बूढ़ी अम्मा – कुमार किशन कीर्ति : Moral Stories in Hindi

आज बूढ़ी अम्मा उदास है।निराश है। कहने को तो चार बेटे हैं,मगर किसी भी बेटे को इतनी फुरसत कहां की बूढ़ी अम्मा के पास वक्त निकालकर बैठे। हालचाल पूछे। बहुएं भी कुछ कम नहीं हैं।वे सब तो बेटों से कई कदम आगे हैं। बूढ़ी अम्मा को कभी आदर_भाव नहीं देती,और खाना तो हमेशा बिना किचकिच किए नहीं देती थी।खैर… जब अपने बेटे ही ऐसे निकल गए तो बहुएं तो पराई घर से आई हुई थी। उनसे क्या शिकायत करना!

यही सब सोचकर वह घर के किसी कमरे में बैठी रहती।कभी_कभी आंखों से जल निकल आते।बेचारी… बूढ़ी अम्मा करती भी तो क्या!आज अगर उसके पति जिंदा होते तो क्या उसकी ऐसी दशा होती? हरगिज नहीं…. बेटों की करतूत को देखकर वह तो बूढ़ी अम्मा को लेकर दूर कहीं भी चले जाते। परंतु अब,वह कुछ भी नहीं कर सकती थी। मै कभी_कभी बूढ़ी अम्मा से मिलने चला जाता। मुझे देखकर वह अपना दुखड़ा सुना देती।शायद,इससे उनका मन हल्का हो जाता था। मैं भी कभी_कभी भुजा या पकौड़े इत्यादि लाकर बूढ़ी अम्मा को देता।वह तब बड़े ही प्रेम से खाती और मुझे जी भरकर आशीष देती थी।

एक दिन की बात है। मैं छुट्टी पर था।सोचा, बूढ़ी अम्मा से मिल आऊं।जब गया,तो मुझे देखते ही वह प्रसन्न होकर बोली”आओ गोविंद, बैठो बेटा।”मैं भी वही आंगन में बैठ गया।फिर बूढ़ी अम्मा अपनी पैबंद लगी साड़ी को दिखाती हुई बोली”देखो बेटा, उनके गुजरने के बाद मेरी हालत किस कदर हो गई है।इस उम्र में पैबंद लगी साड़ी पहनी हुई हूं।कोई ठीक से बातें भी नहीं करता है। आखिर मैं किधर जाऊं?”बूढ़ी अम्मा की बातें सुनकर मेरा हृदय द्रवित हो गया। किंतु, मैं कर भी क्या सकता हूं?फिर मैंने उनको सांत्वना देते हुए कहा”अब इस उम्र में किधर जाओगी अम्मा!जो देते हैं, चुपचाप खा लो।”

मेरी बातें सुनकर वह बोली”मैं कहां उनसे घी_मलाई और स्वादिष्ट खाना मांगती हूं।मगर,जो मिलता है, उसमें भी किचकिच होती है।”अम्मा की बातें सुनकर मैं निरुत्तर हो गया। इसके बाद, बहुत देर तक मैं बैठा रहा।फिर जाते हुए बोला”अच्छा अम्मा,आज मैं शाम को किसी रिश्तेदार के यहां जाऊंगा।अब तुमसे परसो भेट होगी।”यह सुनकर वह हंसती हुई बोली”इस स्वार्थी भरी दुनियां में तुम ही तो निस्वार्थ भाव से मुझे अम्मा कहते हो।”फिर मैं भी वहां से उठकर चल पड़ा, क्योंकि शाम की ट्रेन से मुझे निकलना था।किंतु,समय की बात कौन समझा है!

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उसी रात को बूढ़ी अम्मा पानी पीने के लिए अपनी बिस्तर से नीचे उतरी। मगर,बेचारी की लाठी फिसल गई। बड़ी ही जोर से चोट लगी।एक दर्दनाक चीख निकली।वह वहीं नीचे बैठी हुई कराह रही थी।बगल के कमरे में बड़े बेटे और बहू की नींद खुली। बहू तो खीझती हुई बोली”यह बुढ़िया तो सोने भी नहीं देती है।पता नहीं…”तभी बड़ा बेटा रमेश बोला”जी चाहता है,जाकर एक झापड़ रसीद कर दूं। जाने दो, थोड़ी देर बाद खुद ही शांत हो जाएगी।”

आंगन के चारों तरफ कमरे थे।सभी बेटों के पास अलग_अलग कमरे बने थे। रसोई एक ही में बनता था।बाकी बेटे और पतोहु भी उठकर नहीं आएं।रात भर दर्द से चीखती रही।सुबह सभी जगे।मगर, बूढ़ी अम्मा की चहलकदमी किसी ने भी नहीं सुनी।इसी बीच, मझले बेटे को कुछ अंदेशा हुआ।जाकर देखा तो आवक बूढ़ी अम्मा की लाश पड़ी है।वह डरा _सहमा हुआ जाकर बाकी सदस्यों को बताया।उसकी बातें सुनकर बड़ा बेटा रमेश निश्चिंत होकर बोला”इसमें डरने वाली कौन सी बातें है। हमने थोड़े मारा है।छोटे तुम बूढ़ी अम्मा के कमरे को साफ करो। जिंदा थी तो बोझ थी।”आदेश का तुरंत पालन हुआ।

इसके दो_तीन दिन बाद मैं गांव वापस आया। बूढ़ी अम्मा के बारे में पता चला।सुनकर मेरे नयन सजल हो गए। किंतु, आत्मसंतोष हुआ।यह सोचकर कि बूढ़ी अम्मा इस नरकीय जिंदगी से मुक्त हो चुकी थी।

किंतु, बूढ़ी अम्मा की यह कहानी आज आधुनिक और सभ्य समाज के घर_घर की कहानी है।क्या हमारा शिक्षित और सभ्य समाज इसे बदलने की कोशिश करेगा?

       : कुमार किशन कीर्ति 

              बिहार

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