भेड़ की खाल में भेड़िया – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

अंकल आपको शर्म आनी चाहिये।पापा आप पर कितना विश्वास करते हैं, और आप—-?छी.. मुझे तो आपसे घिन आ रही है।खबरदार जो आप  अब मेरे पास आये ।

        रोहित को चिंता थी,अपनी बड़ी होती बेटी शुभ्रा की।जब तक वह उनके पास रह कर पढ़ रही थी तो वे बेफिक्र थे, पर जब अब वह अपनी उच्च शिक्षा के लिये अपने शहर से बाहर जायेगी तब शुभ्रा की देखभाल कैसे होगी,कौन करेगा। जमाना वैसे ही खराब है।यही चिंता रोहित को खाये जा रही थी।शुभ्रा कहती भी कि पापा अब मैं बड़ी हो गयी हूँ, आप चिंता क्यूँ करते हैं?अपना अच्छा भला तो मैं भी समझती हूँ, पापा आप बिलकुल भी टेंसन ना ले।

पर बाप का दिल कहाँ मानता है?ऐसे ही समय बीत गया,शुभ्रा का एडमिशन दिल्ली हो गया,जहां   उसे छात्रावास में रहना था।रोहित को बहुत बड़ी राहत आज महसूस हुई क्योकि दिल्ली में ही उसका जिगरी दोस्त संदीप भी रहता था।संदीप ने तो यह भी कहा था कि रोहित शुभ्रा बिटिया उनके साथ ही रहकर भी पढ़ सकती है,इतनी बड़ी कोठी है कोई परेशानी नही होगी।रोहित तो इस प्रस्ताव से बहुत खुश हुआ पर शुभ्रा ही नही मानी,उसने छात्रावास में रहने को ही प्राथमिकता दी।

आखिर शुभ्रा का प्रवेश होस्टल में ही करा दिया गया।स्थानीय सरंक्षक के रूप में संदीप का नाम दर्ज करा दिया गया।इससे संदीप सप्ताह में एक दो बार शुभ्रा से मिलने आ सकते थे।शुभ्रा को भी संदीप अंकल के यहां जाने की अनुमति मिल जानी थी।इतने भर से ही रोहित की अपनी बेटी के प्रति चिंता दूर हो गयी।वह निश्चिंत हो गये।

     होस्टल में शुभ्रा को रूममेट शालिनी के रूप मिली।बहुत ही सुंदर मासूम सी शालिनी किसी को भी आकर्षित करने में सक्षम थी।पहले ही दिन से शुभ्रा और शालिनी में आत्मीयता का संबंध बन गया।दोनो में खूब पटती थी,साथ साथ पढ़ना खेलना,हंसी मजाक करना और जब छात्रावास से बाहर जाने की अनुमति होती तो साथ ही घूमने जाना,चाट खाना या फिर पिक्चर देखना अब   उनकी ट्यूनिंग की मिसाल बन चुकी थी।शुभ्रा जब भी संदीप अंकल की कोठी पर जाती तो शालिनी भी साथ ही होती थी।

      एक दिन शालिनी ने शुभ्रा से कहा शुभ्रा एक बात बोलूं? 

      हाँ हाँ बोल न शालिनी क्या बात है?

     पता नही मुझे कहना चाहिये या नही,मुझे नही पता शुभ्रा तुम कैसे रिएक्ट करोगी?

    अरे क्यूँ पहेली बुझा रही है,मैंने कभी क्या तेरी किसी बात का बुरा माना है?बोल ना क्या बात है?

     देख शुभ्रा मुझे गलत मत समझना,पर महिला पुरुष निगाह को अपना छठी इंद्री से खूब अच्छी तरह से समझती है।शुभ्रा ये जो तेरे संदीप अंकल है ना,इनकी नजर मुझे ठीक नही लगती।वे ऐसा देखते है जैसे उनकी नजर अंदर तक झांक रही हो।

     शालिनी कैसी बात कर रही हो,संदीप अंकल मेरे पापा के बचपन के दोस्त हैं।बचपन से मैंने भी उन्हें देखा है।तुम्हे जरूर कोई गलतफहमी हुई है।वे ऐसे नही हैं, शालिनी।तुम ये विचार मन से निकाल दो।

  हो सकता है,शुभ्रा ये सब मेरा बहम हो।

     दोनो की बात यही समाप्त हो गयी।बाद में शुभ्रा के मन मे अवश्य यह आया कि आखिर शालिनी ने ऐसा क्यों महसूस किया?फिर एक झटके से उसने इन विचारों को भी झटका दे दिया।

     अब यह अवश्य हो गया कि शुभ्रा जब संदीप अंकल के घर जाती तो शालिनी वहां जाने को किसी न किसी बहाने से टाल देती।संदीप जरूर शुभ्रा से शालिनी के विषय मे पूछते कि शालिनी क्यों नही आयी?

     एक दिन संदीप अंकल शुभ्रा के कॉलेज में उससे मिलने आये और उन्होंने वार्डन से शुभ्रा और शालिनी को अपने साथ बाहर ले जाने की अनुमति ले ली।शालिनी ने मना भी किया पर शुभ्रा के प्रबल आग्रह के कारण वह भी साथ चली गयी।संदीप अंकल ने दोनो को पिक्चर दिखायी, बाद में वे उन्हें एक रेस्टोरेंट में खाना खिलाने ले गये।रेस्टोरेंट में लाइट कम रखी गयी थी।खाना खाने के बाद शुभ्रा वाशरूम गयी,वहां से वापस आयी तो उसने संदीप अंकल को तेजी से कुर्सी बदलते देखा,शुभ्रा

ने इसे सामान्य ही समझा।कैंडल लाइट में बिल्कुल कुछ स्पष्ट दिखाई भी नही दे सकता था।रेस्टोरेंट से निकलने पर शुभ्रा ने महसूस किया कि शालिनी असामान्य है और तुरंत हॉस्टल वापस जाने को कह रही थी।संदीप अंकल भी चुप चुप से थे।रेस्टोरेंट से बाहर आकर संदीप अंकल अपनी कार लेने पार्किंग में चले गये,उनके जाते ही शुभ्रा ने शालिनी से पूछा शालिनी बता ना क्या बात है,तू एक दम कैसे उदास सी हो गयी है?क्या तबियत ठीक नही है?

   शालिनी फफक पड़ी,बोली शुभ्रा मैंने तुझे पहले ही बताया था कि तेरे इन अंकल की निगाहें ठीक नही है, पर तू नही मानी।तू जैसे ही वाश रूम गयी तेरे ये अंकल मेरे बराबर में आकर मुझे चूमने लगे,मेरे विरोध पर मुझे लालच तक देने लगे,इतने में ही तू आ गयी।

     शुभ्रा सुनकर सन्न रह गयी,कल्पना से परे का घटना क्रम था।संदीप अंकल ने विश्वास के धागे को बुरी तरह तोड़ दिया था।पापा ने कितना विश्वास किया था, संदीप अंकल पर।पर ये क्या निकले।

    शुभ्रा ने निर्णय लेने में देरी नही लगाई, तुरंत रेस्टोरेंट के गार्ड से टैक्सी मंगवाने को बोल दिया।इतने में संदीप अंकल अपनी कार ले आये।उन्हें देखते ही शुभ्रा उन पर बिफर पड़ी।और साफ चेतावनी भी दे दी कि वे अब उसके संरक्षक नही रहे है।

     संदीप अंकल माफी मांगते रह गये, तब तक टैक्सी आ चुकी थी,शुभ्रा ने शालिनी का हाथ कसकर पकड़ा और उसे साथ ले होस्टल वापस आ गयी।

   बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

मौलिक एवं अप्रकाशित

*रिश्तों के बीच विश्वास का एक पतला धागा होता है*

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