पति की अचानक मौत होने से पूनम के सिर पर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ा। ख़बर सुनते ही वह बेहोश हो गई। जब होश आया तो उसने अपने बच्चों से कहा- ताऊजी, ताई जी है वह भी हमारी सहायता करेंगे।
लेकिन तुम दोनों भाई बहनों को पढ़ाई में खूब मेहनत करनी है। बेटा पढ़ाई लिखाई बिना इस दुनिया में कुछ नहीं है। बिना पढ़ाई लिखाई के कोई भी तुम्हें बेवकूफ बना सकता है।
एक दिन वह एक चीज़ माँगने के लिए अपनी जेठानी के पास गई लेकिन कुछ बातें सुनकर वह बाहर ही खड़ी रह गई।
जेठानी कह रही थी, “अब तुम इन लोगों को ज्यादा मुंह मत लगाना। हमारे भी तो बच्चे हैं।” हम अपने बच्चों का करेंगे कि इन बच्चों का करेंगे। हमारे ऊपर अपने ही बच्चों की जिम्मेदारी बहुत है। अभी सब की पढ़ाई पूरी करनी है फिर शादी करनी है।
जेठ जी बोले, “ऐसा ही करूंगा। थोड़ा तो धीरज धरो।”
यह बातें बाहर ही सुनकर पूनम लौट गई और घर आकर जोर-जोर से रोने लगी। उसकी पुत्री ने पूछा, “मां क्या हुआ?” मां बोली, “कुछ नहीं बस ऐसे ही जी भर आया।”
एक दो बार पूनम अपनी जेठानी के पास किसी काम से गई भी लेकिन उसे उल्टा सीधा जवाब ही मिला। उसे अब अपनी जेठानी से कोई उम्मीद नहीं थी।
उसके पति की मृत्यु की बात उस के पति के पक्के दोस्त दीपक को भी पता चल चुकी थी। उसका रोज फोन आता था। भाभी किसी सहायता की जरूरत हो तो हमें जरूर बताइएगा। आज जैसे ही दीपक का फोन आया
तो पूनम ने कहा, “क्या मुझे तुम्हारे घर के पास किराए पर मकान मिल जाएगा।” दीपक ने तुरंत उनके लिए मकान ढूंढ लिया।कुछ दिनों बाद ही पूनम अपने दोनों बच्चों को लेकर दीपक के शहर भोपाल रहने चली गई। वहां दीपक और उसकी पत्नी उनकी हर संभव सहायता करते थे। कुछ ही दिनों में पूनम और उसके बच्चे संभल गए।
अब उन्हें किसी की सहायता की ज़रूरत नहीं थी परंतु उनके मन में दीपक की प्रति अभी भी सम्मान था। सच है सच है कभी-कभी अपनों से ज्यादा पराए अपने हो जाते हैं।
स्वरचित, मौलिक व अप्रकाशित रचना
लक्ष्मी कानोडिया
अनुपम एंक्लेव किशन घाट रोड
खुर्जा 203131(बुलंदशहर),
उत्तर प्रदेश