“आज बथुआ का रायता और पुलाव बना देना खाने में” रवि ने मम्मी से कहा तो बच्चे चहकने लगे ” वाहहहह फिर तो मिक्स आटे के पराठे और शकरकंद का हलुआ भी बनेगा।” जब कभी बथुआ का रायता बनता था। तो यही सामग्री परोसी जाती थी। सभी बच्चे जानते थे। ये मीनू दादी माँ ने ईजाद किया था।
और दादा जी को बहुत पसंद था। आज उनके विवाह की वर्षगांठ है। इसीलिए रवि ने फरमाइश की थी क्रांति से। दादी से क्रांति ने रसोई के तमाम गुण ग्रहण किये थे। सीखा तो सभी बहुओं ने था। दादी से पकवान बनाना। लेकिन क्रांति सबसे अच्छा खाना पकाती थी। रवि केक लेकर आया तो मम्मी से पूछने लगा कितने नम्बर की मोमबत्ती लगाना है।
उन्होंने मुस्कराकर कहा यह तो दादी या दादा जी बतायेंगे।
रवि असमंजस में पड़ गया जब दादाजी ने पैंसठ और दादी ने पैंतालीस आ आंकड़ा बताया। वह ताईजी के पास गया शंका निवारण के लिए। तो उन्होंने एक कहानी सुनाई। उन्होंने बताया आपकी दादी की शादी 9 वर्ष की आयु में ही हो गई थी। उन्हे रिश्तों की समझ नहीं थी। जिसका लाभ उनकी जिठानी ने उठाया और उन्हें दादी से दूर रखा। क्योंकि वे उनसे रिश्ता जोड़ लीं थीं।
पाँच छह साल तक तो आपकी दादी सासू माँ के प्यार में बँधीं रहीं। लेकिन जब उन्हें अपनी उपेक्षा का एहसास हुआ तो उनका स्वाभिमान जाग गया। उन्होंने मायके का रूख कर लिया। वे कहकर गईं थीं। “वे ससुराल तभी आयेंगी जब उनके पति उन्हें लेने आयेंगे अपनी गलती स्वीकार कर के” उन्होंने आगे पढ़ाई की और नौकरी भी करने लगीं थीं।
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लेकिन इस बीच यहाँ की स्थिति बदल गई। दादाजी की भाभी घर छोड़ कर अपने अन्य प्रेमी के साथ चलीं गईं।
जिसकी वजह से दादाजी को उनकी चालें समझ में आईं। और अपनी भूल का एहसास हुआ। दो चार साल तक वे साहस ही नहीं जुटा पाये दादी के पास जाने का। अपनी माँ की मृत्यु के बाद जब अकेले रहना मुश्किल हो गया। तब वे दादी को लेकर आये और गृहस्थ जीवन की शुरुआत की। तमाम विषम परिस्थितियों के कारण बीस वर्ष बीत गए थे।
इसीलिए दादी बीस वर्ष कम बताती हैं ।क्योंकि वे अपनी शादी को उसी दिन से स्वीकारतीं हैं। जिस दिन वे ससुराल में ससम्मान वापस आईं थीं। ताई जी की बातें सुनकर रवि को अपनी दादी पर बहुत गर्व हुआ। और वह उनके पैर छूने पहुँच गया।
#स्वाभिमान
—– मधु शुक्ला .