केक – उमा महाजन : Moral Stories in Hindi

बचपन से ही खाने-पीने के अति शौकीन दादा जी अपनी वृद्धावस्था में यद्यपि अब डायबिटीज और बीपी के शिकार हो चुके थे, किंतु आजकल अपनी बहू द्वारा समय-समय पर उनके मीठे, अति तीखे और चटपटे खाद्य पदार्थों पर लगाई जाने वाली रोक-टोक उन्हें सहन नहीं हो रही थी।

वे दादी से भी अक्सर ही इस बात की शिकायत किया करते किंतु, इस मामले में दादी पूरी तरह से अपनी बहू की पक्षधर थीं। दरअसल दादी को अपनी पढ़ी-लिखी बहू के व्यवहार पर पूरा विश्वास था।

   आज सुबह भी अपनी बहू को बड़े उत्साह और उमंग से किचन में व्यस्त पाकर दादाजी, दादी के आसपास मंडराते हुए बड़ब़ड़ा रहे थे कि न जाने आज सुबह से ही बहू रसोई में क्या-क्या बना रही है, पर मुझे क्या ? मुझे तो रोज जैसा वही रुखा-सूखा ही खाने को देगी।

 फिर, शाम को उनकी नन्हीं पोती आशिमा उन्हें बांह से खींचकर डाइनिंग हॉल में ले आई। वहां डायनिंग टेबल पर एक सुंदर केक रखा था और उनको अंदर आते देखकर ही हॉल ‘हैप्पी बर्थडे टू दादू’,’हैप्पी बर्थडे टू नानू’ तथा हैप्पी बर्थडे टू पापा’ की ध्वनियों तथा सबकी तालियों की आवाज से गूँज उठा। 

   तभी बहू उनके निकट आई और उनके चरण-स्पर्श करके हँसते हुए बोली,’पापा,आपको अपने 75वें जन्मदिन की ढेर सारी बधाई एवं शुभकामनाएं ! आप शतायु हों और आपका आशीर्वाद हम सब पर हमेशा बना रहे। आज यह केक मैंने विशेष रूप से आपके लिए शुगर फ्री शक्कर

और बहुत ही कम घी डालकर बनाया है। संभवतः यह  बाजार जैसा नरम तो नहीं बना होगा , लेकिन आप इसे जी भरकर खा सकते हैं। आज आपको कोई नहीं रोकेगा।’    

   बहू द्वारा अपनी रोक-टोक का ‘राज खोलते’ ही दादाजी की आंखें आत्मग्लानि से पूर्णतः नम हो गईं और उसे आशीष देते समय वे मन ही मन सोच रहे थे कि मैं कितना गलत था। सचमुच कभी-कभी हम जो सोचते हैं,वह पूरा सच नहीं होता है ।

उमा महाजन 

कपूरथला 

पंजाब 

# मुहावरा..राज खोलना 

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