह समझ रही थी, जो वह ठीक से कह नहीं पा रहा था। 

 एक बार पार्थ ने बाहर खेलने में, ज्यादा समय लगा दिया तो सूरज ने उसे डांटा, तब पार्थ ने  गुस्से में, छोटी गुड़िया के मुंह से दूध की बोतल छीन ली और बोतल को जमीन पर पटक कर चला गया। सूरज को बहुत गुस्सा आया और उसने पार्थ को एक तमाचा जड़ दिया। 

 पार्थ मम्मी मम्मी करता हुआ बहुत रोया। अर्चना ने उसे बहुत संभालने की कोशिश की। थोड़ी देर बाद जब पार्थ कमरे से बाहर आया तो उसने सुना, अर्चना सूरज से कह रही थी-” इतना छोटा और प्यारा बच्चा है, आप उसे इतना क्यों डांटते हो, और आज तो आपने हद ही कर दी, उसे पर हाथ उठा दिया। आइंदा आप ऐसा करोगे तो, मैं आपसे बात नहीं करूंगी। ” 

 पार्थ को अर्चना में अपनी मम्मी नजर आने लगी थी। एक दिन अर्चना जानबूझकर गुड़िया को लिटा कर नहाने चली गई। वह देखना चाहती थी कि गुड़िया को रोता देखकर पार्थ क्या करता है, क्या वह गुड़िया से सचमुच नफरत करता है या फिर अपनी तरफ से सूरज को तंग करने के लिए गुड़िया से चिढने का बहाना करता है। 

 गुड़िया ने रोना शुरू कर दिया था। पार्थ ने देखा कि  मम्मी नहाने गई है। उसने अपने छोटे-छोटे हाथों से गुड़िया की बोतल उठाई और उसमें दूध डालकर गुड़िया को गोद में लिटाकर दूध पिलाने लगा। सूरज भी दरवाजे के पीछे छिपकर  यह सब देख रहा था। उसे दरवाजे के पीछे छुपने के लिए अर्चना ने ही कहा था। 

 दूध पिलाते पिलाते पार्थ बड़े गौर से गुड़िया को देखकर मुस्कुरा रहा था और गुड़िया उसे देखकर मुस्कुरा रही थी। वह बड़े प्यार से गुड़िया से कह रहा था, “पता है तुझे मैं तेरा बड़ा भाई हूं। कितनी प्यारी है तू। मेरे साथ स्कूल चलेगी? ” 

 आज सूरज भी रो पड़ा था और अपने गुस्से पर उसे अफसोस हो रहा था। धीरे-धीरे अर्चना ने  अपने प्यार से पार्थ को पूरी तरह अपना बना लिया था और अब सूरज और पार्थ के बीच में कोई दरार नहीं थी। पूरा परिवार खुश था और सुखी था। बाप बेटे के रिश्ते में जो दूरियां  आने वाली थी, उन्हें अर्चना की समझदारी ने समाप्त कर दिया था उसने पार्थ  के बचपन को मुरझाने से बचा लिया था। 

 स्वरचित, अप्रकाशित, गीता वाधवानी दिल्ली

#रिश्तो में बढ़ती दूरियां

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