बुलबुल* – अनु मित्तल  ‘ इंदु’

बात पांच साल पुरानी है ।मेरी बेटी की शादी हो गई थी ।  हमारे घर के पिछले स्टोर में से कुछ आवाजों ने हमें चौंका दिया । मैंने अपनी नौकरानी सुंदरी से कहा कि ज़रा स्टोर में देखो क्या आवाजें आ रही हैँ । हमने देखा कि एक बड़े से कुशन  पर बिल्ली के चार नवजात बच्चे पड़े हुये थे और अपनी माँ का दूध पी रहे थे ।

मैं चुप चाप उन्हें देख कर अपने काम में लग गई । कभी कभी बीच में जाकर उन्हें देख आती ।

मैंने एक कटोरे में दूध भी डाल कर रख दिया ताकि बिल्ली का पेट भर सके। इस तरह चार पाँच दिन बीत गये ।

मैं रोज़ सुबह शाम बिल्ली के लिये दूध रखने लगी।

अगले दिन दीवाली थी , घर में कितने ही दोस्त मिलने आ जा रहे थे ।

हमारे एक फेमिली  फ्रेंड भाटिया जी अपने परिवार के साथ आये तो मैंने उन्हें बताया कि हमारे घर में बिल्ली ने बच्चे दिये हैँ ।

भाटिया जी के बच्चे ज़िद करने लगे कि हमें भी दिखाओ ।

मैं उन्हें स्टोर से एक बच्चा ला कर दिखाने लगी , तब उनकी माँ वहाँ नहीं थी

मिसेज भाटिया ने बिल्ली के बच्चे को अपने हाथ में ले लिया , कुछ देर तक वो बिल्ली के बच्चे से खेलते रहे ।

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अभी उसने आँखें भी नहीं खोली थी । मैंने बिल्ली के बच्चे को वहीँ पर रख दिया ।

अगले दिन काम निपटा कर जब मैं बिल्ली के बच्चों को देखने गई तो देखा कि एक बच्चा अलग सा पड़ा है और बाकी बच्चे अपनी माँ का दूध पी रहे हैं । ध्यान से देखा तो वो वही बच्चा था जिससे हम खेल रहे थे ।

बिल्ली उस बच्चे को दूध नहीं पिला रही थी । मुझे कुछ अटपटा सा लगा

उस रात तीन बजे के क़रीब मुझे बच्चे के रोने की आवाज़ आई ।

मैंने देखा कि बिल्ली अपने तीन बच्चे लेकर कहीं और जा चुकी है । सिर्फ वही बच्चा वहाँ पड़ा रो रहा था जिसे हमने छुआ था ।

हम सुबह होने का इंतजार कर रहे थे कि उसकी माँ आकर अपना बच्चा ले जायेगी । मगर सुबह के 6 बजे तक भी वो नहीं आई ।

वो बच्चा भूखा था ।मेरे पास कोई बोतल भी नहीं थी जिससे उसे दूध पिला सकूँ ।

मैंने एक आई ड्राप्स की शीशी में से ड्रोपर   निकाला , उसे अच्छी तरह उबाल कर sterlize किया और बच्चे को  दूध पिलाया ।

उसकी जान में जान आई । जब दुकानें खुलीं तो फीडर मंगवाया । सर्दियों के दिन थे । मैंने नीचे छोटा सा कुशन रख कर एक टोकरी में उस बच्चे को रख दिया । वो मादा थी इसलिए उसका नाम बुलबुल रखा ।

धूप निकलने पर मैं उसे बाहर निकाल लेती ।मैं उसे गर्म पानी से नहलाती , शैंपू करती । फिर टॉवल  में उसे लपेट कर बाहर धूप में लेकर बैठ जाती , एक दिन इसी तरह गोद में लिये बैठी थी कि बाहर सड़क पर स्वीपर मुझे देख कर बोला ‘ पोता है क्या ?’  मैंने कहा ‘ नहीँ , बिल्ली का बच्चा है ‘ । सुन कर वो हंस दिया ।

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पिछले साल ही घर में शादी हुई थी , शायद इसी लिये उसने कहा होगा।  आसपास के सब बच्चे उससे खेलने आते । इस तरह वो बड़ी होने लगी । फिर गूगल से सारी जानकारी इकट्ठी की , बिल्ली के खान पान और रख रखाव के बारे में । एक pet क्लीनिक  से उसकी vaccination करवाई । रात को उठ उठ कर उसको दूध पिलाती । मुझे वो अपने बच्चों सी लगती । वो मेरे साथ 4 साल तक रही ।

कई बार जब मैं कहीं बाहर जाती कुछ दिन के लिये तो वो भी ग़ायब हो जाती । फिर अचानक किसी दिन आ जाती , उसे घर की पहचान थी । पिछले साल  जब बेटे की शादी के सिलसिले में लोग आ जा रहे थे तो वो अचानक ग़ायब हो गई , और फिर कभी लौट कर नहीं आई ।

बेटे की शादी के सिलसिले में मेरी बेटी भी आई हुई थी अपनी छः महीने के बेटे  के साथ । एक दिन मैं अपने नाती  को कंबल में लपेट कर गोद में लेकर बाहर धूप में  बैठी थी कि वही  स्वीपर पूछने लगा , बिल्ली का बच्चा है क्या ? फिर से ले आईं क्या ? ‘ मैंने कहा ‘ अरे नहीँ भाई , इस बार सचमुच नाती  है ‘ ।

अनु मित्तल  ‘ इंदु’

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