चुमावन – सिम्मी नाथ : Moral Stories in Hindi

जेठ की दुपहरी और  टमटम से धीरे — धीरे बिलकुल अनजान सड़क पर  गुड़िया  सिमटी सिकुड़ी बढ़ी जा रही थी,  प्यास से बुरा हाल था ,कभी थोड़ा सा घूंघट  से कोर से कनखियाकर  अपने पति को देखती ,लेकिन वो तो घर पहुंचने की जल्दी में था ।

घर ..नहीं वो  गांव के एक प्रतिष्ठित  मुरारी लाल जी के घर का खानदानी नौकर था , उसकी मां ने उसे इसी घर में बड़ा किया था । ऐसा नहीं था कि ये उसकी पहली शादी थी ,उसका अठारह साल में एक पंद्रह साल की बच्ची से ब्याह हुआ था ,किंतु वो काफी समझदार थी , उसने एक दिन अपनी सासु मां के पैर दबाते हुए पूछा था ,

अच्छा  मां एक बात बताओ ,हमलोग अपने नए घर नहीं जा सकते , सासु मां ने समझाया ,देखो मेरा कोई नहीं था ,दो बहनें थीं, मेरी दीदी भी बाबु ( मुरली बाबु) के घर ही काम करके 

अंतिम सांस ली। हमलोग का जीना मरना  यहीं है ,देखो तुम्हारी शादी के लिए पच्चीस हजार कर्ज लिए हैं ,वो भी 

हर महीने 200 रुपए कटवाती हूं , अगले सप्ताह वो गांव ।की औरतों के साथ खेतों में रोपा करने गई थी ,फिर वापस नहीं आई।

ये तो भला हो सुमित्रा देवी का इस बार चुमावन करने पैसे दे दीं। टमटम मुरली बाबु के बागान में आकर रुका , सभी बच्चे दौड़े,नई भौजी आई है…..

गांव की स्त्रियां गीत गाकर ,गोबर के लड्डू बनाकर स्वागत की …

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कटहर नाय चोराहियो हे…

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मैया के ने सुनायहों हे……..

गुड़िया अपना मुंह छुपाए बैठी थी , दरअसल गांव के रिवाज के अनुसार  जब किसी की दूसरी शादी होती है,तो 

कुछ पांच या ग्यारह लोगों को साथ लेकर मिठाई और कपड़े लेकर लड़की के घर जाकर सादगी से ब्याह लाने को चुमावन्न ’ कहते हैं। गुड़िया की सास ने एक पुराने बटुए से निकालकर ग्यारह रुपए दिए  , फिर  मुरारी बाबु की  खपरैल घर जो कि  नौकरों के बने कमरे थे ,में गृह प्रवेश कराया गया। 

 

सिम्मी नाथ 

स्वरचित, अप्रकाशित

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