समिधा अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी। बचपन से ही उसे वह सब कुछ मिला जिसकी किसी भी बच्चे को चाहत हो सकती थी, ढेर सारे खिलौने, गेम्स, चॉकलेट्स, वेकेशन पर बाहर घूमने जाना, मूवीज़, आए दिन रेस्टोरेंट्स में खाना खाना…. उसकी बाॅर्बीज़ का कलेक्शन तो सहेलियों में ईर्ष्या का विषय था।
ऊपर से सब बहुत अच्छा लगता है, सभी को लगता है कि समिधा से ज्यादा खुश किस्मत कोई बच्चा नहीं हो सकता पर यहां कहानी थोड़ी अलग हो जाती है…एक कहावत है ना जल के पास रहकर भी प्यासा रहना – समिधा पर चरितार्थ होती थी उसे कभी अपने मम्मी पापा का समय नहीं मिला कभी वो लाड़ कभी वो प्यार नहीं मिला
कभी वो मम्मी का स्पर्श वो पापा के दुलार का एहसास हिस्से में समिधा के आया ही नहीं जिसकी वह हकदार थी उसके माता-पिता नवीन और कविता ने पैसे देकर मानो अपने कर्तव्य की इतिश्री कर दी हो वह तो भला हो जो उसकी दादी उनके संग रहती हैं। नौकर चाकर समिधा के इशारे पर उसका सारा काम करने को तत्पर रहते हैं
परंतु छोटी सी समिधा माता पिता को ढूंढती थी बचपन से ही उसने देखा उसकी माॅ॑ एक सोशल वर्कर थी जिन्हें दुनिया जहान के लिए टाइम था पर अपनी बेटी के लिए उन्होंने एक नैनी रख दी। माॅ॑ का प्यार उसे कभी नहीं मिला पिता की परवाह उसे कभी नहीं मिली क्योंकि पापा भी अपने बिजनेस के चलते आए हैं मीटिंग और टूर में बिजी रहते थे
। सुबह जब समिधा की आंख खुलती तो माता-पिता जा चुके होते थे रात को उसके सोने के बाद ही आते थे जिसके कारण कई कई दिन उन्हें बिना देखे गुजर जाया करते थे। वेकेशन दादी और नैनी के साथ मनाती समिधा..
अक्सर अपने दोस्तों के मम्मी पापा के साथ के फोटोज़ देखकर उदास हो जाती तब दादी प्यार से उसकी उदासी भगाती। मालूम तो उन्हें भी था कि बच्ची माता-पिता को मिस करती है। बेटे-बहू को बोलती परंतु वे दोनों ही समयाभाव बताते हमेशा ही… समय गुजरता गया..
नैनी और समिधा की दादी के भरोसे समिधा बचपन से किशोरावस्था में आई। दादी से कहानियां बचपन में सुनते सुनते उसका समय कटता था, नैनी भी पूरा ध्यान रखती थी परंतु माता-पिता के लाड प्यार से वंचित रही समिधा…
कुछ वर्ष बाद दादी का साथ छूटा और साथ में ही समिधा से घर भी… मम्मी पापा ने उसे बोर्डिंग स्कूल में डाल दिया। तब समिधा आठवीं क्लास में थी जब उसे हाॅस्टल भेजा गया।
समिधा ने पढ़ाई में खुद को झोंक दिया। ट्वेल्थ पढ़ने के बाद उसने काॅमर्स में बैचलर डिग्री प्राप्त की। प्रतिष्ठित मैनेजमेंट बिज़नेस स्कूल के लिए एंट्रेंस दी और सेलेक्शन हो गया। समिधा छुट्टियों में घर आई तो मम्मी पापा ने उसके लिए ग्रांड पार्टी ऑर्गेनाइज की।
समिधा दो साल के लिए फिर से पढ़ने चली गई। फाइनल ईयर में मल्टीनेशनल कंपनी में प्लेसमेंट हो गया।
पापा को फोन पर बताया तो उन्होंने कहा,” क्या जरूरत है जाॅब करने की ?अपना बिज़नेस सम्भालो, इतना बड़ा अपना खुद का बिज़नेस है।”
समिधा ने सधे स्वर में कहा,” पापा , मैंने निश्चय किया है कि जाॅब करूंगी, बिज़नेस नहीं।”
पापा ने फोन स्पीकर पर कर दिया तो अबकी मम्मी बोली,”अरे बेटा! हम तो कब से यह सोच रहे थे कि तुम्हारी पढ़ाई के बाद तुम साथ रहोगी , अपना बिज़नेस देखोगी। इसलिए तो बिज़नेस मैनेजमेंट करवाया है तुम्हें। “
समिधा की आवाज़ कहीं दूर से आती सुनाई दी उन लोगों को,” मम्मी-पापा, आप लोगों ने मेरी पढ़ाई में भी अपना फायदा देखा। मैंने जो अपना बचपन आपके बगैर तरसते हुए गुजारा है , आपके प्यार-स्नेह से वंचित रही मैं हमेशा… आपको कभी छुटपन में अपने पास पाया ही नहीं मैंने। वो तो दादी और नैनी थी जिन्होंने मुझे पाला-पोसा। आपको पैसे कमाने से फुर्सत नहीं थी पापा और मम्मी, आपको तो समाजसेवा में अपना नाम करना था। जब आपकी अनाथालय में बच्चों के साथ छपी तस्वीरें न्यूजपेपर में देखती थी मैं तब सोचती थी कि काश मैं अनाथालय में होती तो आपका साथ मिल जाता…. आप लोगों को कभी लगा ही नहीं कि आपकी बेटी को अपने पैसे दिए पर अपने लाड़-चाव से हमेशा मोहताज रखा आपने…आपके दुलार से वंचित रखा आपने हमेशा।” आवाज़ भर्रा उठी समिधा की
कुछ क्षण ठहरकर समिधा बोली, “इतनी कम उम्र में ज़िन्दगी ने मुझे अपने बहुत से रंगों से परिचित करा दिया जिसमें वात्सल्य का रंग पूर्णतः गायब कर दिया ज़िन्दगी ने , आप लोगों ने कभी देने की सोची ही नहीं, मम्मी-पापा! आप लोग पैसा देकर सोचते रहे कि कर्तव्य पूरा हुआ और मेरा मन प्यार को तरसता रहा, छुटपन से आपके साथ के लिए तड़पती रही, मोहताज रखा आपने मुझे..
खैर जाने दीजिए, आप लोग नहीं समझेंगे…. मैं अब घर नहीं आऊंगी , आपको जब भी मेरी जरूरत हो आप मुझे बता दीजियेगा मैं मदद कर दूंगी पर साथ रहकर नहीं!”
मम्मी-पापा अवाक् रह गए, एक-एक शब्द समिधा का उनके दिल पर हथौड़े की माफिक लगा परंतु वह ग़लत नहीं थी ये जानते थे वे लोग… इसलिए शर्मिंदा खड़े थे आज अकेले…
भले ही प्यार के दो मीठे बोल हों पर हर बच्चे को एक नई ऊर्जा दे जाते हैं। बचपन से माता-पिता के इसी प्यार से वंचित हो कर समिधा ने आज माता-पिता को ही नकार दिया। बच्चे माता-पिता के उस स्पर्श को हर पल ढूंढते हैं वो एहसास माता-पिता का जिस पर बच्चे भरोसा करते हैं उसे हर बच्चा किसी भी सुख सुविधा से ऊपर रखता है उससे वंचित रही समिधा हमेशा और माता-पिता की उपेक्षा ने एक नई समिधा को जन्म दिया, मम्मी पापा को भी अपनी ग़लती समझ में आ गई पर अब बहुत देर हो चुकी है….
लेखिका की कलम से
दोस्तों,
मेरी कहानी में निहित संदेश आप सुधि पाठकों तक पहुंचाने में कामयाब रही हूॅ॑ , जानने के लिए आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा। कृपया कमेंट बॉक्स में अपनी अमूल्य राय साझा कीजिए, कहानी पसंद आने पर लाइक और शेयर कीजिएगा। ऐसी ही अन्य रचनाओं के लिए आप मुझे फाॅलो करना न भूलें
धन्यवाद।
-प्रियंका सक्सेना
(स्वरचित व मौलिक)
#मोहताज