चांद पर थूकना – सरोज माहेश्वरी : Moral Stories in Hindi

  अरे आकाश! तुम यह क्या कर रहे हो ?… कहकर स्वाति जोर जोर से चिल्लाने लगी.. अरे अरे भावी! कहते हुए आकाश चुप हो गया… बहू स्वाति की आवाज सुऩकर सास ससुर और स्वाति का पति  दिवाकर कमरे में  दौड़कर आए… देखो माँ जी!

आकाश मुझे गलत तरीके से छू रहा था… नहीं भावी! यह सही नहीं हैं, आप ही ने तो कहतेे कहते आकाश रुक गया। पापाजी! आकाश की नियत ठीक नहीं है कहकर स्वाति फिर जोर जोर से रोने लगी। आक्रोश में आकर पति दिवाकर ने आकाश के गाल पर जोरदार थप्पड़ जड़ दिया…

आकाश तुम आस्तीन के साँप निकले .. तुमने धर्मात्मा का चोला ओढ़कर कर  मां समान भाभी पर बुरी नजर डाली… तुम्हें अपने घर में शरण दे कर हमने बहुत बड़ी गलती की… स्वाति की जहरीली हंसी आकाश के अपमान में चार चांद लगा रही थी।

आकाश दिवाकर की बुआ का लड़का था गांव में पढ़ाई की सुविधा ने होने के कारण कक्षा बारहवीं के बाद अपने मामा के घर रहकर BBA की पढ़ाई कर रहा था। स्वाति रिश्ते में उसक़े ममेरे भाई की पत्नी अर्थात् भावी थी… आकाश सनातन धर्म के प्रति आस्था रखने वाला हनुमान भक्त ,ईश्वर में असीम आस्था  रखने वाला सीधा सादा लड़का था…

सुबह शाम पूजा और पढ़ाई के अतिरिक्त दुनियादारी से कोई मतलब न था। घर बाहर के लोग उसे महात्मा जी कहते थे आकाश के ऐसे चरित्र पर किसी को विश्वास न था…. सभी भौचक्के थे

तभी दिवाकर की छोटी बहन तुरंत बोली…. यह सब झूठ है तुरंत उसने अपने फोन से एक वीडियो चला दिया और बोली.. मैं यह वीडियों अपने घर का टूर यू ट्यूब पर दिखाने के लिए  बना रही थी… आकाश भइया  छत पर  टहल कर पढ़ रहे थे तभी स्वाति भावी ने भइया को इशारे बुलाया …

मैं सोच रही थी कि भावी को कुछ काम होगा … यह सब इतनी जल्दी हुआ और सब कुछ वीडिय़ों मे रिकार्ड हो गया…वीडियों देखकर सबकी आंखें फटी की फटी रह गईं पिक्चर में जबरदस्ती स्वाति आकाश को अपनी ओर खींचकर किस कर रही थी। आकाश स्वाति की बाहों से निकलने की कोशिश कर रहा था।

नवीन तकनीकि ने एक निर्दोष को बचा लिया अन्यथा पलडा नारी का ही भारी रहता …. एक निर्दोष पर दोष लगाकर स्वाति घरवालों की नज़रों में पूरी तरह से गिर गई…

स्वरचित मौलिक रचना 

सरोज माहेश्वरी पुणे ( महाराष्ट्र) 

# चाँद पर थूकना( निर्दोष पर दोष लगाना)

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