मैं कहां हूं, यहां मैं कैसे आ गया, बेटा बताओ तो मुझे क्या हुआ है?
नाक पर ऑक्सिजन का मास्क , शरीर हिलने डुलने जैसा भी नही, कमर पर ,हाथ पर बेल्ट, सबकुछ असामान्य सा, पर धीरे धीरे मस्तिष्क काम करने लगा। कुछ हुआ तो है, पर क्या और कैसे, कुछ याद नहीं. मास्क चढ़े मुंह से भरभरी आवाज में उक्त प्रश्न रमेश अपने सिरहाने एक स्टूल पर बैठी नर्स से पूछ रहा था. नर्स बहुत ही स्नेह से बालो में हाथ फिराते बोली , अंकल आपका एक्सीडेंट हो गया था, अब आप जल्द ठीक हो जायेंगे,आप बिल्कुल ना सोचे.
तीन दिन रमेश आई सी यू में रहा और कभी दिन मे तो कभी रात्रि में उस नर्स की ड्यूटी उसके बेड पर ही रही. दोनो का एक दिन में ही काफी लगाव हो गया था. रमेश बोला एक बात बताओ सिस्टर क्या मैं तुम्हें बिटिया बोला करूं, तुम्हें कोई ऐतराज तो नहीं? अरे अंकल मैं आपकी बिटिया ही तो हूं, फिर आंखों में आंसू भरकर बोली अंकल आप पहले हैं जो रिश्ते में बांधने चले हैं , नही तो हम तो अंकल, रुटीन की सिस्टर बनकर रह गए हैं. रिश्ता तो बस मरीज और नर्स का है हमारा. सच कहूं अंकल, बिटिया कह कर आपने मुझे रुला ही दिया. रमेश ने धीरे से उसका हाथ दबा दिया. उस स्नेह रूपा नर्स का नाम भी स्नेह ही था.
शाम को जब रमेश की पत्नी मिलने आई तो रमेश बोला सुनती हो देखो तुम कहती थी ना कि हमारे कोई बेटी नही है, देखो यहां हॉस्पिटल में पड़े पड़े मैं तुम्हें हमारी बिटिया से मिलवा रहा हूं , यह है हमारी बिटिया स्नेह. स्नेह भी रमेश की पत्नी के गले से लग गई. तीन दिन बाद रमेश को एक कमरे मे शिफ्ट कर दिया गया.
रमेश हॉस्पिटल में पंद्रह दिन और रहा, इस बीच स्नेह की ड्यूटी जैसे ही समाप्त होती, सीधे रमेश के कमरे में आ जाती और सारी व्यवस्थाओ को देखती , वहां के स्टाफ को बड़े ही अधिकार से कहती देखो ये मेरे अंकल हैं, इनको कोई भी तकलीफ नहीं होनी चाहिए. फिर दो दो घंटे वो मेरे और मेरी पत्नी के पास बैठी रहती.
और एक दिन तो गजब ही हो गया, स्नेह पूरे स्टाफ के साथ एक ट्रॉली में केक सजाएं रमेश के कमरे में प्रवेश करती है और दरवाजे से ही तालियां बजा कर हैप्पी मैरिज एनिवर्सरी,बोला. हम एक दम चौंक गए ध्यान आया, हां आज तो वाकई हमारी विवाह वर्ष गांठ है. आश्चर्य से रमेश व उसकी पत्नी स्नेह की ओर देख रहे थे कि उसे इस दिन का पता कैसे चला? तभी मेरे दोनो बेटे भी कमरे में आ गए बोले पापा ताज्जुब मत करो , तारीख हमने बताई पर सब करा धरा स्नेह ने ही.
रमेश की आंखो में आंसू थे उसने स्नेह को अपनी ओर खींच गले से लगा लिया.रमेश की पत्नी और बेटे भी हमारे इस स्नेह मिलन से भावुक हो रहे थे, तभी जोर जोर से तालिया बजने लगी, डॉक्टर भी आ गए और सबने रमेश और उसकी पत्नी से केक कटवाया और उन्हें उपहार दिए. लग ही नहीं रहा था कि वो हॉस्पिटल में है.
रमेश हॉस्पिटल से अपने घर आ गया था, स्नेह अब कभी भी घर आ जाती थी, उस दिन रमेश के घर उत्सव जैसा वातावरण रहता. रक्षाबंधन पर स्नेह ने रमेश के बेटो को राखी बांधी तब रमेश को लग रहा था परिवार तो पूरा हो गया, बेटे तो थे और अब बेटी भी मिल गई, पर कुछ टीस सी मन में थी.
राखी बांध स्नेह बोली अच्छा अंकल अब मैं चलती हूं. रमेश एक दम चौंका और सकुचा कर बोला सुन स्नेह, मेरे पास आ ,देख तूने हमे बिटिया तो दे दी आज हमे पापा मम्मी का दर्जा भी दे दे बेटी,मत बोलाकर अंकल , बोलाकर पापा. बोलेगी ना पापा.
और स्नेह रोती हुई लिपट गई अपने पापा से.
बालेश्वर गुप्ता
पुणे (महाराष्ट्र)
मौलिक, अप्रकाशित