रात को अचानक फोन घरघरा उठा। थोड़ा झल्लाते हुए उठाया, उधर से आवाज़ आई,”हाय बिल्लो! कैसी है तू?”
वो चौंक गई…..।
इतने सालों में तो अपना ये प्यारा नाम भी भूल चुकी थीं। अपने माता पिता की इकलौती संतान तो थी हीं, बहुत मानता आदि के बाद उनका जन्म हुआ था। दादी ने उन्हें अपने आँचल में छिपा लिया था और बहुत प्यार से बिल्लो नाम दिया था। अब आज इतने सालों बाद अचानक ये नाम….और वो भी ‘तू’ सम्बोधन के साथ। वो अचानक से चिल्लाई,”अरे चपला तू….इतने दिनों बाद, कहाँ गायब रही?”
वो भी उतने ही उत्साह से बोली,”कूल बिल्लो कूल! इतने सारे सवालों के जवाब एक साथ नहीं दे सकती। तेरी जासूसी करके तेरा नंबर और पता हासिल कर ही लिया है, बस अगले सप्ताह तेरे पास आ रही हूँ, अब बहुत अकेली हो गई हूँ”
वो उतावली होकर पूछ बैठी,”ये क्या पहेलियां बुझा रही है, तू और अकेली?”
“हाँ, मैं तुझे कितना चिढ़ाती थी! तू बढ़िया बढ़िया फ्रॉकों में सजी ऊपर से झाँकती थी, हम चारों बहनें साधारण कपड़ों में मस्त होकर खेलते थे और तू अकेली कितना चिढ़ती थी ना।”
उन्हें धीरे धीरे सब याद आता जा रहा था। फोन अचानक कट जाने से वो चुपचाप आँखें बंद करके बैठी रह गईं। सच्ची वो भी क्या दिन थे…वो अक्सर सुंदर ड्रैस में सजधज कर बाजू वाले घर में खेलने जाती थीं, वहाँ वो लोग चार बहनें थीं और अंकल की साधारण आय में भी वो सब कितनी खुश रहती थी। वो छोटी थीं और अपनी बढ़िया फ्रॉक पहन कर सबको दिखाने पहुँची थी,”ये मेरी फ्रॉक देखो! पापा कल ही लाए हैं”
उन सबके चेहरे उतर गए थे पर यही चपला चिढ़ कर बोल पड़ी थी,”जा, जा! अकेले अपने कपड़ों को निहारती रहना! हम चारों आपस में कितनी मस्ती करेंगे।”
वो रोती हुई चली आई थी, तभी से उनके बालमन में परिवार की अहमियत बढ़ गई थी।वो सोचते सोचते बेचैन हो गई और चपला को फोन लगा बैठीं,”बस तू जल्दी से आजा, ढे़र सारी बातें करनी हैं।”
आज चपला उनके सामने है, चाय के साथ गप्पें शुरू हुई। वो बताने लगी,”एक दुर्घटना में सब साथ छोड़ गए, उनकी दादी ने उन्हें पढ़ाया लिखाया और भरे पूरे परिवार में विवाह हुआ।”
वो बेचैनी से बोली,”फिर”
“फिर क्या, पति दुनिया छोड़ गए और बच्चे हमें और हम अकेले हो गए। अचानक तेरा पता मिल गया सो चली आई”
वो हैरान थी। वो पहले हमेशा अकेली होने का दंश झेलती रही थी पर आज भरे पूरे परिवार की मुखिया है…और चपला… हमेशा भरे पूरे परिवार में रहने वाली…आज कितनी अकेली है। उन्होनें भावावेश में उसे गले लगा लिया था।
नीरजा कृष्णा
पटना