hindi stories with moral :मीरा वैभव की पत्नी थी. वैभव गंभीर स्वभाव पर कोमल दिल का मालिक था. उनका अपना पारिवारिक व्यवसाय था जिसे उसने अपनी शिक्षा समाप्त करके संभाला था. यह उसके पिताजी की भी इच्छा थी जिसे वैभव ने पूरे दिल से अपनाया था हालांकि वह संगीत के क्षेत्र में कुछ करने की इच्छा रखता था परंतु कुछ कारणों से उसने अपना यह शौक दिल में ही दफन कर दिया था. वर्तमान में उसकी बुद्धि और लगन के चलते उनका व्यवसाय सफलता की नई ऊंचाइयां छूने लगा था.
वैभव मीरा से अत्यधिक प्रेम करता था। निखिल और अक्षरा के जन्म ने उनके परिवार को पूरा कर दिया था. दोनों बेहद प्यारे और चंचल थे. पूरा घर उनकी शरारतो से गूंजता रहता था. निखिल छः वर्ष का हो चला था और अक्षरा चार वर्ष की थी.
दोनों बच्चें स्कूल गए हुए थे. उनकी पसंद का खाना तैयार करके मीरा हॉल में आकर बैठी ही थी कि कॉलबेल बजी.
“सीमा देखो दरवाजे पर कौन है?”
“कुछ देर बाद सीमा ने उसे एक पैकेट लाकर दिया.”
मीरा ने पैकेट खोला तो देखा वह एक शादी का कार्ड था. वर वधु के नाम पर नजर पड़ी तो एक पल को नजर वधु के नाम पर टिक गई.
“अजय वेड्स कीर्ति”
कीर्ति नाम पढ़ते ही मीरा की आंखों के आगे से वैभव और उसके साथ बीते सात वर्षों का सफर किसी फिल्म की रील की भांति गुजरने लगा जिसे देखने में मीरा खो सी गई.
वर्षों पहले उसके और वैभव की कहानी के मध्य भी एक अनदेखा किरदार वास करता था जिसके अदृश्य वजूद ने मीरा को झकझोर कर रख दिया था. वो एक नाम जो धुंध में से उभर कर आता था. जिसकी कर्णप्रिये घंटियों जैसी खिलखिलाती हॅसी कानों में रस घोलती थी. दूध में जैसे सिंदूर मिला दिया हो ऐसा रंग नैनों के समक्ष छा जाता था. थरथराते लबों से एक नाम निकलता महसूस होता था, कीर्ति, वैभव का पहला प्यार .
ये कहानी शुरू होती है आठ वर्ष पूर्व.कॉलेज के बाद वैभव ने अपने दोस्तों के साथ म्यूजिकल ग्रुप बनाया था. उन्हीं में उसके एक दोस्त सुधीर की बहन थी कीर्ति. कीर्ति बेहद मीठा गाती थी. सुधीर के कहने पर ही वह कभी-कभी उनके ग्रुप के लिए गा दिया करती थी. धीरे-धीरे कीर्ति और वैभव दोनों एक दूसरे के नजदीक आने लगे और बाहर भी मुलाकातें करने लगे.”
एक दिन वैभव ने कीर्ति के सामने अपने प्यार का इजहार किया. वह शरमा गई और मुस्कुराने लगी. उसकी चुप्पी ही उसके इज़हार कि साक्षी थी पर एक दिन अचानक सुधीर बेहद गुस्से में वैभव के पास आया और बोला, “वैभव तुम्हें शर्म नहीं आती मेरी बहन पर बुरी नज़र डालते हुए.कल शाम मैंने बाजार में तुम दोनों को हाथों में हाथ डालकर घूमते हुए देखा है.”
“सुधीर शांत हो जाओ, मैं कीर्ति पर बुरी नजर रख ही नहीं सकता. मैं तो उससे प्यार करता हूं और शादी करना चाहता हूं.”
“नहीं यह नहीं हो सकता हमारा परिवार यह प्रेम विवाह जैसी चीजें को नहीं समझता है और ना ही हम चाहेंगे कि वह तुमसे शादी करे. मेरे पापा उसकी शादी कहीं और करना चाहते हैं.”
“सुधीर, ऐसा मत करो, कीर्ति उस शादी में कभी खुश नहीं रह पाएगी,हमारा प्यार कोई खेल नहीं है बल्कि हम दोनों ही अपने प्यार के आगाज़ को शादी के अंजाम तक पहुंचना चाहते है,तुम खुद कीर्ति से पूछ कर देखो,उसका एक लफ्ज़ भी मेरी कही बात से अलग नहीं होगा, मुझे पूरा विश्वास है.”
“तुम अपना विश्वास अपने पास ही रखो और आज के बाद कभी कीर्ति से मिलने की कोशिश ना करना. हम लोग जल्दी ही ये शहर छोड़ कर जा रहे हैं.”
उस दिन के बाद से वैभव ने कभी सुधीर और कीर्ति का नाम ग्रुप में नहीं सुना. वैभव का दिल भी टूट चुका था. ग्रुप छोड़ दिया था उसने. दिन-रात कीर्ति को फोन मिलाता रहता था पर उधर से कोई जवाब नहीं आता था.
एक दिन उसके मोबाइल पर कीर्ति का मैसेज आया, लिखा था, “मैंने तुम्हारी जिंदगी में आकर तुम्हें दुख के सिवा कुछ नहीं दिया है, तुम्हरी दोषी हूं मैं, चाहे हमारे नामों का अर्थ भले ही एक हो पर इस जीवन में हम कभी एक नहीं हो पाएंगे. प्लीज़, एक गुजारिश है तुमसे कि तुम अपना घर बसाना और खुशी से अपनी जिंदगी यापन करना, अंत में यही कहना चाहती हूं कि तुम्हारे प्यार की हकदार तो ना बन सकी पर तुम्हारी माफी की हकदार जरूर बनना चाहूंगी, जो तुम्हारी हो ना सकी, कीर्ति.”
वैभव को यकीन ही नहीं आ रहा था कि वह कभी कीर्ति से इस तरह के व्यवहार की अपेक्षा रखेगा. अपने दिल का हाल वह किसी के सामने बयां नहीं कर सकता था. ऐसी हालत में वह भीतर ही भीतर घुटने लगा था. संगीत से तो वह कीर्ति के जाने के साथ ही नाता तोड़ चुका था परंतु उसके कुछ खास दोस्तों ने उसे जीवन के साथ नाता नहीं तोड़ने दिया, फिर कुछ समय बाद उसने अपने माता-पिता का दिल रखने के लिए शादी भी कर ली थी.
चाहत भाग 2
चाहत (भाग 2 ) – जगनीत टंडन : hindi stories with moral