बुरी बहू कैसे बनी? – रोनिता कुंडु  : Moral Stories in Hindi

अरे नैना बेटा! कैसी हो? सब्जियां लेने आई हो? आज तुम्हारी सास को नहीं भेजा? उनकी तबीयत तो ठीक है ना? नैना के मोहल्ले में ही रहने वाली अर्चना जी ने कहा 

नैना: हां काकी, मम्मी जी बिल्कुल ठीक है और वह मंदिर गई है, इसलिए मैं सब्जी लेने आई हूं। 

अर्चना जी:  बेटा! तुम मेरी बहू की उम्र की हो, इसलिए एक बात कहे बिना रह नहीं पा रही, बेटा! कांता बहन ने बड़ी तकलीफों से मनोज बेटे को पाला है, तुम्हें तो पता ही होगा, मनोज काफी छोटा था जब उसके पापा स्वर्ग सिधर गए, तो किस तरह कांता बहन ने सब कुछ संभाला, आज उन्हें आराम की ज़रूरत है, तो ऐसे में तुम्हारा फर्ज बनता है, उनकी सेवा करो, देखो बेटा हम जैसा करते हैं, वैसा ही हमारे पास वापस आता है, इससे कल को तुम्हारा ही भला होगा, तुम्हारा भी एक बेटा है, वह तुम्हें देखकर ही सीखेगा। 

नैना हैरान होकर:  काकी! यह आप क्या बोल रही है? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा? क्या मम्मी जी ने आपके कुछ कहा? 

अर्चना जी: अरे नहीं नहीं, वह क्या कहेंगी भला? वह तो बस मैंने उनके संघर्ष को देखा है ना, इसलिए ऐसा कहा, चलो अब मैं चलती हूं, पर मेरी बात पर गौर ज़रूर करना। 

उसके बाद अर्चना जी चली गई, इधर नैना हैरान यही सोचते सोचते घर आ गई और फिर इस बात को वह भूल गई, कुछ दिनों बाद नैना बस स्टॉप पर अपने बेटे हिमांशु को लेकर उसके स्कूल बस का इंतजार कर रही थी। तभी उसने देखा मोहल्ले के कुछ और औरतें भी बस का इंतजार कर रही है। नैना की तरफ वह इशारा कर आपस में खुसर फुसर कर रही है, नैना बड़ी असहज महसूस करने लगी, क्योंकि वह औरतें उसे अजीब अजीब मुंह बनाकर उसके बारे में न जाने क्या कह रही थी?

तभी स्कूल बस आ गई और सारे बच्चे उस पर सवार हो गए, उसके बाद नैना ने उन औरतों से पूछ ही लिया, आप लोग मेरे बारे में कुछ बोल रहे थे क्या? वे औरते थोड़ा हिचकिचाते हुए कहती है, अरे नहीं नहीं, रोज हिमांशु को छोड़ने उसकी दादी आती है ना, आज आप आई तो वही कह रही थी, वैसे आज हिमांशु की दादी नहीं आई? तबीयत तो ठीक है ना उनकी? एक बात बोले, बुरा मत मानना बहन, बेचारी की काफी उम्र हो गई है, उनकी थोड़ी सेवा कर देना, दुआ मिलेगी।

नैना फिर हैरान होकर:   हां हां मम्मी जी ठीक है! वह अपनी बहन के यहां गई है, एक हफ्ते बाद आएगी। यह कहकर नैना वहां से चली गई। पर उसके मन में एक सवाल घर कर गया, हर कोई उससे ऐसी बातें क्यों कह रहा था? इसका पता तो लगाना पड़ेगा, आने दो मम्मी जी को उनसे ही पूछूंगी, लगता है उन्होंने ही यह सब कुछ कहा है 

एक हफ्ते बाद, जब कांता जी आती है, तो साथ में उनकी बहन आशा जी भी आती है, जिन्हें देख नैना कहती है, अरे मासी जी आप? मम्मी जी आपने बताया नहीं मासी जी भी आ रही है? 

आशा जी:  अच्छा! तुम्हें हर काम बता कर करेगी यह? मैंने ही मना किया था इसे तुम्हें कुछ बताने को। 

मासी जी के इस बात से नैना को यकीन आ गया की मम्मी जी ने ही यही सारी बात सभी से कही है। नैना वही खड़ी-खड़ी यही सब सो रही थी कि तभी आशा जी कहती है, अब यही खड़ी रहोगी या जाकर चाय भी लाओगी? नैना हड़बड़ाती हुई रसोई में जाती है और झटपट चाय बनाकर ले आती है। चाय की चुस्कियां लगाते हुए आशा जी कहती है, बहू कुछ दिनों तक मैं यही हूं और देखती हूं यहां के लोगों का रूप कितना बदला है? आशा जी की यह इंगित नैना को समझ आ गई और उसने सोचा जरूर मम्मी जी ही है इसके पीछे। अगली सुबह नैना सब्जी का थैला कांता जी को थमा कर कहती है, मम्मी जी! बस पालक और मटर ले आइए, बाकी की सब्जियां मैं ले आई हूं। 

इतना सुनना ही था कि आशा जी कहती है, क्या? जीजी जाएगी सब्जी लाने? जब सारी सब्जियां तुम ले ही आई, फिर पालक और मटर क्यों छोड़ा? सुनो बहू तुम्हारे बारे में सब सुना है मैंने, किस तरह तुम जीजी से अपना हर काम करवाती हो, अरे मैंनें तुम्हें बहुत अच्छा समझा था, पर तुम भी बाकी बहूओ की तरह ही निकली, इसकी उम्र ना सही इसकी तकलीफ नहीं दिखती तुम्हें?

घुटनों के दर्द से यह इतनी तड़पती है, फिर भी बाजार जाना, लड्डू को बस स्टॉप पर छोड़ना, इतना दौड़ाती हो तुम? तुम्हें शर्म नहीं आती? आखिर तुम्हें भी एक दिन बुढ़ी होना है, मुझे तुमसे यह उम्मीद नहीं थी। मैंने तुमसे इसे और दोड़ाने को कहा था, तुम बस इतना ही दौड़ती हो? अरे यह बहुत ढीठ है, जब तक इसके पीछे ना लगो, यह कोई काम नहीं करेगी, यह कहकर आशा जी हंसने लगी साथ में नैना भी। 

कांता जी:  यह तुम दोनों क्यों हंस रही हो? आशा और तुम यह क्या कह रही हो?

 आशा जी:  हां बहू ने मुझे सब बताया तुम्हारे घुटनों के दर्द और बढ़ते कोलेस्ट्रॉल की वजह से डॉक्टर ने तुम्हें सैर करने की सलाह दी, पर तुम बस दिन भर घर में बैठकर अपनी सेहत को और बिगड़ने पर लगी थी, नैना को बड़ी चिंता हो रही थी तुम्हारी, तभी उसने मुझे फोन किया और मैंनें ही उससे कहा, यह छोटे-मोटे काम तुमसे करवाया करें, अच्छे से जो ना माने तो, एक दो फटकार भी लगा दिया करें और यह वही कर रही थी और तुमने जीजी, इसके बारे में पूरे मोहल्ले में ढिंढोरा पीट दिया?

जीजी! बहू बुरी हो या अच्छी, घर की इज्जत को यूं सरेआम जो करोगी तो नुकसान तुम्हारा ही होगा, क्योंकि जब सेवा की जरूरत पड़ेगी ना, कोई मोहल्ला नहीं आएगा, वह तो बस मैयत में आकर थोड़ा रो गाकर चले जाएंगे, भले ही उनके घर हजार क्लेश हो, पर तुम्हारे घर के बारे में जानकर उसमें आग में घी डालने का काम जरुर करेंगे और यह मौका हम ही तो देते हैं उन्हें, नैना कैसी है यह तुम्हें नहीं पता क्या? उसके इस बदले व्यवहार को देखकर तुरंत लग गई मोहल्ले में ढिंढोरा पीटने? तुमसे यह उम्मीद नहीं थी जीजी। 

कांता जी:  है भगवान! यह सब कुछ मेरे लिए कर रही थी और मैं अपने ही घर की इज्जत खुद ही नीलाम किए जा रही थी? माफ कर दो नैना मुझे! अब कभी ना करूंगी ऐसा और सैर पर भी जाऊंगी और अपना फैलाया हुआ रायता खुद ही समेटूंगी 

आशा जी:  और एक बात नैना! जो यह सैर पर न जाए ना, इसका खाना ही बंद कर देना, क्योंकि बाकी सभी चीजों को छोड़कर यह रह सकती है, पर खाना नहीं, देखना फिर कैसे यह सैर पर जाएगी, क्योंकि यह बचपन से ही चटोरी है, सभी ठहाके मारकर हंसने लगते हैं।

दोस्तों! इस कहानी में एक सिख यह है की, बहू बुरी हो या अच्छी उसकी निंदा बाहर वालों के सामने करना उसे और बुरा बना देता है। घर की बात अगर घर में ही सुलझाया जाए, तो हम जगहसाई से बच सकते हैं, क्योंकि आपका दुख सुनने के बाद, लोग हमदर्दी से ज्यादा उसके मजे लेने में दिलचस्पी रखते हैं और यह एक उनके गपशप में मजेदार कहानी के अलावा कुछ नहीं होता। जो आपके लिए दर्द है वह उनके लिए मसालेदार कहानी, तो अपने दर्द को वही बांटे, जहां से वह हल्का हो, ना कि दोगुना।।

धन्यवाद 

रोनिता कुंडु 

#घर की इज्जत

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!