” चुस्की- मुस्की ” – संध्या त्रिपाठी: Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : हैलो …..हैलो…. हां मुस्की…गरम चाय की चुस्की ….कैसी है…?? भैया आप सुबह-सुबह ….?? सब ठीक तो है ना… हां मुस्की ….वो घर में मजदूर लगे हैं ना घर की पुताई हो रही है… तो मैंने सोचा …जब दोनों बच्चे अपने अपने कमरे अपने पसंद के रंग से पुताई करा रहे हैं तो तेरे से भी पूछ लूं…. तेरा कमरा कौन से रंग से पुतवा दूं…?

क्या कहा भैया… मेरा कमरा… वहां….? मुस्कान के मस्तिष्क में बीते समय के पन्ने परत दर परत खुलते गए…..

चुलबुली.. नटखट …अल्हड..भाई बहनों में सबसे छोटी…” मुस्कान “… हां मुस्कान ही तो नाम था….जिसे प्यार से सभी मुस्की कहते थे.. दोनों भाई बड़े थे जब कभी भाइयों से नोकझोंक होती तो भाई उसे मुस्की… गरम चाय की चुस्की… कहकर चिढ़ाते थे ..और मुस्कान गुस्सा हो जाती थी… फिर पापा से भाइयों की शिकायत करती और कहती पापा आपने मेरा ऐसा नाम रखा ही क्यों…?

तब पापा बोलते बेटा… तू दो भाइयों के बाद हुई थी …तो तेरे होने पर सभी के होठों में मुस्कान आ गई थी ..बस फिर क्या था हमने तेरा नाम ही मुस्कान रख दिया था…।

इसी बीच दोनों भाइयों की शादी भी हो गई… भाभियों से भी मुस्की की अच्छी बनती थी… धीरे-धीरे मुस्की बड़ी होती गई और एक अच्छे से घर में उसकी शादी कर दी गई…!

शुरू शुरू में सब कुछ ठीक चलता रहा…. फिर अचानक एक दुर्घटना में मम्मी पापा का निधन हो गया और मम्मी पापा के निधन ने मुस्कान को एकाएक बड़ी व समझदार बना दिया…. पहले वही मायका जो मुस्कान को ससुराल से भी कहीं ज्यादा अपना घर लगता था और अब उसे वही घर मायका की जगह भाई का लगने लगा था…! यद्यपि भाई भाभियों का व्यवहार गलत नहीं था औपचारिकताएं सारी निभाई जा रही थी…..

” पर कहते हैं ना…. माँ तो माँ ही होती है अनकहे और अनसुने ही सब कुछ समझ जाती है “

धीरे-धीरे मुस्कान का मायके जाना कम हो गया… भाइयों का स्वयं का परिवार बड़ा होता गया… बेटियों की शादी हो गई… नए रिश्तेदारों के बीच मुस्कान पीछे छूटती जा रही थी…।

मुस्कान को बस एक ही चीज की चिंता थी… मायके में इतना तो अपनापन या प्रभुत्व होना चाहिए कि….यदि मुझे मेरे मायके जाने का जब भी मन हो… बेझिझक जा सकूं …..! कुछ रिश्तेदारों ने तो मुस्कान को यहां तक सिखाया कि मायके में तू भी अपना हिस्सा ले… वरना एक समय के बाद मायके छूट जाएगा …..अब तो कानून ने भी लड़कियों को हिस्सा लेने के लिए वैधानिक अधिकार दे रखा है….।

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पर मुस्कान सोचती …जो भाई बचपन में मुझे इतना लाड प्यार करते थे …उनके खिलाफ ही केस कर प्रॉपर्टी में हिस्सा लूं…? जिनको देना होगा वो खुद ही देंगे …मांगने की क्या जरूरत है …! और फिर भगवान का दिया हुआ मेरे पास भी तो सब कुछ है…।

हाँ… एक बार दोनों भाइयों के बंटवारे के बात के बीच मुस्कान ने इतना तो कह ही दिया था…कि भैया मेरे लिए भी यहां जगह होना चाहिए… ताकि मैं जब चाहूं बेझिझक आ जा सकूं ….उस समय भैया ने कहा था… अरे ये तेरा भी तो घर है पगली…. और हम सब भाई बहन एक दूसरे के सहयोग के लिए हर समय… हर परिस्थिति में तैयार रहेंगे …इस तरह की बातें कहकर मुस्कान की बात टाल दी गई थी…।

अरे कहां खो गई मुस्की….लगता है फिर नाराज हो गई….. देख मुस्की तू चढ़ती है ना इसलिए चिढ़ाने में बड़ा मजा आता है ….!

अच्छा चल अब नहीं चिढ़ांऊगा….कभी नहीं चिढ़ाऊंगा….अब जल्दी से बता तेरे कमरे में कौन सा रंग करवाऊं…?

नहीं भैया …चिढ़ाईये ना मुझे ….कितने अर्से बाद आपके मुंह से….. मुस्की ओ मुस्की गरम चाय की चुस्की….. सुनी …कान तरस गए थे ये सुनने के लिए भैया… ऐसा लग रहा है….

अपने बचपन वाले घर के आँगन में तुलसी के चबूतरे के चारों ओर मैं आपको दौड़ा रही हूं और आप मुझे… मुस्की ओ मुस्की गरम चाय चुस्की ….चिढ़ा चिढ़ा कर भाग रहे हैं…!

भैया … पिंक …! देखो मैंने बोला था ना ये चुस्की मुस्की पिंक ही बोलेगी…. भैया और भाभी के हंसने की आवाज सुन… मुस्कान सोचने पर मजबूर हो गई …जो भाई अभी भी मेरी उपस्थिति अपने घर में बनाए रखना चाहते हैं …उनसे मैं हिस्सेदारी की बात सोच भी कैसे सकती हूं…।

(स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित एवं अप्रकाशित रचना)

श्रीमती संध्या त्रिपाठी

#घर-आँगन

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