अरे प्रदीप जी…. यार.. घर में एकलौती बिटिया की शादी है, फिर भी खास रौनक नजर नहीं आ रही! अरे भाई एक ही बेटी है तुम्हारी, उसमें तो जी खोलकर पैसा लगा दो, इन पैसों को साथ ही ऊपर लेकर जाओगे क्या ? ना तो कोई ढंग की सजावट की गई है
ना ही कोई अच्छी सी मिठाइयां है, ना ही कोई शादी जैसी चमक धमक दिख रही है? क्यों भाई… माजरा क्या है.? अरे नहीं नहीं भाई साहब…. कैसी बातें कर रहे हैं आप, गुड्डू मेरी इकलौती बेटी है, उसकी शादी में कोई कसर थोड़ी छोडूंगा, अभी बरात तो शाम को आएगी,
शाम को ही तो सारा खाना या सजावट देखी जाएगी! हां प्रदीप जी… वैसे कह तो आप सही रहे हो, पर फिर भी…. हमने तो सुना है आप दहेज में भी बेटी को कुछ खास नहीं दे रहे, वही 10 तोला सोना और एक 5 लाख की गाड़ी बस! अरे भाई… लड़के वालों के स्टैंडर्ड का तो ध्यान रखते,
इतना अच्छा लड़का मिला है तुम्हें सॉफ्टवेयर इंजीनियर है लड़का, माना कि उनकी कोई डिमांड नहीं है पर हमें तो इतनी समझ होनी चाहिए कि उनकी जो मन की इच्छा है, जो कह नहीं पा रहे उन्हें हम पूरी कर सके! अभी तुमने देखा होगा मेरी बेटी की पिछले साल शादी थी,
इतनी धूमधाम से शादी की थी पूरा शहर देखता रह गया था, आज तक लोग बातें करते हैं शादी की! तुम्हारे सारे खाने के बराबर तो केवल मिठाइयां ही थी, जिनका लोगों को नाम तक नहीं मालूम था, क्या शानदार बारात की खातेदारी की थी, दहेज में भी कितना सारा दिया था,
शादी तो ऐसी होनी चाहिए! महेश जी की ऐसी बातें सुनकर अब प्रदीप जी से रहा नहीं गया, तब उन्होंने कहा…. देखिए भाई साहब, मेरी इतनी ही हैसियत है और लड़के वालों ने भी किसी प्रकार की कोई मांग नहीं रखी, उन्होंने भी शादी साधारण तरीके से करने को कहा है,
उन्हें शादी में दिखावा या तामझाम बिल्कुल पसंद नहीं है, ऐसे घर में ही बेटियां सुखी रहती हैं, और भाई साहब अगर मैं कुछ कहूंगा तो आपको लगेगा छोटा मुंह बड़ी बातें कर रहा है… आपकी तरह किसी से कर्जा लेकर बेटी की शादी करना मैं उचित नहीं समझता!
उस कर्ज का दुख अपने साथ-साथ बेटी के जीवन पर भी पड़ता है, कोई भी बेटी ऐसा नहीं चाहती, अपने माता-पिता को कर्ज के बोझ तले देखकर कोई भी बेटी खुश रह पाएगी? और भाई साहब मुझे तो दिखावे से ज्यादा पसंद अपनी बिटिया की खुशी प्यारी है,
मेरी बेटी ने मुझे साफ-साफ शब्दों में कह दिया था कि पापा…. मेरी शादी में आप ₹1 भी कर्जा नहीं लेंगे, जिसे बाद में चुकाते चुकाते आपकी सारी उम्र बीत जाए! शादी ही तो है, यह तो हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम उसे दिखावटी बनाते या आत्मिक बना दे,
और बेटी की बातें सुनकर मुझे भी एहसास हुआ की बेटी सही तो कह रही है, थोड़े दिन लोग शादी को याद रखते हैं, बाद में दूसरी शादी की तारीफों के पुल बांधना शुरू कर देते हैं ,इसलिए जितनी चादर हो उतने ही पैर फैलाने चाहिए! यह सुनकर महेश जी शर्मिंदा हो गए! सच ही तो है कर्ज की शादी से तो साधारण शादी अच्छी!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
मुहावरा प्रतियोगिता छोटा मुंह बड़ी बात