चक्रव्यूह – ऋतु गुप्ता : Moral Stories in Hindi

पार्क में बैठे वीरेन जी को एहसास भी नहीं था कि अंधेरा घिर आया है, पंक्षी भी अब अपने घौसलों की ओर लौटने लगे हैं, उन्हें भी अब घर  लौटना चाहिए। लेकिन अब उनका मन घर लौटने को नही करता,

जब से उनसे उनकी जन्म भूमि अपना कस्बा सुल्तानपुर छूटा है, वे निस्तेज से हो गये है। अपने को दीन क्षीण सा अवसाद  में घिरा सा महसूस करते हैं। पराये शहर में सब कुछ पराया सा लगता है, अब जैसे उनका कोई अस्तित्व भी ना बचा हो। वे हर पल अपनी  गलतियां महसूस करते हैं, पिछले दिनों को याद कर करके अपने को कोसते रहतें हैं कि काश मैंने ऐसा ना किया होता। 

कभी वीरेन जी अपने कस्बे में सबसे नामी गुड़ व्यापारी माने जाते थे। बहुत सम्मानजनक जीवन जीते रहे, पर आज की स्थिति के लिए काफी हद तक वे स्वयं जिम्मेदार थे। कभी बहुत संतुष्ट, संतुलित जीवन जीने के आदी ,प्रभु भजन संध्या करके  ही भोजन करने वाले वीरेन जी ना जाने कैसे और कब इस दिखावे की जिंदगी का शिकार हो गए थे, उन्हें स्वयं  ही एहसास नही हुआ।

आज से लगभग 40 वर्ष पूर्व जब वह सिर्फ 21 वर्ष के थे, उनका विवाह बहुत ही सुंदर सरल सीधे संतोषी स्वभाव की शीतल जी से हुआ था। वीरेन जी भी जब तक बहुत ही सरल जीवन जीते थे। भाई बहनों में तीसरे नंबर की वे संतान थे। धीरे-धीरे उनकी संगति बड़े घरों के यार दोस्तों के साथ हो गई। कहावत हैं ना तैसे पांव पसारिए जैसी चादर होय।

बड़े लोगों के साथ उठना बैठना उन जैसी शानो-शौकत और एक तो उनका हाथ शुरू से ही खर्चीला रहा, दूसरा वह किसी को दुखी नहीं देख सकते थे, और जेब में चाहे पैसे ना हो पर किसी की भी मदद करने के लिए तुरंत खड़े होते, दिखावा करने के  चक्कर में अपने घर परिवार की कभी ना सोचते ,एक से एक कड़ी मिलती चली गई और वह इस दिखावे की जिंदगी का शिकार होते चले गए।

 किसी को भी घर परिवार या बाहर के लोगों को उनकी जरूरत होती तो वह पीछे ना हटते आधी रात  चल देते , कितनों के घरों के झगड़ा निपटाते। आज बड़े घरों से उठना बैठना,उनका खर्चा दिखावे पर ज्यादा होता, जरूरत पर कम होता। अब वे ना तो दुकान पर ध्यान देते ,ना ही गोदाम पर। गोदाम में लगे कर्मचारीयों को भी अब धीरे-धीरे छूट मिलती गई, माल वहां आधा भरा जाता और खर्चा वह मालिक से पूरा ले लेते ।

वीरेंद्र जी को अब बिल्कुल ध्यान ही ना था कि किसी का हिसाब किताब लिया जाए उसे समझा जाए। उन पर तो सिर्फ अमीर दोस्तों के साथ बैठना, और अपनी जेब से पैसे खर्च करना  ही उनका शगल बन चुका था। उनकी पत्नी शीतल और उनके बड़े भाई सुंदर लाल जी और उनकी बड़ी भाभी मधु जी उन्हें बहुत समझते ।

 पर वह एक कान से सुनते दूसरे से निकाल देते थे।

धीरे-धीरे उन्होंने ब्याज पर पैसा उठाकर बड़ा सा घर बनवाया,  गोदाम बनवाये, पर कहते हैं ना एक बार को बेटी की शादी के लिए लिया हुआ कर्ज पट जाता है पर घर कभी भी कर्ज से नहीं बनवाना चाहिए । उनके बिगड़ैल दोस्त आए दिन घर धमकते रहते, खाते पीते मौज उड़ाते और उनसे किराए की गाड़ियां

करवाते और सैर सपाटे पर निकल जाते । एक दिन कुछ दोस्तों ने उन्हें उकसा दिया कि यार अब तो तू भी बड़ी गाड़ी ले ही ले तेरे घर में गाड़ी होगी तो तेरे घर की शोभा बढ़ जाएगी, वे  सोचने लगे की गाड़ी कोई बड़ी चीज नहीं है उन्होंने धीरे-धीरे कुछ-कुछ बाप दादा की जमीन बेच डाली, और बेमतलब के खर्चे करने लगे।

पत्नी अक्सर समझती कि अब तीन बच्चों के बाप बन चुके हो, खर्च भी अपार हैं, कुछ तो हिसाब किताब रखा करो। दुकान के नौकर चाकर , कुछ परिवार और बाहर के लोग भी अब सब उनकी आदत का फायदा उठाने लगे। 

जिस तरह हाथी को खरीदने का खर्चा एक बार होता है लेकिन उसे पालने का खर्चा ताउम्र उठाना पड़ता है ठीक उसी तरह गाड़ी तो वीरेन कुमार जी ने ले ली पर उसके खर्च बेताहशां होने लगे ,जब घर में गाड़ी न थी तो वे बाहर शहर  फिर भी थोड़ा कम जाया करते थे, लेकिन अब जब सामने गाड़ी खड़ी हो तो किसी के भी कहने पर गाड़ी लेकर चल देते।

 उनके माता-पिता तो बचपन में ही गुजर चुके थे, बड़े भाई सुंदर ही उन्हें आए दिन समझाते की फलाने अपने को संभालो पहली वाली शांत जिंदगी की ओर लौट आओ ,अपना घर परिवार और बच्चे देखो, यह दिखावा एक चक्रव्यूह है, एक बार जो तू फंसता गया तो हमेशा के लिए इसमें घिरा रहेगा, अभी भी समय है, तू समझ जा वापस आजा ।

पर जब अक्ल पर पत्थर पड़ते हैं तो किसी की बात समझ नहीं आती। पत्नी के समझाने पर कहते कि तेरे मायके से तो नहीं ला रहा हूं ,सब कुछ मैं सोच समझ कर कर रहा हूं ,अच्छे लोगों में उठना बैठना क्या तुझे अच्छा नहीं लगता?  बड़े लोगों के साथ उठने बैठने से शानों शौकत बनी रहती है और जब बड़े घरों से उठना बैठना होगा तो बेटियों के लिए भी अच्छे घर से रिश्ते आएंगे।

बेटियों के लिए अच्छे घर वर तो तलाश किये उन्होंने  और बेटियां भी अच्छे घर चलीं गई, बेटा अभी पढ़ ही रहा था, पर अभी तक काफी कुछ कर्जे की भेंट चढ़ चुका था। पत्नी का आधे से ज्यादा जेवर जा चुका था। धीरे-धीरे यह हालत हो गए कि व्यापार की स्थिति खराब होने लगी।किसी से उन्होंने कुछ नहीं कहा ना

ही राय सलाह ली, पता नहीं क्या सोचा कि एक दिन घर भी बैंक में गिरवी रखकर चीनी की भडसाल  गोदाम में कर ली,  पर उनके नसीब कह दो या ईश्वर की कठोरता चीनी का व्यापार इतना सस्ता गया कि सब कुछ लगाकर भी मुनाफा ना हुआ।  पर उधर ईश्वर ने एक चीज बहुत अच्छी की थी, कि उनका बेटा सामर्थ्य अच्छे कॉलेज से इंजीनियरिंग कर अच्छी जॉब करने लगा था।

बच्चे उनके तीनो ही समझदार निकले। उधर बेटा शहर जाकर नौकरी करने लगा, वो घर बार सब कुछ होते हुएभी वहां किराए के छोटे से घर में रहता। बेटे की भी शादी हो

गई।वीरेंद्र कुमार जी के बेटे की पत्नी सुनिधि भी काफी समझदार आई थी, उसने भी आते ही घर बार सब कुछ संभाल लिया। क्योंकि अब कस्बे में इतना व्यापार ना था, कुछ बचा ही नही था, इसलिए बेटे ने उन्हें जिद करके शहर बुला लिया। कुछ समय बाद अपने कस्बे का घर बार दुकान सब बेच कर कर्जा  निपटा कर वीरेंन कुमार जी अपनी पत्नी सहित बेटे के साथ आकर शहर रहने लगे। 

शहर में घर इतना छोटा था,वे आए दिन सोचते कि  ईश्वर ने तो  मुझे सब कुछ दिया था पर मैंने ही विवेक से काम ना लिया। आज जब खराब समय था, ना तो कोई रिश्तेदार, ना ही कोई मित्र ना ही कोई परिवारजन साथ था । उन सब का साथ तब तक था, जब तक उनकी जेबें भरी थी, अब समय जब

पलटा तो सभी ने मुंह फेर लिए, अब बहुत सोचते हैं कि काश मैंने  अपनी पत्नी और अपने भाई की सुनी होती, दिखावे  की जिंदगी ना जीता ,झठी चमकदमक  के चक्रव्यूह में ना फंसता ,तो परिवार सहित आज साधन संपन्न आनंद में जीवन जीने का समय तो यही  था, पर कहते हैं ना कि जब चिड़िया चुग गई खेत तब पछताए क्या होत, अब कोई फायदा नहीं था ,वह सब जो जाना था चला ही गया था। 

तभी पार्क में उनका बेटा सामर्थ्य और उनका पोता शिवा  की आवाज  से वे अपने गहन सोच से बाहर आते हैं , बेटा कहता हैं कि पापा जी घर चलो अंधेरा हो गया है और खाने पर मां और आपकी बहू आपका इंतजार कर रहे हैं। पोता भी  उनकी बांह फकड़ कर खींचने लगा। वीरेन जी के चेहरे पर भी एक संतोष भरी मुस्कान तैर

जाती है,वे  प्रभु का मन ही मन धन्यवाद करते हैं कि प्रभु तूने मेरा सब कुछ तो नहीं ही लिया है ,इतने अच्छे बच्चे तूने दिए तो मैं फिक्र क्यों करूं आज मेरे ये बच्चे ही मेरी दौलत है, जायदाद है बस तू इन्हें बनाए रखना। जिंदगी के आखिरी पड़ाव में वो जैसे अब धीरे-धीरे अपने ही बनाए चक्रव्यूह से निकल रहे थे।

ऋतु गुप्ता 

 

खुर्जा बुलन्दशहर 

 

उत्तर प्रदेश

#दिखावे की जिंदगी

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