इतने काम के बीच वसुधा का मन किसी और ही सोच में डूबा था। डोरबैल सुनते ही, दरवाजा खोला सामने प्यारी सखी वैशाली खड़ी थी, दोनों पड़ोसी होने के साथ, एक ही ऑफिस में काम भी करती हैं, इनमें बहनों सा रिश्ता है।
नीर (वसुधा की बेटी) की शादी को अब महीना भी नहीं बचा है, तैयारियों में तुझे मेरी याद भी नहीं आती,अंदर आते हुए वैशाली बोली
तैयारी … मन ही नहीं लगता
ओहो, बेटी की याद में?
नहीं रे, वो बात नहीं है
फिर ?
वैशाली याद है, दो महीने पहले ऑफिस के काम से मैं भोपाल गई थी, अपने शहर … बताया था ना बड़े दिन से घर वालों से नहीं मिली, वहाँ जा रही हूँ तो मिल भी लूँगी
हाँ हाँ …
मैं घर गई थी, लेकिन पता नहीं भाभी के साथ भैया का भी व्यवहार कुछ अलग सा लगा, किसी ने ढंग से बात नहीं की, बच्चे भी पहले की तरह नहीं मिले। शायद काम का दवाब होगा… बोलते बोलते वसुधा की आँखें भर आई।
अटकते हुए … आँसुओं को पोंछते, वसुधा बोलती रही … मैंने फोन से आने का बोला था। मैं पहुंची उस समय भाभी सोनम के स्कूल पेरेंट्स टीचर मीटिंग में जाने वाली थी… देखते ही बोली आज सुबह से इतना काम और ऊपर से स्कूल को भी देर हो रही … बैठो! तुम्हारे लिए चाय बना दूँ …
मैंने बोला, मैं बना लूँगी, आप जाओ! ठीक है बोल कर वो चली गई। मैं पानी का गिलास लेकर बैठ गई। उनको वापस आने में करीब ढाई तीन घंटे लग गए, तब तक भैया भी आ चुके थे।
धूप से आने पर भाभी को थकान हो रही थी, सोचा मैं सबके लिए चाय बना दूँ, किचन में पीछे से भाभी ने आकर मुझे हटाते हुए बोला; बैठो नहीं तो कहने को होगा कि मैं तुमसे काम करा रही! वो चाय ले आई, चाय के समय भी ज्यादा कुछ बात नहीं हुई। ना ही नीर की शादी के बारे, और ना ही सुमित(पति) के बारे में, हालचाल लेने की कोशिश की। कमरे में पसरे सन्नाटे को तोड़ने के लिए मैंने ही बात शुरू की, पर मुझे बेमन से छोटा सा उत्तर मिला तो मैं चुप हो गई।
सोनम के लिए फ्रॉक और चॉकलेट ले कर गई थी, देने के लिए उसे पास बुलाया, तो भाभी बोली ये सब क्यों लाई, मेरे पास इतना नहीं है जो तुमको मैं दे सकूँ।
अरे भाभी कुछ खास नहीं है बस … मेरा इतना बोलना कि वो शुरू हो गईं, कि मिलने के नाम पर यहाँ दिखावा मत किया करो, हमारे बच्चे बिगड़ते है, और साथ में बहुत सी चुभने वाली बातें बोल गई, इतना ही नहीं भैया भी बोलने लगे दो-दो लोगों की कमाई है…
ईश्वर जो करता है अच्छा करता है – नेकराम: Moral stories in hindi
वैशाली मैंने कभी पैसे को अपने रिश्ते के बीच न आने दिया ना ही आने दूँगी। मैं शाम तक बैठी रही पर किसी ने बात नहीं की, मन रो रहा था, मैंने सोचा अभी बात होगी … पर अनजानों की तरह बैठने से क्या फायदा? शाम से रात होने को आई, मैंने बैग उठाया, वापस जाने का बोल के बाहर आ गई। मैं सोचती रही कि क्या गलती हुई मुझसे, अपनों से मिलना, भूल है? क्यों भाई बहन का रिश्ता बचपन जैसा नहीं रहता, कैसे हो जाते हैं ये रिश्ते बिल्कुल कमजोर… बस नाम के
शायद माँ-बाप के बिना मायका नहीं होता ? बोलते बोलते वसुधा फफक के रो पड़ी। वैशाली मैने नीर की शादी का कार्ड भेजा, पर कोई जवाब नहीं आया, पता नहीं वो लोग आयेंगे या नहीं, यही सब बातें दिमाग को परेशान करती हैं।
वसु; मैं कुछ बोलूं, तू मानेगी?
हाँ बोल
सुन; तेरे घर शादी है, बात तेरे और उनके बीच की है, उन लोगों ने जो व्यवहार तेरे साथ किया, वो कोई नहीं जानता, पर शादी में सब पूछेंगे, दोष भी तुमको ही देंगे। रिश्ते संभालने की जिम्मेदारी तेरी है, एक फोन कर, हालचाल ले और उनको आने का बोल “कोशिश करो कि अपनी तरफ से कोई रिश्ता ना टूटे”
वसुधा ने तुरंत फोन मिलाया, बात की, शादी में आने का पूछा, उत्तर मिला हम जरूर आयेंगे।
अपना फर्ज पूरा करके, वसुधा के मन का बोझ उतर गया। छोटी सी सलाह और समझदारी वाली फोन कॉल ने टूटते रिश्तों को बचा लिया था।
स्वरचित- स्मृति गुप्ता
# एक माफी ने बिगड़ने से पहले रिश्ते सुधार दिए।