“माही को तो कुछ दिन पहले लड़के वाले देखने आये थे न रमा भाभी! …क्या हुआ फिर? ऋचा बता रही थी, बहुत बढ़िया घर-वर मिल रहा है अपनी माही को!”
जया दूर के रिश्ते में रमा की ननद लगती थीं, शॉपिंग बैग से लदी-फँदी लौट रही थीं, थोड़ा सुस्ताने को उनके पास रुकीं तो बातों ही बातों में पूछने लगीं।
“नहीं!…नहीं हुआ जीजी! …वैसे तो सबकुछ ठीक ही लग रहा था पर माही और लड़के की अकेले में बातचीत हुई, फिर माही ने सोचने के लिए थोड़ा समय माँगा। …उनके जाने के बाद हमें बताया, उसके और लड़के की सोच में इतना ज्यादा फ़र्क है कि दोनों की आपस में शायद ही पटरी बैठे। …तो जीजी, फोन करके माफ़ी माँग ली हम लोगों ने उनसे!”
रमा ने उन्हें चाय पकड़ाते सहजता से मुस्कुरा कर कहा।
“अरे ये क्या बात हुई? एकदम परफेक्ट मैच के चक्कर में पड़ी है तुम्हारी बेटी या फिर कुछ ज्यादा ही छानबीन कर रही लगता है! …लड़कियाँ यूँ मना करती अच्छी नहीं लगतीं। तुम तो समझाओ माही को, ‘ज़्यादा छानने से छन्नी ही फट जाती है कई बार!’ …मतलब कि समय निकल जाता है तो फिर बाद में ढंग का रिश्ता नहीं मिलता!”
चाय सुड़कते हुए जया के माथे पर चिन्ता के बल उभर आये थे।
“जाने दीजिए जीजी, आप तो यह कटलेट खा कर देखिए, कैसे बने हैं! …माही और मिष्टी आजकल कुकिंग भी सीख रही हैं न, दोनों बहनों ने आज पहली बार यह बनाया है।”
रमा टॉपिक बदलने के उद्देश्य से उन्हें कटलेट की प्लेट थमा पानी लाने फ्रिज़ की ओर बढ़ गयीं।
“अरे! यह सब तो ठीक है, लड़कियों का पकाना-खिलाना तो ज़िन्दगी भर लगा ही रहेगा! …लेकिन इतना अच्छा रिश्ता, …बताओ भला, लड़की ने ख़ुद से मना कर दिया!”
कटलेट खाते हुए जया अभी भी उसी मुद्दे को पकड़े बैठी थीं।
“मेरी छोड़िए बूआ जी! …अपनी सुनाइए! आपके यहाँ भी तो ऋतेश भइया के लिए लड़की देखने गये थे न पिछले हफ़्ते आप लोग! …जानती हैं, मेरी क्लासमेट रह चुकी है वह तनु। …बहुत ही अच्छी है, हर मामले में क़ाबिल। …भइया तो वैसे भी 35 के होने वाले हैं, मुझे लगता है कि सात-आठ साल छोटी होगी वह उम्र में, अच्छी मिल गयी आप लोगों को!”
माही स्कूल के लिए निकल रही थी, जहाँ वह बड़ी कक्षाओं को गणित पढ़ाती थी, उनकी बेतुकी बातों की नागवारी माँ के चेहरे पर सह न सकी तो बीच में बोल पड़ी।
“अरे कहाँ तय हुआ! …ऋतेश और उसकी बहनों ने ही तो मना कर दिया इस बार भी। …वापस घर पहुँचते ही ऋतु, ऋचा दोनों ही कहने लगीं कि उतनी भी सुन्दर नहीं है लड़की! …हमारा भाई लाखों में एक है, आखिर इतना कमाता जो है, फिर ऐसी एवरेज़ लड़की को क्यों फाइनल करें?…और देखेंगे दूसरी, अच्छी लड़कियों की कोई कमी है क्या! …भई मुझे और तुम्हारे फूफाजी को भी उनकी यह बात सोलह आने खरी लगी। …आखिर ज़िन्दगी भर का मामला होता है शादी-ब्याह तो!”
भरपेट खाकर प्लेट में ही हाथ धोतीं जया जी बोलीं और जाने को उठ खड़ी हुईं।
____________________________________________
(स्वरचित, मौलिक)
नीलम सौरभ
रायपुर, छत्तीसगढ़