घर मे हंसी खुशी का मोहोल था सुनीता जी तो बहुत ही खुश थी हो भी क्यो ना बेटी की शादी इतने अच्छे घर मे जो होने जा रही थी । हर माँ का यही तो ख्वाब होता है कि बेटी को शादी बाद ऐसा ससुराल मिले जहाँ उसे किसी चीज की कमी ना हो और जब ऐसा रिश्ता बैठे बिठाये मिल जाये तो सोने पर सुहागा वाली बात हुई । पर इन खुशियों मे ग्रहण लगा दिया एक फोन ने ….
” समधन जी बारातियों का स्वागत जरा अच्छे से करना ऐसा ना हो हमारी नाक कट जाए पहले ही गैर बिरादरी में और साधारण परिवार में रिश्ता करवा कर हम रिश्तेदारों की आलोचना सुन चुके हैं !” नीलम जी अपनी समधन यानी की अपनी होने वाली बहू की माता जी सुनीता जी से फोन पर बोली।
” जी बहनजी आप फ़िक्र ना करे !” सुनीता जी के इतना कहते ही उधर से फोन कट गया। क्योंकि फोन स्पीकर पर था तो सुनीता जी की बेटी साक्षी ने सारी बात सुन ली।
” मम्मी आप कैसे करोगे सब वो लोग ऐसे तो डिमांड पर डिमांड करेंगे मैं इसलिए इस शादी के हक में नही थी !” साक्षी मां से बोली।
” ना मेरी बच्ची तुझे इतना अच्छा लड़का मिला है जिसने खुद से तुझसे शादी की जिद करके अपने घर वालो को मनाया है तू चिंता क्यों करती है सब हो जाएगा !” सुनीता जी ने बेटी को तसल्ली देते हुए कहा।
” पर कैसे होगा माँ अभी तो मेरी नौकरी को भी ज्यादा वक़्त नही हुआ है इसलिए सेविंग्स भी इतनी नही है आप इस रिश्ते से इंकार कर दो !” साक्षी बोली।
” ना बेटा तू इन सब बातो को मत सोच और बैंक जा आराम से मैं हूँ ना सब देखने को !” चिंतित सुनीता बेटी को दिलासा देती हुई बोली।
इससे पहले की मेरी कहानी आगे बढ़े मैं आपको अपनी कहानी के पात्रों के विषय में कुछ बता दूं। सुनीता जी जिनके पति की मृत्यु उस वक्त हो गई थी जब साक्षी चार साल की थी। तब उन्हें अपने पति की जगह नौकरी मिल गई थी परिवार में सास ससुर थे जिनके सहारे सुनीता जी साक्षी को छोड़ नौकरी करती थीं। अब उनकी भी मृत्यु हो चुकी थी और साक्षी भी पढ़ लिख कर बैंक में नौकरी करती थी। वहीं पर प्रथम ( साक्षी का होने वाला पति ) मैनेजर है। ना ना एक जगह नौकरी करने से आप ये मत समझना ये प्रेम विवाह है। दरअसल प्रथम को साक्षी भा गई और उसने अपने माता पिता से उससे शादी करने की इच्छा जाहिर की। शुरू में प्रथम की माताजी को ये रिश्ता मंजूर नहीं था क्योंकि साक्षी ना तो उनकी तरह धनवान खानदान से थी ना ही उनकी जाति की । फिर भी सबके समझाने पर उन्होंने रिश्ते को हामी भर दी। किंतु अब वो शादी अपने तरीके से चाहती थीं जबकि साक्षी पहले तो ये शादी ही नही करना चाहती थी और अब वो चाहती थी उसकी मां सब अपने हिसाब और हैसियत से करें।
” साक्षी तुमसे कुछ बात करनी है शाम को कैफे चलना मेरे साथ !” साक्षी के बैंक आते ही प्रथम ने उसे अपने केबिन में बुला कर कहा।
” जी सर !” साक्षी ने कहा वो असल में बैंक में प्रथम को सर ही बोलती थी अभी भी।
” साक्षी मैने शादी का हॉल देखा है एक और कैटरर से भी बात की है मैं चाहता हूं तुम और मम्मी जी जाकर एक बार देख लो तो मैं बुकिंग अमाउंट जमा कर दूं !” शाम को कैफे में काफी और सैंडविच का ऑर्डर दे प्रथम साक्षी से बोला।
” पर प्रथम जी आप क्यों ये तो लड़की वालों का होता है!” साक्षी हैरानी से बोली।
” देखो साक्षी मैने सुबह अपनी मम्मी की सारी बात सुन ली थी जो उन्होंने मम्मी जी से कही मैं उन्हें मना नहीं कर सकता पर तुम्हारा साथ तो दे सकता हूं वैसे भी जब हम एक रिश्ते मे बंध रहे है तो हमारे घर वाले भी तो हमारे अपने हुए ना !” प्रथम ने समझाया।
” पर मम्मी इस बात को नहीं मानेंगी जैसा भी करेंगे हम खुद करेंगे इंतजाम !” साक्षी बोली।
” साक्षी बात को समझो हम एक होने जा रहे हैं, हमारे परिवार एक होने जा रहे हैं। तुम क्या चाहती हो या तो मम्मी जी पर बोझ पड़े या मेरे घर वाले नाराज रहें। जब हम पर हर बात का हल है तो क्यों परेशानी खड़ी कर इस शादी को समझौते की शादी बनानी। क्या हम समझदारी से इसे साझेदारी की शादी नही बना सकते ? थोड़ी तुम्हारी साझेदारी थोड़ी मेरी और दोनों परिवारों में भी मनमुटाव ना रहे।…बोलो !!” प्रथम प्यार से बोला।
” पर मेरी मम्मी नहीं मानेंगी इस बात को उन्होंने हमेशा से खुद्दारी भरी जिंदगी जी है !” साक्षी प्रथम को सम्मान की दृष्टि से देखते हुए बोली।
” अरे ये मुझपर छोड़ दो बेटा हूं आखिर उनका बेटे की बात तो माननी पड़ेगी उन्हें …चलो अभी तुम्हारे घर चलते हैं वही से शादी की जगह भी देखने चलेंगे !” प्रथम कॉफी खत्म कर उठते हुए बोला।
दोनों साक्षी के घर पहुंचे। सुनीता जी ने प्रथम की बात मानने से पहले तो इंकार कर दिया पर जब प्रथम ने कहा अगर आपका बेटा बोलता तब भी मना करते आप तब वो निरुत्तर हो गईं। जगह देखने की बात पर उन्होंने यही कहा की जब मेरे बेटे ने पसंद की है तो अच्छी होगी।
शादी वाले दिन इंतजाम वाकई बहुत अच्छा था प्रथम ने सब अपनी मम्मी की पसंद के हिसाब से करवाया था जिससे नीलम जी खुश तो नहीं पर हां संतुष्ट जरूर थीं। शादी बहुत अच्छे से हो गई और साक्षी प्रथम की पत्नी बन ससुराल आ गई। सुनीता जी बेटी की विदाई से थोड़ा दुखी थी पर ये तसल्ली थी कि सब अच्छे से हो गया साथ ही ये खुशी भी कि साक्षी को प्रथम जैसा समझदार जीवनसाथी मिला है और उसे दामाद के रूप मे बेटा मिला है।
प्रथम की जरा सी समझदारी और अपनत्व ने सुनीता और साक्षी के मन मे उसके लिए इज़्ज़त बढ़ा दी थी।
दोस्तों कुछ परिवारों में अभी भी बिरादरी मायने रखती जिसके लिए वो लड़की वालों पर अतिरिक्त बोझ चढ़ाने से नही चूकते पर अगर लड़का प्रथम जैसा हो तो वो दोनों घरों को एक कर सकता है। आखिर जब बहु ससुराल को अपना समझ सकती है तो दामाद क्यो नही।
आपकी दोस्त
संगीता