बायपास – ज्योति अप्रतिम

मम्मीजी , मुझे अभी अपनी माँ के पास जाना है ।

भूमिका ने रोते हुए कहा । 

अरे !,क्या हुआ इतना क्यों रो रही हो ?पहले यहाँ बैठो ,पानी पियो और बताओ ,क्या हुआ ?

बस कुछ नहीं ।मुझे माँ की बहुत याद आ रही है।

ठीक है ,चली जाना पर पहले बताओ क्या हुआ? सासूमाँ ने उससे प्यार से पूछा ।

मम्मीजी वो बुआजी बहुत डाँट  रहीं थी और मेरे मम्मी पापा के लिए बहुत अपशब्द बोल रहीं थी।

क्यों भला ?

वही दहेज में आये कपड़े अच्छे नहीं थे ।एक ही तो बात है उनके पास ।

देखो बेटा ,मैं मानती हूँ बुआजी गलत कर रहीं हैं।पर कभी कभी  हमें  शब्दों को अनचाहे चबाना पड़ता है और अहम को निगलना पड़ता है।

इसका मतलब  यह नहीं कि  हमने हार मान ली है बल्कि हमने अपनी मर्यादा नहीं खोई है।

माफ करना मम्मीजी ,  छोटे मुँह बड़ी बात कर रही हूँ ।युधिष्ठिर की तरह सहनशीलता भी महाभारत का कारण बनती है।

इस बात पर सासूमाँ हँसते हुए बोलीं ,अरे !महाभारत नहीं करनी है ।वो क्या कहते हो ,तुम लोग ,हाँ ….बायपास कर दो ।समझी क्या ?

 

एक और बात …..मर्यादा भंग करने वाले की कीमत  अपनों के साथ अपने आप कम हो जाती है। जैसे संख्या के पीछे शून्य लगता है तो मान बढ़ता है किंतु आगे लगते ही संख्या के साथ अपना भी मूल्य गिरा देता है।

ओ माय गॉड !मम्मीजी !आप तो बहुत शानदार उदाहरण खोज कर लाती हो ।वाह मज़ा आ गया।

नो महाभारत बट बाय पास !हा हा हा!

बहु को हँसते देख सासूमाँ भी खुश हो गईं।

#मर्यादा 

ज्योति अप्रतिम

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