छुटकी – संध्या त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

 हाँ – हाँ जज साहब …मैंने मारा है छुटकी को… दो थप्पड़ लगाए थे वो भी कसकर …..कहकर फफक फफक कर रो पड़ी थी विनीता….. थोड़ी देर रुक कर सिसकी लेती हुई फिर अपनी बात की तारतम्यता बनाते हुए बोली ….जज साहब वो थप्पड़ की चोट जितनी उसे नहीं लगी होगी , उससे कई गुना ज्यादा दर्द मुझे हुआ था ….खूब रोई थी कमरे में जाकर मैं….आज आपको मेरी पूरी बात सुननी होगी जज साहब ….फिर आपका जो भी फैसला होगा… सर आंखों पर …..!

           मेरे घर में काम करने वाला एक नौकर बिरजू रहता है… वो अब भी काम करता है ….एक बार उसके घर (गांव ) में कुछ उत्सव था …उसके आग्रह पर हम उसके घर पहुंचे ….गांव में काफी गरीबी थी, उसके घर के कुछ दूरी पर ही उसकी बुआ का घर था ….वहां जाने पर मैंने देखा….. बुआ की चार बेटियां थी …जो पढ़ना तो दूर उनके घर में खाने की भी ठीक तरह से व्यवस्था नहीं थी …..थोड़ी सी जमीन थी भगवान भरोसे कुछ खेती कर लेते थे…।

      मैंने उन बच्चियों की पढ़ाई के बारे में पूछा …पूछा ही नहीं बल्कि चिंता भी व्यक्त की ….फिर मैं यथासंभव मदद कर एक बच्ची छुटकी को पढ़ाने का निश्चय किया… ले आई अपने घर ….बिल्कुल अपनी बच्ची की तरह रखा ….बहुत गरीब परिवार से आई थी छुटकी ….सच में , शुरू-शुरू में बहुत भूख लगती थी उसे …..जब भी पूछो , कुछ खायेगी.. छुटकी….

कभी मना नहीं करती…. धीरे-धीरे छुटकी सामान्य होती गई… बीच-बीच में मैं पूछती भी थी ….घर जाना है क्या …?  तेरा मन लग रहा है या नहीं …..पर उसने कभी घर जाने की इच्छा नहीं जताई …..कैसे मन करता जज साहब उसका …उस घर में जाने को ….जब आधे पेट भी कभी-कभी खाना नसीब नहीं होता था ….।

       फिर मैंने अपने घर के पास वाले स्कूल में दाखिला करा दिया छुटकी का….. खुशी-खुशी स्कूल जाने लगी ।  हां घर के कामों में मेरा हाथ जरूर बटाती थी …..घंटो टी वी देखना उसकी आदत बन गई थी ….मैंने शुरू  में सोचा नया  नया है इसीलिए ज्यादा उत्सुकता है ….धीरे-धीरे स्वत: ही कम हो जाएगा ….लेकिन उसकी टी वी देखने की आदत सी पड़ गई थी…।  जब तक मैं डांट कर ना उठाऊं और पढ़ने के लिए ना बोलूं…. धीरे-धीरे सभी कामों का समय निर्धारित हो गया था ….।

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     त्यौहार में कपड़े खरीदने से लेकर घर में पहनने के लिए सुविधायुक्त कपड़े   , उसकी छोटी-छोटी जरूरतों को ध्यान में रखती…. बिल्कुल माँ की तरह …..तरह नहीं माँ ही बन गई थी जज साहब …..छुटकी भी मुझे बहुत प्यार करती थी …. चाची बुलाती थी मुझे ….इसका प्रमाण तो इसी से मिलता है कि एक बार मैंने सोचा काफी दिन हो गए हैं इसे …

शायद अपने माता-पिता की याद आती होगी , छुट्टी है दो-चार दिनों के लिए उसे उसके घर भेज दूं… जानते हैं जज साहब ….जाते समय छुटकी मेरे साड़ी का पल्लू पकड़ कर बोली ….तीन दिन बाद बुला तो लेंगी ना चाची….. फिर से छोड़ तो नहीं देंगी ना वहां ……सच में जज साहब… वो तीन दिन मेरे लिए भी कठिन हो गए थे , इसमें कोई शक नहीं कि छुटकी मेरे काम में मेरा हाथ बटाती थी…।

       सब कुछ ठीक चल रहा था …दिन बीतते गए …अब छुटकी थोड़ी बड़ी भी होने लगी थी …टी वी देखने का मोह बढ़ता जा रहा था… थोड़ा भी समय मिलता तो टी वी खोलकर बैठ जाती ….मैं बहुत समझाती , समय की उपयोगिता बताती… अब तो स्कूल में काफी सहेलियां भी बन गई थी… एक बार मेरे घर के कुछ दूरी पर ही इसकी सहेली की दीदी की शादी हो रही थी …

मैंने 9:00  बजे तक लौटने को कहा था… 10:00 बज गए छुटकी नहीं आई ….मैं चिंतित थी , घर में कोई और नहीं था ….कभी-कभी लगता मैंने जाने ही क्यों दिया …कुछ अनहोनी आशंकाओं ने मुझे बेचैन कर दिया ….मैं स्वयं बिरजू के साथ उसकी सहेली के घर गई… इतना गुस्सा आया , मुझे लगा दो थप्पड़ लगा दूं ….फिर मैंने सोचा पहली बार है डांट डपट कर ही सुधारना उचित है.. नहीं तो ढीठ हो जाएगी ….।

        काफी समझाया ,बुझाया… धीरे-धीरे सहेलियों के साथ बाहर जाना , खेलना , घूमना …छुटकी को बहुत पसंद आने लगा …हालांकि मैंने दायरा समझाने की बहुत कोशिश की…. कई बार उसे देर हो जाती थी कई तरह के सवाल जवाब के बाद मैं शांत हो जाती…।

       उम्र का ये पडाव  ” किशोर अवस्था ” शायद ऐसा होता ही है… जिसमें अभिभावकों को कुछ धैर्य व दोस्त बनकर बच्चों से पेश आना पड़ता है …..और वही मैंने भी किया जज साहब…।

     उस दिन , लंबी सांस भरते हुए विनीता ने कहा …..हां जज साहब उस दिन भी हमारे गांव में वॉलीबॉल का मैच हो रहा था ….सहेलियों के साथ मैच देखने जाने की बात कह कर घर से निकली थी छुटकी ….मैंने 8:00 बजे तक आने को कहा था… पढ़ाई भी करनी है , डराया भी था…. फेल हो जाएगी… तो तेरे माता-पिता तुझे वापस ले जाएंगे ……

        पर छुटकी शायद समझ चुकी थी कि अब उसके माता-पिता उसे वापस नहीं ले जाएंगे …. क्योंकि वो बीच-बीच में आकर मुझसे पैसे ले जाते थे …. कभी खेती करने के लिए , कभी किसी काम के लिए…  उनका ये मानना है कि ….उनकी बेटी काम पर लगी है  , और यहां रहकर काम के अलावा पढ़ाई भी कर रही है …।

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      रात 10:00 बज गए थे छुटकी वापस नहीं आई …तब एक बार फिर मैं बिरजू के साथ ढूंढने निकली और सच बताऊं जज साहब….   इसे देखते ही गुस्से में मैंने दो थप्पड़ लगा दिए थे …और इसे मारने के बाद मैं खुद बहुत रोई थी , अशांत रही… सोचती रही ..ये मैंने क्या कर दिया…? 

      पर अब …आज मुझे लग रहा है मैंने दो ही थप्पड़ क्यों लगाए थे… दो-चार थप्पड़ और क्यों नहीं लगा दिए थे…. क्या है ना जज साहब , कभी-कभी लातों के देवता बातों से नहीं मानते ….!

       और देखिए ना ….इसके कुछ आवारा दोस्तों के सीखाने से इसने.. मेरे ही खिलाफ पुलिस केस कर दिया… केस करते समय ये काम करने वाली बच्ची बन गई ….बच्चों से काम कराना जो अवैधानिक है ….और मैं जो इसके लिए कर रही हूं वो क्या है….? मैंने हाथ उठाया वो जुर्म है….। मैं मानती हूं जज साहब किसी भी कीमत पर मुझे हाथ नहीं उठाना चाहिए …पर मेरे पास इसकी लापरवाहियों पर लगाम लगाने का यही एकमात्र आखिरी हथियार था…।

       आप ही बताइए जज साहब… क्या छुटकी की जगह मेरी अपनी बेटी होती तो …और ऐसा होता… तो मेरा व्यवहार क्या ऐसा नहीं होता..?

सच में , मेरी बस एक ही गलती है कि मैंने इसे अपनी बच्ची मान लिया और वही व्यवहार किया जो मैं अपनी बेटी से करती..।

” यह जीवन का सच है ” जज साहब… जब तक अपनी कोख से बच्चा ना जन्मा हो , कितना भी अच्छा व्यवहार कर लो …वो व्यवहार एक स्त्री के लिए प्रश्न चिन्ह बना ही रहता है…!

 ” मेरे कोख से नहीं जनी है ना छुटकी  इसीलिए सब सोचते हैं मेरी औलाद नहीं तो …औलाद का दर्द भी मैं नहीं समझती “….

रोते-रोते विनीता ने कहा… जज साहब आप इसे इसके अभिभावक को सौंप दें और मुझे जो सजा बनता है दें…  छुटकी के माता-पिता कोर्ट में मौजूद थे…. शायद दोस्तों के बहकाने में छुटकी ने केस तो कर दिया था पर परिणाम से अनभिज्ञ थी ….उसे फिर वही गांव जाना होगा …वो अच्छे अच्छे कपड़े …खाना और फिर स्कूल… चाची का प्यार…. सब कुछ याद आने लगा ….।

      दौड़ती हुई छुटकी विनीता के पास आई और साड़ी का पल्लू पकड़ कर बोली …..चाची और मार लीजिए…. लेकिन मैं आपको छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी …छुटकी के माता-पिता हाथ जोड़कर विनीता से कह रहे थे , मालकिन थोड़ा और कड़ाई करके रखिएगा कहीं बदनामी ना करा दे छुटकी ….वरना बिरादरी में नाक कट जाएगी ….।

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      अब भी विनीता कह रही थी अरे कुछ नहीं किया है छुटकी ने…. वो तो मेरे घर अच्छे से प्यार से रहती है ना तो जलन के मारे भड़काने वाले लोग बहुत मिल जाते हैं …फिर ये उनकी बातों में आ भी तो जाती है….. धीरे-धीरे छुटकी के सारे दोस्त वहां से रफू चक्कर हो चुके थे ….।

      जज साहब ने भी सारी वाक्या ध्यान से सुना ….फिर छुटकी से पूछा… क्या विनीता जी , जो कह रही है वो सही है …..हां जज साहब , चाची ठीक कह रही है …..मैं चाची के साथ ही रहूंगी ….।

     जज साहब ने विनीता को बच्ची पर हाथ न उठाने की हिदायत दी और केस खारिज किया…।

( स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित अप्रकाशित रचना )

साप्ताहिक विषय : # ये जीवन का सच है

संध्या त्रिपाठी

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