भत्ता – संजय अग्रवाल : Moral stories in hindi

अजित और शिखा का तलाक का मुकदमा तीन साल से चल रहा था। आज फैसले का दिन है।
अब ये न पूछियेगा तलाक की नोबत क्यों आई। आजकल अधिकतर शादीशुदा जोड़ो के साथ जो परेशानियां है वही इनके साथ भी थी।

एक तो लवमैरिज, दूसरे परिवार से दूर मेट्रो की आपाधापी जद्दोजहद वाली लाइफ, और सबसे बढ़कर दोनो कमाने वाले। करेला वो भी नीम चढ़ा वाली कहावत पूरी हुई शिखा की ज्यादा सेलरी। रही सही कसर पूरी की दोनो के पेरेंट्स ने।

दिन में कई बार काल करके हिदायतें देना। क्या पहनना, क्या खाना, क्या खरीदना सब। बेचारो का सारा दिन टारगेट के प्रेशर में बीतता, जब घर मे मिलते तो तनाव और पेरेंट्स की वाट्सप पे मिली सीख दिमाग मे मकड़ी के जाल सी छाई होती।
एक साल में ही जिंदगी की हकीकत कड़वाहट के साथ उतरती गयी उनके जीवन मे। रोज का झगड़ा, अबोला, तनाव, नतीजा ये हुआ कि।

शिखा अपने मायके चली गयी फिर वापस न आने को। अजित अकेला रह गया, मम्मी आई कुछ दिनों के लिए तो शिखा पुराण सारा समय चलता रहता उनका। उनकी नजर में शिखा से बुरी कोई लड़की नही इस दुनिया मे।

वहीं शिखा की मम्मी भी ऐसा ही कुछ प्रवचन रोज देती।
समय बीता, केस फ़ाइल हो गया। दोनो ने भरे मन से पेपर्स साइन किये।
किसी ने ये नही सोचा कि एक रिश्ता ही नही टूटेगा, टूटेगी उनकी चाहत, उनकी जिंदगी, उनका प्यार से विश्वास।

आज की जनरेशन कितनी भी प्रेक्टिकल हो गयी हो दिल तो उनके पास भी है। जो मनुष्य की उत्तपत्ति के समय जैसा धड़कता था वैसा ही धड़कता है।
केस में दोनो के वकीलों ने अपने अपने तर्क पेश किए।
अंत मे जज ने दोनों से कहा कुछ कहना है, निर्णय के पहले। शायद टूटा हुआ रिश्ता जुड़ जाए ये लगा उन्हें।
अजित ने कहा, योर ऑनर, शिखा के वकील ने गुजारा भत्ता के लिए हर माह बीस हजार की मांग की है। आप को जानकारी हो कि शिखा मुझसे ज्यादा कमाती है, उसकी पोस्ट मुझसे ऊपर है। और जॉब भी सिक्योर है।

जो घर हमने लिया था उनकी क़िस्त भी मैं पटाता हूं। ऐसे में गुजारा भत्ता मुझे मिलना चाहिए।आज के समय मे तो नारी पुरुष दोनों बराबर हैं।
और अगर आप अनुमति दें तो मैं एक मौका और चाहता हूँ इस रिश्ते को वापस जोड़ने का। बस मेरा एक निवेदन है, हमारे रिश्ते में हम दोनों के पेरेंट्स की दखलंदाजी न हो।
मैं आज भी शिखा को उतना ही चाहता हूं।

पर मुश्किल ये है कि हमारे पेरेंट्स अलग जाति,रीति रिवाज, के कारण हमे दिल से नही अपना पा रहे हैं जिसके कारण वे अपना प्रभुत्व हम पर बनाये रखना चाहते हैं।
अगर हमें अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीने का मौका मिले तो हम अच्छे दामाद और बहू बन कर दिखा सकते हैं। अगर ये बन गए तो अच्छे पति पत्नी तो बन ही जायेंगे।

जज साहब, एक बार तलाक हो गया तो एक अनदेखा दाग नाम, चरित्र, परिवार पर लग ही जाता है। मैं यह बिल्कुल नहीं चाहता, फिर प्यार सब सिखा ही देता है, एक बार और प्रयास करेंगे तो शायद सफल भी हो जाएं।
जज ने मुस्कुरा कर शिखा की ओर देखा। शिखा रो रही थी। उन्होंने आदेश किया, दोनो का केस निरस्त किया जाता है। और दोनो के पेरेंट्स को आदेश दिया जाता है कि दोनो को एक दूसरे को समझते हुए सामंजस्य बनाकर जीने का अवसर दिया जाए।

आप कोई दखलंदाजी न करें। दो साल तक कोर्ट द्वारा नियुक्त कौंसलर को हर माह आखरी सन्डे आप रिपोर्ट करेंगे।
निर्णय सुन दोनो के परिजनों के चेहरे लाल हो गए थे। अजित ने शिखा का हाथ थामा और कोर्ट के बन्द कमरे से खुली हवा में ले आया।
जीवन की नई शुरुआत करने।
संजय अग्रवाल

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