बिदाई – डाॅ उर्मिला सिन्हा  : Moral Stories in Hindi

   परिस्थितियों का अंधड़ कुछ ऐसा चला कि गौरी का मायके एकप्रकार से छुट ही गया। माता-पिता थे नहीं। भाई विदेश जा बैठा वहीं विवाह कर बच्चों  के साथ रहने  लगा। न कभी आया न बुलाया। राखी बजरी का कोई सवाल ही नहीं। कभी कभार फोन करता और संक्षिप्त वार्तालाप कर फोन रख देता। 

   “यहां हमलोग मजे से  हैं और तुम्हारा सब बढिया”भाई औपचारिकता निभाता। 

    गौरी  कहती, “इंडिया आने का प्रोग्राम बनाओ… मेंने  भाभी और बच्चों को देखा तक नहीं है। “

  “अभी फुरसत कहाँ है “भाई फोन काट देता। 

    जब गांव से  लाल चाचा का फोन आया कि  ,”बिटिया का विवाह है तुम दामादजी और बच्चों के साथ आओ”तब गौरी का मन मयूर नाच उठा। मन में मायके की एक धुंधली सी याद थी। न किसी से आशा न  अपेक्षा। आधे मन से  पति से पूछा, “चाचा ने बुलाया है  हमसब को ,उनकी छोटी बेटी का विवाह है ।”

सुलझे विचारों वाले उच्च पदस्थ पति ने  झट स्वीकृति दे दी, “तुम चली जाओ बच्चों की परीक्षा है और मुझे अभी छुट्टी नहीं मिलेगी।”

   पति ने हवाई टिकट कटवा दिया। गौरी शादी में  नेवते और बेटिऔरी का सामान लेकर चाचा के घर पहुंच गई। 

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 “आ गई  गौरी बेटी… कितने वर्षों बाद देखा… मेहमान और बच्चे।” चाचा चाची गर्मजोशी से मिले ।एकसाथ अनेकों प्रश्न कर  डाले।  अपनापन आवभगत विवाह  की रस्में वर्षो बाद रिश्तेदारों से  मिलना… गौरी को किसी और इंद्रधनुषी दुनिया में ले गया। वह खुशियां बटोरते भावुक हो उठती। 

    हंसी-खुशी विवाह निपट गया। गौरी आज वापस आ रही है। तभी चाची उसके  लिये लाल बनारसी साडी़, दामाद बच्चों के लिए  कपड़े  मिठाई की टोकरी  के साथ  आंचल में अरवा चावल हल्दी दूब  सिंदूर से गौरी का खोईछा भरने लगी। उसके पाँव में आलता लगवाया। 

“बिटिया फिर आना सभी के साथ.. बेटियां मायके से खाली हाथ नहीं जाती।, “

      गौरी मायके  से अपने रेशमी आंचल में  मायके की मधुर स्मृति  आशीष खोईंछे में समेटती  इतनी  सुखद बिदाई पर भरभराकर रो पड़ी। 

   सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना -डाॅ उर्मिला सिन्हा©®

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