ब्रेड-बटर – दीप्ति सिंह 

सुरेश की बाइक जब ग्यारह नंबर  कोठी के सामने से गुजरी तो पीछे बैठी रानी भीड़ देख ठिठक गयी, बाइक रुकवाई तथा पास जाकर एक व्यक्ति से पूछा  

“क्या हुआ भईया ?”

 “अरे कुछ नही ,जैसे कमाया था वैसे ही निकल गया छापा पड़ा है छापा ” व्यक्ति ने बताया।

 “हैय! “ठोढ़ी पर हाथ रख रानी आश्चर्य से बोली ।लेकिन रुकी नही ।बाइक पर बैठ कर चली गयी. बाइक के पहिये घड़ी की भाँति आगे चल रहे थे लेकिन रानी का मन का पहिया बारह साल पीछे घूम गया ।

  “मेम साब ! मख्खन लगी डबलरोटी कूड़े की बाल्टी में मत डाले करो ;अन्न का अपमान होवे ।”रानी बरतन माँजते हुए बोली।

 अन्न के अपमान के साथ पेट की भूख भी जुड़ी थी।रानी को पति की बीमारी  के बाद मृत्यु ने निचोड़ दिया था। सारा जोड़ा जंगोड़ा खत्म हो गया था। उस पर एक कमरे का किराया सर्दी में भी रानी को पसीने से नहला देता था ।पति की बीमारी में छुट्टी लेने के कारण काम भी छूट गए अब सिर्फ दो ही काम है।

 रानी ने थोड़ी देर पहले देखा मेमसाब दोनों बेटों को डबल रोटी पर मक्खन की मोटी परत लगा कर खिलाने की कोशिश कर रहीं थीं लेकिन बेटे सिर्फ चाकलेट वाला दूध पीकर स्कूल चले गये। रानी की नजरों के सामने आठ और छह वर्षीय दोनों बेटे सुरेश तथा राकेश पानी में नमक-मिर्च घोल कर रात की बासी रोटी खाते घूम गये।

 



यह बात रानी ने एक हफ्ते पहले भी कही लेकिन मेमसाब नही मानी बोली ‘जूठी थी इस लिये फेक दी’ रानी को पता था डबलरोटी जूठी नही थी.. मेमसाब झूठ बोल रही थी। इस समय तो रानी अपने बच्चों को जूठा भी खिलाने को तैयार थी।

  रोज मक्खन लगी डबलरोटी रानी के सामने डस्टबिन में डाल देतीं ।मेमसाब उसकी स्थिति से अनभिज्ञ नही थी पर रानी को खिजाने के लिए के लिए ये जरूर करती।

रानी की मजबूरी थी लेकिन आज उससे नही रहा गया। अन्न के अपमान का वास्ता दे कर रानी ने अपने शब्द दोहराये।

  डबलरोटी तो मिली नही साथ मे काम भी गया ।

 “मेरे बच्चों के खाने पर नजर रखती है शर्म नही आती तुझे; अपने बेटों की कसम खाती हूँ जो कल से तेरा मुहँ देखूं ” मेमसाब ने तेज आवाज में बोलते हुए गेट से रानी को बाहर कर दिया।

 ईश्वर एक द्वार बंद करता है तो दूसरा खोलता भी है ।रानी को दो दिन बाद  ही एक काम मिल गया ।कुछ दिन बाद और काम भी मिल गए। 

रानी के दोनों बेटे सिर्फ इतना ही पढ पाए कि समय को नाप सके।

सुरेश ने घरों में पत्थर और टाइल्स लगाने का कार्य सीखा इस काम में  साझीदार बना राकेश। रानी का घर बन गया।दोनों बेटों ने अपने घर में भी पत्थर और टाइल्स लगा डाले।

 लौटते समय रानी ने देखा भीड़ छट चुकी है ।रानी आगे बढ़ गयी यूं तो लौटते समय वह डबल रोटी और मक्खन ले कर लौटी थी ।

 एकबारगी रानी का मन बोला मेमसाब को हिम्मत बंधा दे।  लेकिन तभी याद आया मेमसाब ने तो अपने बेटों को कसम दे रखी है कैसे अंदर जाए वह ?

सुरेश की बाइक भले ही आगे बढ़ गयी लेकिन रानी कोठी को तब तक देखती रही जब तक आँखों से ओझल न हो गयी फिर मन मे बोली ” भगवान ! तेरे घर देर है पर अंधेर नही “

#कभी_खुशी_कभी_ग़म 

दीप्ति सिंह (मौलिक,स्वरचित)

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!