चरित्रहीन – पूनम रावल 

र्पाक मे सैर करते हुए मैंने देखा एक नौजवान लड़का एक अधेड़ उम्र की औरत को सहारा दे कर बैंच पर बैठा रहा था।मैंने सोचा शायद माँ और बेटा होंगे।उन्हें देखकर कुछ महिलाएं खुसर पुसर करने लगी ।मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि वे माँ बेटा नहीं हैं लेकिन एक ही घर मे एक साथ रहते हैं।एक औरत कहने लगी “कैसी चरित्रहीन औरत है” मै बोली “आपको कैसे पता इन दोनों का कौनसा रिश्ता है । आपको किसी के बारे मे ऐसे नहीं बोलना चाहिए” वह औरत मूहँ बना कर बोली ” सारे शहर को मालूम है किसी से पूछ लो” लेकिन उसकी बात मेरे गले नहीं उतरी ।अगले दिन मैंने देखा वे दोनों बैंच पर बैठे थे और लड़का उस महिला को संतरा छील कर दे रहा था।मैंने उन्हें नजरअंदाज किया लेकिन औरतें उलटी सीधी बातें करने लगी।

तीसरे दिन मैंने देखा वो लड़का अकेला बैठा था बेंच पर । मैं बैंच पर उससे थोड़ी दूर बैठ गई । मुझसे रहा न गया, मैने पूछा “आज वो नही आई?” , वो बोला “वो कौन” । मैं सकपका गई “वो जो आपके साथ रोज आती है, क्या लगती है वो आपकी ?” । उसने ठंडी सांस भरी और बोला “कहने को तो कुछ भी नही हैं वो मेरी, लेकिन फिर भी सब कुछ हैं”। “मतलब?” मुझे शक होने लगा । उसने कहा “थोड़ी लंबी कहानी है, सुनेंगी आप?” । “हां हां ज़रूर सुनेंगी” मुझे जिज्ञासा होने लगी।

वह बोला “वैसे तो मैं उनका किराएदार हूं और वो मेरी मकान मालकिन । मैं इस शहर में नया नया आया था नौकरी के सिलसिले में और रहने की जगह ढूंढ रहा था, तो किसीने आंटी के घर का पता बताया । मैं उनसे मिलने गया, वे अकेली रहती थी बहुत बड़े घर में। पति गुज़र चुके हैं, दो बेटियां है  जिनकी शादी हो चुकी है। पहली बार उनको देखा तो पता चला कि मां कैसी होती है। बहुत छोटा था जब मां गुज़र गई, उनकी शक्ल तक याद नहीं। पापा ने दूसरी शादी कर ली, नई मां का प्यार कभी नहीं मिला। आंटी के घर किराए पर रहने लगा। आंटी बहुत अच्छा खाना बनाती हैं, पहली बार पता चला कि मां के हाथ के खाने में कितना स्वाद होता है।


मैं आंटी के बाहर के सारे काम देखता हूं। आंटी मुझे अच्छा अच्छा खाना बना कर खिलाती हैं, यहां तक कि आंटी की बेटियां मुझे राखी बांधती हैं। लेकिन लोग तरह तरह की बातें करते हैं। मैं आंटी को इतवार को बाहर घूमने ले जाता हूं, बाहर खाना खिलाता हूं, फिल्म दिखाता हूं। अंकल के जाने के बाद आंटी जैसे जीना भूल गई थी। अब वो खुश रहने लगी हैं। लोग हमारे चरित्र पर उंगली उठाते हैं, उल्टी सीधी बातें करते हैं। मुझे अपनी परवाह नहीं है, लेकिन जब आंटी के बारे में कोई कुछ कहता है तो बहुत बुरा लगता है। मैं अकेला इस समाज से तो नहीं लड़ सकता इसलिए चुप रहता हूं।” उसने एक आह भरी, उसकी बातें सुनकर मेरी आंखें भर आई “तुमने शादी नही की?” , “कोशिश की थी लेकिन जब भी किसी लड़की को कहता हूं की शादी के बाद आंटी भी हमारे साथ रहेंगी तो वो मना कर देती हैं। अब इस उम्र में मैं आंटी को अकेला नहीं छोड़ सकता।” मेरे आंसू देख कर वह बोला “अरे दीदी, आप तो भावुक हो गई, सब लोग आपकी तरह नही होते ये दुनिया बहुत निष्ठुर है, अब आपको दीदी बोला है तो आप ही में  लिए कोई लड़की ढूंढ दें लेकिन एक शर्त है, आंटी मेरे साथ ही रहेंगी” मैने मुस्कुरा कर कहा “हां हां ज़रूर” । “अच्छा दीदी चलता हूं, आंटी की तबियत ठीक नहीं है, वह घर पर अकेली हैं।” वह चला गया मैं सोचने लगी “चरित्र हीन वह औरत है या हमारा समाज?”

पूनम

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