बेटी अनु को कालोनी गेट तक स्कूल बस में बैठाकर लौट रही थी तभी विनय का आफिस से फोन आ गया।बताया कि आज मम्मीजी और बुआजी गांव से वहां आ रहे हैं, बुआजी को किसी शादी की खरीददारी करना है। फिर हंसकर बोले बुआजी आ रही हैं,सुनकर कुछ डर तो लग रहा होगा ना तुम्हें।
मैंने हंसकर कहा हां कुछ तो डर है क्योंकि पिछली बार के उनके कमेंट्स से हम वाकिफ हैं, वैसे मम्मीजी साथ हैं तो सम्भाल लेंगी। बात खत्म हुई और मेरा तंत्रिका तंत्र सक्रिय हो उठा।लौटते में कुछ फल दही ,छाछ वगैरह खरीद लिए।
घर पहुंचकर फटाफट घर को व्यवस्थित करने में जुट गई ।काफी समय बाद बाहर आटो रुकने की आवाज़ सुनाई दी,वे लोग आ गए थे,तेज कदमों से मैंने जाकर घर के दरवाजे खोले और उन्हें प्रणाम किया।
अंदर आकर कुछ बातें हुईं और मैं उनके पसंद की चाय बना लाई।
कुछ आराम करने के बाद और भोजन पश्चात वे लोग बाजार चले गये।
शाम के भोजन से निपटकर सभी फुर्सत में बैठे थे।मैंने सोचा शायद अब किसी बात पर उनकी टिप्पणियां सुनने को मिलेंगीं,मगर बुआजी शांत ही रहीं।
अगले दिन भी वे बाजार चले गये थे,शेष सामान खरीदने,मगर जल्दी ही लोट आए।
विनय आफिस से लेट आए।आते ही वे किचन में जाकर सलाद और दाल में मेथी का छौंका मारकर मजे से खाना खाने बैठ गए।
मैं रह रहकर बुआजी के चेहरे की ओर देख रही थी कि शायद विनय पर कुछ कमेंट करें।
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आखिर मुझसे और नहीं रहा गया।मैंने कहा बुआजी हमें पहले के समान कुछ तो राय या समझाइश दीजिए,इस बार की आपकी इतनी खामोशी मुझे अच्छी नहीं लग रही।
बुआजी मुस्कुराईं और फिर बोलीं, बेटा वर्तमान में तुम्हारी पीढ़ी के सभी काम चुनौतीपूर्ण हो चुके हैं।बच्चों की कठिन पढ़ाई ,उनके लंबे होमवर्क और प्रोजेक्ट माता या पिता को भी व्यस्त किए रहते हैं।
युवकों की नौकरियों के समय बढ़ गये हैं,वे कम्प्यूटर पर सिर झुकाए फ्रोज़न शोल्डर या कमर दर्द लिए भी अपने काम में जुटे हैं।
किचन में खाने के आयटमों की लिस्ट लंबी हो गयी है।बहू बेटियां खुद भी बाहरी भागदौड़ लिफ्ट में,हैवी ट्रेफिक में स्कूटर ,कार सभी का अपरिहार्य उपयोग कर रही हैं तदनुसार उनका पहरावा भी बदला है।इसलिए अब किसी पर कोई भी अनावश्यक टीका टिप्पणी की गुंजाइश ही कहां रही।
फिर सोचकर बुआजी बोलीं अब तुम पूछ रहे हो तो कुछ तो ज्ञान बाटूंगी ही।
बुआजी बोलीं माना कि आजकल सभी बहुत व्यस्त हैं मगर शाम ढले अपने टी वी या मोबाइल और सोशियल मीडिया पर समय बिताने की एक लिमिट निश्चित करें और आपसी संवाद को बढ़ाएं ।
घर की खिड़कियां भी खुली रखें ,पड़ोस की सुख दुख भरी आहटें महसूस करें।
बुआजी की बातें सुनकर हम अपने मोबाइल बंद कर करीब आ बैठे और देर तक बुआजी से बातें करते रहे।
अगले दिन मम्मीजी और बुआजी गांव लौट रहे थे।टैक्सी में वे लोग बैठ रहे थे।नन्हीं अनु बुआजी से बोली कि बुआजी फिर जल्दी आना,और मुझे नयी नयी कहानियां सुनाना।
बुआजी और मां भावुक हो गये थे।टैक्सी चल पड़ी थी और उनके आंखों से ओझल होते तक हमारे हाथ विदाई में हिलते रहे…
प्रेषक-विकास शकरगाए
सागर रायल विलाज़
भोपाल