जैसे ही वो गांव के पास पहुंचा उसे अचानक लगा कि सुबह हो गई दिन निकल आया है। सामने से उसके ही घर से गांव के लोग एक अर्थी उठाकर ला रहे हैं उसने एक को पूछा भाई ये क्या हो गया कौन गुजर गया। सामने से उसने जोर से हंसकर कहा कि तू मर गया।
शाम ढलते ही जो जगह सुनसान हो जाती थी। भूतों के लिए जानी जाने वाली वो जगह यहां रात सात बजे के बाद भी जाने की हिम्मत न जुटा पाता था गलती से अगर किसी को थोड़ी देर हो जाती तो कांपते शरीर थरथर्राती जुबान से ॐ नमो शिवाय ॐ नमो शिवाय का जाप करते हुए तेज कदमो से बिना पीछे मुड़कर देखते हुए तेज कदमो से भागते थे।
कहानी हिमाचल के एक गांव की है लोग उस समय भूतों प्रेतों में अथाह विश्वास करते थे गांव से थोड़ा दूर एक शिव मंदिर था जिसके आसपास बड़ी बड़ी झाड़ियां थी जिस कारण उसे शिवबाड़ी कहा जाता है। आज भी ये मंदिर लाखों करोड़ों की आस्था का केंद्र है। लोगों का मानना था कि बहां रात को भूत खुलेआम दिखाई देते हैं
इसलिए कोई भी शाम ढलने के बाद उस तरफ नही जाता था जिससे ये जगह और भी सुनसान और डरावनी हो जाती थी। डर का आलम ये था कि हमारी दादी बताती की एक दिन शादी के बाद वो बैसाखी का मेला देखने गई तो थोड़ा देर हो गयी सोचा पास में ही मां का घर है
तो रात बहां काटकर सुबह बापिस घर आ जाउंगी अपने घर मे वो बोलकर ही गयी थी कि अगर देर हो गई तो कल आएंगी बापिस। उस जमाने मे पैदल ही जाना पड़ता था तो डरते डरते सात बजे के आसपास उसने अपनी मां के घर का दरवाजा खटखटाया अंदर से माँ पूछती रही और वो बताती रही कि मैं हु अम्मा। मगर अम्मा अंदर से कभी भभूत फैंकती कभी जलती हुई आग तो कभी पानी। दरअसल उसकी मां को लग रहा था कि बाहर कोई भूत है इस चक्कर मे दादी को पूरी रात घर के बाहर बनी बीहड़ पर लेटकर गुजारनी पड़ी।
खैर कहानी पे आते हैं एक बार की बात है गांव के कुछ अधेड़ पीपल के पेड़ के नीचे ताश खेल रहे थे अचानक से पीपल के पत्तों में कुछ हलचल हुई तो सभी ने चोंक कर ऊपर की तरफ देखा उन्हें कुछ भी दिखाई नही दिया। तभी एक आदमी बोला दोपहर के समय पीपल पर भूत आकर बैठते है कहीं ये कोई भूत तो नही।
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कुछ ने उसका समर्थन किया कुछ कौआ या पक्षी होगा कहकर टाल दिया मगर एक उनमे एक आदमी था जो हमेशा अपनी हिम्मत होंसले की बड़ी बड़ी बातें करता था ये उन्ही में से था जो कहते हैं मैने श्मशान में जलते मुर्दे की आग से जलाकर बीड़ी पी है या जो कहते हैं कि भूत ने भैंसा बनकर मेरा रास्ता रोक लिया और मैने भैंसे को चारों पैरों से उठाकर फैंक दिया और वो भैंस हवा में गायब हो गया बगैरह बगैरह। वो कहने लगा अरे क्या भूत भूत कर रहे हो दिन दोपहर में कितने कायर डरपोक हो दिखाओ कौन सा भूत है मेरे सामने लाओ मैं करता हूँ इलाज इस भूत का।
उसकी बात सुनकर एक आदमी बोला कि ढींगे हांकना बन्द कर अगर सच मे तू इतना दिलेर है तो ठीक है हजार हजार की शर्त लगाते हैं हम एक खास चीज शाम के समय शिव मंदिर में रख देंगे अगर रात को बारह बजे जाकर तू शिवबाड़ी से वो चीज उठाकर लाया तो हजार मैं दूंगा और अगर तू हार गया तो हजार तुझे देना होगा। ये सुनकर बाकी लोगो ने भी सौ दो सौ अपनी अपनी तरफ से इनाम की घोषणा कर दी।
अब एक तो उस गपौडी के लिए इज्जत का सवाल बन गया दूसरा पैसे का लालच भी आ गया तो उसने शर्त लगा ली। अगले दिन शाम को सात बजे सब लोगों के सामने शिवलिंगनुमा एक छोटा पत्थर जिसपर सफेद रंग के तीन कुदरती डोरे बने हुए थे वो मंदिर में रख दिया गया। अब वो गांव के लोग एक घर मे बैठकर उस आदमी के साथ ताश खेलते रहे इससे उनका समय भी निकल गया और उस आदमी का पहरा भी हो गया ताकि वो पहले ही जाकर उस पत्थर को उठाकर न ले आए।
ग्यारह पचास का समय हुआ तो उन्होंने अपनी ताश समेटी और उस आदमी को जाने के लिए कहा । उस आदमी ने अपनी खच्चर ,अपने जुत्तों,अपने कपड़ों को हींग का पानी लगा लिया जिसकी महक से भूत हमला नही करते ऐसा उसका मानना था। और वो तय जगह के लिए निकल पड़ा। दस पन्द्रह मिनट में वो मंदिर पहुंचकर बाहर अपने जूते उतारकर खच्चर को एक तरफ बांधकर मंदिर की सीढ़ियों पर प्रणाम करते हुए ऊपर चला
जाता है। और बहां से वो उस पत्थर को उठाकर जब नीचे आता है तो देखता है कि हर तरफ मशालों की रोशनी है बाजार सजा है कहीं खेल खिलोने तो कहां लंगर बंट रहा है। लोग उसको इशारों में बुलाकर खाना खाने को कहते हैं कोई उसे पत्तल लेकर हलवा पूरी पकड़ा जाता है बो बिना उनसे कोई बात किए चुपचाप इशारे में न न करता क्योंकि उसने बुजुर्गों से सुन रखा था कि भूतों से बात नही करनी चाहिए अगर बात कर ली तो समझो तुम्हे कोई बचा नही सकता। इसलिए उनका दिया खाना अपने परने (तौलिए) में बांध लेता है मगर बात नही करता। जैसे ही वो अपने जूतों की तरफ बढ़ता है तो बहां सैंकड़ो की संख्या में बैसे ही जूते दिखाई देते
हैं मगर हींग की खुशबू से वो अपने जूतों को पहचानता है बैसे ही खच्चरों में से भी अपनी खच्चर को हींग की खुशबू से पहचानकर उसपर बैठकर घर की तरफ निकलता है रास्ते में कई तरह षडयंत्र उसके साथ होते हैं मगर वो हिम्मत करके जैसे कैसे अपने गांव के पास पहुंच जाता है।
अचानक उसे लगता है कि एक दम से दिन चढ़ गया सुबह हो गई और उसके घर से उसके ही गांववाले एक अर्थी उठाकर निकल रहे हैं वो सब लोग जिन्होंने शर्त लगाई वो अर्थी के साथ हैं ये देखकर किसी अनहोनी की आशंका से वो एक दम अपनी सुधबुध खो बैठा और और जैसे ही अर्थी
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उसके पास से गुजरने लगी तो अपने ही गांववालों को देखकर उसने एक से पूछ लिया कि भाई ये कौन मर गया वो आदमी जोर से हंसा और बोला कि तू मर गया इतना कहते ही फिर से पहले जैसा अंधेरा हो जाता है और वो सब लोग गायब हो जाते हैं। गांव पहुंचकर शर्त लगाने वाले के घर मे घूमने से पहले वो अपना तौलिया खोलकर देखता है तो उसमें धूल और हड्डियां मिलते हैं जिन्हें तौलिए सहित वो पीछे की तरफ फैंक देता है।
सामने घर मे उसके सारे दोस्त उसका इंतजार कर रहे होते हैं उसे देखकर हर कोई हैरान और उसकी तारीफ कर रहा था शर्त वाला वो पत्थर गांव वालों को दिखाकर अपने साथ हुई सारी बात बताकर अपनी शर्त के पैसे लेकर वो ठीकठाक अपने घर चला जाता है सोता है मगर रह रहकर उसे वो अर्थी याद आती है।उसके मन बे ये बहम हो गया कि उसने भूतों से बात कर ली है अब उसे कोई बचा नही सकता क्योंकि उसने बुजुर्गों से यही सुना था की भूतों से बात उनकी तीन आवाज से पहले जवाब मतलब सब खत्म मौत पक्की।
ये बहम उसको ऐसा सदमा दे गया कि सुबह होते होते उसे बुखार हो गया बुखार सिर पर चढ़ा तो लोगो को कहने लगा वो मेरी अर्थ जा रही है देखो बो मेला लगा हुआ है ये लंगर नही राख और हड्डियां हैं मतलब वो पागल सा हो गया न कुछ खाता न पिता कुछ खाने को देते तो बही कहता कि ये शमशान की राख और हड्डियां है मैं नही खाउंगा। तीन चार दिन बाद उसकी मौत हो गई। अब मौत सचमुच भूतों की बजह से हुई या उसके अंदर के बहम या डर की बजह से ये आप लोग कमेंट में बताएं।
अमित रत्ता
अम्ब ऊना हिमाचल प्रदेश