प्रकाश जी को बड़ी जोर की भूख लग रही थी… अंदर पोता पोती सभी खाना खा रहे थे…. बहू को कई बार आवाज लगाने के बाद भी वो खाना लेकर नहीं आयी….एक घंटा होने को आया… सुबह से चार बिस्कुट चाय पीये बैठे हैँ खाट पर प्रकाश जी… कई टिक्की वाला, समोसे वाला और भी खाने पीने की ठेल लेकर आदमी गुजर गए सामने से…
उन्हे देख 75 वर्षीय प्रकाश जी की भूख और जोरों से बढ़ गयी… बाकी दिन तो सुबह बच्चों के स्कूल के लिए खाना बनता हैँ तो एक परांठा प्रकाश जी को भी मिल जाता हैँ… पर ये इतवार का दिन तो 1 बजे तक खाना बन पाता हैँ… आज़ तो बच्चों को भी मिल गया पर घर के बूढ़े बच्चे को नहीं मिला…. बेचारे सुबह भोर में ही नहाकर ठाकुर जी को नहलाकर खाने की राह देखते रहते हैँ….
प्रकाश जी पर जब भूख बर्दाश्त ना हुई तो खुद ही खाट से उठे…. रसोई घर में खांसते हुए गए… बहू ने अपना घूंघट बढ़ा लिया…. प्रकाश जी ने हॉटकेस से दो रोटी निकाली…. कूकर से गर्मागर्म चावल निकाला….. कढ़ाई से आलू गोभी की सब्जी … कटोरी में दाल …. समय बहुत लगा उन्हे बर्तन ढूंढ़ने में…. लगे भी क्यूँ ना जब से पत्नी श्री परलोक सिधारी ….
रसोई घर में आना ही बंद हो गया उनका… पूरा दिन बाहर बैठक में रहते… दिन में चारपाई डाल बाहर चबूतरे पर बैठ ज़ाते… फिर शाम को अंदर आ ज़ाते…. बेटा सुबह का दफतर गया रात में ही आता …. उसका भी थका हुआ चेहरा देखने को खाट पर लेटते भी नहीं थे प्रकाश जी कि बिटवा को देख लूँ तभी सोऊँ ….
ऊपर से उनका बिटवा बच्चों के लिए कुछ ना कुछ लाता तो अपने पिता जी को भी एक पीस निकाल कर ज़रूर देकर जाता… चाहे वो एक टोफी ही क्यूँ ना हो… प्रकाश जी बड़े मन से खा बेटे से आराम करने का बोल लेट ज़ाते अपनी खाट पर … पिता को बिना दांतों के टोफी चबाता हुआ
देख बेटे को वो एक बच्चे समान लगते…सही भी तो हैँ बच्चा बूढ़ा एक समान होता हैँ….बहू भी खाना पानी उन्हे खाट पर दे ज़ाती… जब आज भूख उनके बस में ना रही तो खुद ही चले आयें है रसोई घर में ….
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तभी प्रकाश जी कांपते हाथों से अपनी थाल उठा रहे थे कि उनका ध्यान फ्रीज़ की तरफ गया… थाली को स्लिप पर रख उन्होने फ्रीज़ खोला… उसमें दही रखा देख उनकी चीभ मचल गयी… छोटी सी कटोरी ले उन्होने दो चमचा दही डाला …. बहू दही रहता हैँ तो मुझसे मना क्यूँ कर देती हैँ कि पिता जी नहीं हैँ…. ला थोड़ा बूरा डाल दे…. मुझे ना दिख रहा… बहू ने बिना कुछ बोले दो चम्मच बूरा डाल दिया कटोरी में…
इतने से क्या होगा… एक और चम्मच डाल…. भई बिटवा ने मना कर रखा हैँ सर्दी में दही देने को पिता जी को… उन्हे बहुत जल्दी जुकाम जो जकड़ लेता हैँ…. फिर दवाई खाते रहते हैँ पूरे जाड़े प्रकाश जी….
बाहर अपनी थाल लेकर अपनी खाट पर आ गए…. ठाकुर जी को याद कर भोजन शुरू किया उन्होने. .. आज तो बहू छप्पन भोग समान लाग रही रोटी ….. मन प्रसन्न हो गया दही के साथ……
द्वार के पीछे खड़ी बहू मन ही मन सोची….खाना तो रोज सा ही बना हैँ पिता जी पर आज बच्चे ज़िद कर गए खाने की… पैर पटकने लगे तो पहले उन्हे लगा दिया… यह तो भूल ही गयी मैं कि घर में एक और बच्चा हैँ… जो पैर तो नहीं पटकता पर भूख तो उसे भी लगती हैँ…
अगले दिन से लहसुन का छौंक लगा रायता रोज प्रकाश जी को उनकी थाल में दिया जाने लगा…. अब ना तो वो उन्हे नुक्सान करता… वो खुश होकर मूँछे पोंछते हुए अपने दोनों हाथ बहू के सर पर रख देते….. आखिर आत्मा संतृप्त होगी तो आशिर्वाद तो स्वतह ही मिल जायेगा…. अब खाना भी प्रकाश जी को उनके बोलने से पहले ही परोस दिया जाता….
जिस घर के बड़े बूढ़े खुश हैँ उस घर में तो खुशिय़ां चारों तरफ से बरसती हैँ….
मीनाक्षी सिंह की कलम से
आगरा