रामबचन और इन्द्रनील दोनों बचपन के मित्र थे। दोनों एक ही स्कूल में पढ़े थे। स्कूल से काँलेज और काॅलेज से अपनी- अपनी नौकरी। रामबचन के चाचा एक शिक्षक थे अतः उसे शिक्षा के मामले में समय-समय पर सलाह मिलती रही। इन्द्रनील का परिवार किसानी करता था। रामबचन प्रशासनिक नौकरी में आ गये और इन्द्रनील बैंक में एक क्लर्क का पद सम्भाले।
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भले ही दोनों मित्र अलग-अलग शहर में रह रहे थे, लेकिन उनकी दोस्ती आज भी तरोताजा थी। दोनों की गृहस्थी शुरू हुई। रामबचन की पत्नी पढ़े-लिखे परिवार से आई।वह ग्रेजुएट थी, लेकिन इन्द्रनील की शादी साधारण परिवार में हुई। पत्नी स्कूली शिक्षा तक ही सीमित थी। दोनों परिवारों के रहन- सहन में काफी अन्तर था, लेकिन रामबचन और इन्द्रनील की दोस्ती में कभी कोई अन्तर नहीं आया। हमेशा दोनों सम्पर्क में रहे। जब कभी भी दोनों किसी काम से भी एक- दूसरे के शहर में जाते थे तो अवश्य मिलते थे। समय गुजरता गया।
इन्द्रनील की तीन बेटियाँ और रामबचन को दो बेटी और एक बेटा नीरज था। रामबचन की दोनों बेटियाँ पिता की इच्छा के विपरीत शादी कर अपना घर बना लिया। रामबचन सबसे ज्यादा अपनी दूसरी बेटी से अहत थे जिसने ड्राइवर के साथ ही भागकर शादी कर ली थी।
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एक दिन रामबचन किसी काम से इन्द्रनील के शहर में आए थे तो इन्द्रनील के घर ही ठहरे। घर में उनकी छोटी बेटी ही थी। दो बेटियों की शादी कर चुके थे। पत्नी गाँव गयी हुई थी। बेटी का नाम भारती था। वह सचमुच भारती ही थी। कुशाग्र बुद्धि, गृह कार्य में दक्ष, संस्कारी और रूपवती लड़की थी। भौतिक शास्त्र से स्नात्कोत्तर कर रही थी। भारती को देखने के बाद रामबचन ने मन-ही-मन निर्णय लिया कि वह भारती को अपनी बहू बनायेगा। घर में विरोध हुआ। बेटा अविवाहित रहने की घोषणा कर चुका था। लाख पूछने पर भी कारण नहीं बताया। रामबचन ने अपनी तरफ से जानने की बहुत कोशिश की, लेकिन असफल रहे।
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एक साल बाद अचानक नीरज शादी के लिए तैयार हो गया और रिश्ता तय हो गया।
इन्द्रनील भी दान- दहेज देने की स्थिति में नहीं थे। अपनी माँ की असाध्य बीमारी और एक बहन और दो बेटियों की शादी कर खोखले हो चुके थे। ————-
शुरू-शुरू में तो भारती सास को फूटी आँख नहीं सुहाती थी, क्योंकि वह छोटी जगह से आई थी और आधुनिकता के अत्यधिक चकाचौंध से परहेज करती थी। लेकिन धीरे-धीरे भारती ने अपनी सास को अपने प्यार से जीत लिया। भारती की पढ़ाई भी पूरी हो गयी और वह एक काँलेज में प्राध्यापक के पद पर नियुक्त हो गयी। दोनों परिवार खुश था।
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अभी शादी के एक साल भी पूरे नहीं हुए थे कि एक रहस्य से पर्दा उठा और सबके होश उड़ गये।
नीरज के एक दोस्त ने बताया कि नीरज दो साल पहले से ही शादी-शुदा है, लेकिन पिछले साल बच्चे को जन्म देते समय ही रोजी जी दुनिया छोड़ गयी। वर्तमान में बच्चा एक अनाथालय में है।
सबके पैरों तले से जमीन खिसक गयी। अब जाकर रामबचन पति-पत्नी को शादी नहीं करने और फिर तैयार होने का राज समझ में आया।
——————-माफी मांगते हुए नीरज सबके सामने हथियार डाल दिया। वह लड़की क्रिश्चियन थी। दो बहनों से आहत माता-पिता को बताने की हिम्मत नहीं हुई।
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काॅलेज में रोजी और नीरज साथ ही पढ़ते थे। कभी आकर्षण था, लेकिन नीरज पहले से ही बहन से दुखी पिता को दुखी करना नहीं चाहता था। दो साल पहले रेलवे के काम से मुम्बई गया था तो अचानक उससे मुलाकात हो गयी। उसके बहुत अनुरोध करने पर उसी के घर ठहरना पड़ा और एक पल की कमजोरी शादी करने को मजबूर कर दिया। परिवार तक बात लाने की सोच ही रहा था कि ये हादसा हो गया।
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भारती खामोशी से सबकुछ सुनती रही। वह बार-बार सभी से माफी मांगे जा रहा था। माता-पिता ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया–
” तुम भारती के गुनाहगार हो। भारती जो निर्णय लेगी हम उसके साथ हैं, लेकिन एक बात याद रखो हम तुम्हें छोड़ सकते हैं,लेकिन भारती को नहीं। हम भारती के पिता बन उसकी दूसरी शादी करायेंगे।”
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भारती शिथिल हो चुकी थी। मुश्किल से लड़खड़ाते कदम से अपने कमरे में गयी। पीछे-पीछे नीरज ने भी जाने की कोशिश की, पर पिता ने रोक दिया। “भारती को एकांत की आवश्यकता है।”
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रात भर सभी जानते रहे। किसी की आँखों में नींद नहीं थी। तड़के सुबह भारती अपना सूटकेस ले कमरे से निकली और सास- ससुर से ये कहकर निकल गयी कि मैं कुछ दिन अकेले रहना चाहती हूँ।किसी को हिम्मत नहीं हुई भारती को रोकने की।हाँ उसके साथ रामबचनजी चल पड़े।
” तुम इन्द्रनील के पास जाना चाहती हो,मैं तुम्हें छोड़ देता हूँ।”
भारती के मना करने पर भी वे माने नहीं और साथ चल पड़े।
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दामाद की हरकत से इन्द्रनील भी बहुत दुखी हुई, लेकिन सभी भारती को समय देना चाहते थे। नीरज हमेशा भारती से बात करने की कोशिश करता रहा, लेकिन भारती उसकी उपेक्षा करती रही।
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मेडिकल के नाम पर छुट्टी ले भारती गयी थी। सास- ससुर हमेशा भारती की खोज- खबर लेते रहते थे। एक महीने बाद अचानक एक नन्हें से बालक को लिए भारती घर वापस आई। आते ही सास ने सवाल किया-
” ये कहाँ से उठाकर ला रही हो बेटा?”
“माँ, इस मासूम का क्या दोष है? परिवार रहते हुए यह अनाथालय में पले।”
तब- तक नीरज को अनाथालय वालों ने फोन कर सबकुछ बता दिया था। शाम को नीरज वापस आया तो भारती से नजरे नहीं मिला पा रहा था।
भारती के प्रति नीरज का दोष इतना था कि वह अपने को विधुर पिता होने की बात बता देता। अब पश्चाताप की आग में झुलस रहा था।
बच्चे को अपनाना भारती के लिए आसान नहीं था। नीरज पछतावे का दर्द झेल रहा था। बूढ़े माता-पिता की बाकी जिन्दगी आँसुओं में निकल जाती। भारती का एक फैसला सबको असहनीय दर्द से मुक्त कर दिया।
रामबचन ने अपनी पत्नी की ओर देखकर सिर्फ इतना ही कह पाए कि- “इन्द्रनील हमें एक अनमोल हीरा दे दिया है। ये बहू नहीं साक्षात इस घर की भाग्य विधाता है। बहू के कर्ज से अगले जन्म भी मुक्त नहीं हो पायेंगे।”
भारती और नीरज के बीच दूरी एक-न-एक दिन वक्त जरूर समाप्त कर देगा।
स्वरचित
#बहू
पुष्पा पाण्डेय
राँची,झारखंड।