छोटी छोटी बातों में ढूंढ खुशियां – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

ज़ोर से खिलखिला कर हंसते हुए कल्पना को देखकर श्रुति आश्चर्य चकित थी ।वो कुछ लोगों के बीच में बैठी ज़ोर ज़ोर से हंस रही थी ।ये क्या हो गया कल्पना को कुछ ज्यादा ही हंस रही है। कुछ हो तो नहींगया मसलन दिमाग,विमाग खराब,,,,,,। फिर श्रुति ने अपने विचारों को झटका और सोचा चलकर कल्पना से पूछती हूं ।

                              । कल्पना और श्रुति चचेरी बहनें थीं।घर परिवार तो अलग था और रहती  भी दूर-दूर थी लेकिन एक ही शहर में ।हम उम्र थी और एक ही कालेज में पढ़ती थी।बस एक क्लास का अतंर था दोनों में खूब पटती थी ।सारी मन की बातें एक दूसरे से करती थी खूब हंसी मज़ाक़ भी चलता रहता था। दोनों का आज की सालों के बाद मिलना हो रहा था कल्पना के भतीजी की शादी थी उसी में दोनों आई थी।

               दोनों अपनी अपनी शादी के बाद अलग-अलग शहरों में चली गई लेकिन अभी भी बात होती रहती थी पहले खतों के जरिए और अब फ़ोन के जरिए ।इस समय कल्पना की उम्र 62 की होगी और श्रुति की 61 की होगी ।घर परिवार की जिम्मेदारी यो में उलझे कर दोनों में थोड़ी दूरी आ गई थी लेकिन जब भी मौका लगता बात हो जाती।

                      श्रुति अपने परिवार में बहुत खुश थी ।दो बेटियां थीं और बहुत प्यार परवाह करने वाला पति मिला था । श्रुति का पति संजय  श्रुति को बहुत चाहता था । कोई भी खुशी का मौका है अच्छे से सेलिब्रेट करने में पीछे नहीं रहते थे । श्रुति को  घूमने फिरने का बहुत शौक था सो उन लोगों का टूर लगता ही रहता था आज यहां तो कल वहां। बेटियों की शादी हो गई थी पति रिटायर हो गए थे

सो खूब मौज-मस्ती करते रहते थे। श्रुति बोलती कल्पना से मुझे घूमने फिरने का शौक था तो पति भी मुझे ऐसे मिले गए कि खूब घुमाते फिराते रहते हैं । बेटियों की ज़िम्मेदारी से मुक्त हो गई हूं वो अपने घर में खुश हैं । जरूरत पड़ने पर उनके साथ खड़े हो जाते हैं नहीं तो अपनी मौज मस्ती में मस्त रहते हैं हम दोनों।

                  श्रुति अक्सर कल्पना को सारी बात बताती रहती थी ‌। कल्पना के एक बेटा और एक बेटी है । थोड़ी आर्थिक स्थिति कमजोर थी कल्पना की तो सबकुछ मैनेज करने को कल्पना को घर में और पति नीरज को बाहर मेहनत करनी पड़ती थी । यही सोच कर कल्पना ने घर और बच्चों को अच्छे से संभाला अच्छी शिक्षा दीक्षा दी कि चलो बाद में घूमेंगे फिरेंगे ।

लेकिन किसी को क्या पता होता है कि जो हम सोचते हैं वो होता नहीं हैं। कल्पना के घर सबकुछ वैसे ही चलता रहा । बच्चे पढ़-लिख गए अच्छी नौकरी पर लग गए । कल्पना सोंचती चलों अब सबकुछ ठीक हो गया तो कुछ अपने मन की कर लें लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।पति भी रिटायर होकर घर बैठ गए । ऐसा नहीं था कि उनको कल्पना का ख्याल नहीं था ।

रोमांटिक भी होते थे तो बस अपनी जरूरत के हिसाब से ।बस फिर दिनभर आराम, टीवी देखना और सोना  यही उनकी दिनचर्या बन गई थी । कभी कल्पना कुछ बाहर खाने पीने कि बात करती थी तो बस बेरूखी से टाल जाते थे अरे घर में ही कुछ बना लो अभी टीवी में अच्छा प्रोग्राम आ रहा है या मैच चल रहा है ‌‌मै नहीं जा रहा अभी। कभी कल्पना कहती चलो कहीं घूम आते हैं बोर हो गई हूं

दिनभर घर में वही काम करके। अच्छा अच्छा देखेंगे ,घर के कामों से क्या बोर होना ये तो तुम लोगों का काम ही है ।घर के सारे काम औरतों के ही होते हैं यही बताते रहते थे दिनभर । किसी भी काम में किसी तरह की मदद नहीं करते थे । गर्मी है तो एसी कूलर के सामने बैठ कर खाना खाना और ठंड है तो रजाई में बैठे रहना वही खाना नास्ता । उसके बाद उनको कोई परवाह नहीं कि कल्पना ने खाना खाया या नहीं 

                 कभी कोई खास दिन है बर्थडे है या मैरेज एनिवर्सरी है तो उसको भी लगता आज कहीं बाहर जाया जाए तैयार होकर या कोई गिफ्ट दें पर नहीं । जबकि कल्पना पति नीरज के लिए गिफ्ट लाती थी कभी शर्ट या स्वेटर या और भी कुछ ।पर पतिदेव कभी कुछ नहीं बहुत हुआ तो बाजार से कुछ मीठा ला दिए बस हो गई पार्टी।

                    ये गुस्सा कल्पना के मन में धीरे धीरे अंदर तक बैठता  था रहा था ।वो सोंचती बस दिनभर घर संभालो और पति की देखरेख करो ।और पति महोदय दिनभर आराम करते रहते हैं और अब तो कल्पना को अनरोमांटिक होने का ताना भी मारते हैं ।

               कल्पना सोंचती क्या मैं बस इसी के लिए हूं धीरे धीरे कल्पना इन सब बातों से विरत होने लगी ।इसी बीच एक घटना घट गई कल्पना की जवान बेटी एक कार दुर्घटना में चली गई।अब तो कल्पना के लिए जीना और भी मुश्किल हो गया ।एक वही तो थी जिससे वो घर की और पापा की बातें शेयर करती थी ।

वैसे कल्पना काफी हंसमुख और खुश रहने वाली इंसान थी । लेकिन इस हादसे ने उसको तोडकर रख दिया।जीना भूल गई थी । श्रुति से जब भी बात होती तो रो पड़ती कल्पना ।एक तो पहले ही पति के व्यवहार से थोड़ी दुखी थी कल्पना इसपर बेटी का गम। श्रुति हर समय दिलासा देती खुश रहने की कोशिश कर कल्पना अब क्या करेगी जो चला गया

वो तो वापस नहीं आ सकता न और पति को तो तू अब बुढ़ापे में बदल नहीं पायेगी । अकेले ही खुश रहा करो तू अकेले ही तो सब जगह जाती है चली जाया कर कुछ खाने पीने।इधर उधर घूम आया कर बाहर निकल बहुत से ग्रुप ले जाते हैं घुमाने फिराने उनके साथ हो ले ।हर वक्त समझाती रहती श्रुति खुशियां ढूढ इधर उधर छोटी छोटी बातों में भी खुशी मिल जाती है ।

और हां तू तो लिखने का भी शौक रखती है खाली समय में कुछ लिखाकर।

                  धीरे धीरे कल्पना ने अपने को बदलना शुरू किया आखिर कब तक ऐसे ही चलेगा ।आज कल्पना का डोसा खाने का बहुत मन हो रहा था अब तो उसने नीरज से कुछ नहीं कहा और अपने आप जाकर खा आई और घर आकर उनको सब्जी रोटी बनाकर दे दिया । उन्होंने तो ये भी नहीं पूछा कि तुमने खाना क्यों नहीं खाया क्योंकि साथ बैठकर खाना नहीं है।

                  आज शाम पार्क गई तो वहां कुछ छोटे बच्चे फुटबॉल खेल रहे थे बाल बार-बार कल्पना के पास आ रही थी वो उठा कर फेंक रही थी फिर उठकर उनके साथ खेलने लगी अब दो घंटे का समय बीत गया पता ही न चला ।मन में एक नई ऊर्जा आ गई ।

अब तो वो ऐसे ही शाम को घंटे दो घंटे को निकल जाती मंदिर में सुंदर काण्ड का पाठ होता है वहां समय व्यतीत किया एक पाज़िटिव सोंच से भर गई कल्पना । कभी किसी बच्चे को दो चार बार झूला झूला दिया अच्छा अनुभव कर रही थी कल्पना ।

                रोज की इस दिनचर्या को आज कागज पर लिखने का मन हुआ तो एक सुंदर सी कहानी ने जन्म लिया खुशी का ठिकाना न रहा कल्पना के ।अब इन छोटी छोटी बातों में खुशियां ढूंढने लगी कल्पना और खुश रहने लगी।

                 आज शादी समारोह में कोई लतीफा सुनाकर जोर जोर से हंस रही थी । श्रुति को कल्पना को देखकर बहुत अच्छा लगा। कल्पना तूझे हंसता देखकर मन खुश हो गया ऐसे ही खुश रहा करो मेरी जान।तुम्हारी खुशियां किसी दूसरे की मोहताज क्यों रहे । खुद अपने लिए खुशी ढूंढ और खुश रह ।और दोनों एक दूसरे के गले लग गई। कल्पना बोली धन्यवाद मेरी बहन एक नई राह दिखाने के लिए ।

धन्यवाद 

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

26 जून 

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