दंश (भाग 1)- डॉ. पारुल अग्रवाल: Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : आज दिव्या के भाई ने अपने नए घर का निमंत्रण भेजा था। उसने फोन भी करने की कोशिश की थी। दिव्या ने निमंत्रण पत्र देखा पर उसके मन में कोई खुशी नहीं थी। यहां तक कि भाई का फोन भी उठाने का उसका मन नहीं किया। आज उसको बहुत कुछ पुराना,जिसे वो भूलना चाहती है फिर से याद आ गया।

दिव्या को लगा कि जैसे उसको पुराने घावों को फिर से किसी ने कुरेद दिया है। उसकी आंखों के सामने बचपन से लेकर अब तक की सारी यादें चलचित्र की भांति चलने लगी। 

बचपन से ही दिव्या ने मां को अक्सर बीमार देखा था पर पापा ने अपने कार्य के साथ साथ दोनों बच्चों को बहुत प्यार से पाला था। दिव्या पढ़ाई लिखाई में बहुत अच्छी थी। पढ़ने लिखने के बाद उसको बढ़िया नौकरी मिल गई थी। उसकी विवाह लायक उम्र होते ही एक अच्छे परिवार में उसकी शादी हो गई थी। वैसे तो उसका ससुराल और मायका एक ही शहर में था पर उसकी और उसके पति की नौकरी दूसरे शहर में थी।

पूरा समय नौकरी और फिर अगर कभी छुट्टी भी मिलती तो ससुराल ही रुकना होता। मायके तो वो बस थोड़ी देर के लिए ही जा पाती। दिन गुजर रहे थे। भाई ने पापा की कंपनी संभाल ली थी। एक सुंदर सी लड़की के साथ उसकी भी शादी कर दी गई। लड़की देखने में बहुत प्यारी थी।

बोलने में भी बहुत मधुर थी। दिव्या को लगा था कि अब तक उसकी कोई छोटी बहन नहीं थी। भाभी के रूप में उसको एक छोटी बहन मिल जायेगी। ये इस तरह के मधुर ताने बाने बुन ही रही थी पर कहते हैं ना कि हर चमकने वाली चीज़ सोना नहीं होती। थोड़े समय तक तो सब ठीक चला पर नई भाभी स्मिता ने धीरे धीरे अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए। 

स्मिता को सिर्फ अपने पति से मतलब था। घर पर बूढ़े सास ससुर का रहना उसको जरा भी नहीं भाता था। लोक लाज के डर से किसी तरह वो इन रिश्तों को निभा रही थी। वैसे तो दिव्या का मायके जाना बहुत कम होता था पर जब भी वो जाती तब उसके सामने स्मिता का व्यवहार बहुत अच्छा होता था पर उसके जाते ही वो सास ससुर को बहुत जली कटी सुनाती थी।

स्मिता की इन हरकतों के चलते दिव्या के माता पिता ने उसको मायके बुलाना भी कम कर दिया था। दिव्या को भी कहीं ना कहीं रिश्तों में खिंचाव तो महसूस हो रहा था पर उसने इसको अपने मन का वहम मानकर नज़रअंदाज़ कर दिया। एक बार जब दिव्या और उसके पति की ऑफिस की छुट्टी थी और वो ससुराल आई हुई थी तब उसने अपने पापा को फोन किया पर उसके पापा ने एक बार भी मायके आने के लिए नहीं कहा। दिव्या को बहुत बुरा लगा।

उसको एक बार को तो लगा कि वास्तव में माता-पिता ने उसको पराया कर दिया। फिर भी उसको लगा कि कुछ बात जरूर है नहीं तो पापा ने तो कभी उससे इस अनमने भाव से बात नहीं की। उसका दिल नहीं माना वो बिना अपने माता-पिता को खबर किए मायके चली गई। वो ऐसे समय अपने मायके पहुंची थी जब उसका भाई भी घर पर ही था।

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दंश (भाग 2)

दंश (भाग 2)- डॉ. पारुल अग्रवाल: Moral Stories in Hindi

#जलील

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

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