Moral stories in hindi : एक बड़े घने जंगल में मैं “बांस”का पेड़ अपने परिवार के साथ एक कोने में रहता था। मैं अपने चारों ओर खड़े अनेको छोटे-बड़े पेड़ ,पौधों को की खूबसूरती को निहारता रहता था और मन ही मन सोचता था कि ईश्वर ने मुझे इतना बदसूरत और निरर्थक क्यों बनाया जहां सभी पेड़ पौधों को मीठे फल, सुंदर सुगन्धित पुष्प एवं सुंदर हरी पत्तियों से सुशोभित किया है वही मेरे लिए कुछ भी नहीं ? मैं मात्र एक डन्डानुमा सीधा-साधा स्वरूप जिस पर फल, फूल एवं पत्तियों का नितान्त अभाव, आखिर ऐसा व्यर्थ और सौन्दर्य विहीन जीवन ईश्वर ने मुझे क्यों दिया ? मैं अपने भाग्य को क्या कहूं, मेरी ओर कभी कोई नजर उठाकर भी नहीं देखता ,यहां तक कि मुझे अपने आसपास के पेड़ पौधे मुंह चढ़ाते महसूस होते थे , पशु- पक्षियों की तो बात जाने दीजिए छोटे-छोटे कीड़े मकोड़े भी मेरे पास आना पसंद नहीं करते क्योंकि न तो मैं उन्हें छांव दे सकता था न आश्रय दे सकता था और न ही भोजन मुहैया करवा सकता था। कभी-कभी अपने भाग्य पर बड़ी कोफ्त होती थी कि आखिर ईश्वर ने इस दुनिया में मुझे भेजा ही क्यों? जब मैं किसी के काम नहीं आ सकता हूं। सच पूछें तो एक उपेक्षित जीवन जीते जीते अपने अस्तित्व को समाप्त कर लेने की इच्छा होने लगती थी परंतु अपने परिवार को देखकर रुक जाता था कि मेरे बाद इनका क्या होगा ।फिर भी मुझे अपने ईश्वर पर अटूट भरोसा भी था। मैं सोचता था कि कभी न कभी वे मेरे ऊपर अपनी दया दृष्टि अवश्य डालेंगे, इसी भरोसे के साथ में अपनी पीड़ा को छुपा कर खुश रहता था ।
एक दिन की बात है जंगल में तेज हवाएं चलने लगी जो धीरे-धीरे विकराल आंधी के रूप में परिवर्तित होने लगी। जंगल के सभी छोटे बड़े पौधे अपने अस्तित्व को बचाने में जी जान लगाए हुए थे। जहां बड़े वृक्ष अपने को गिरने से बचाने में लगे हुए थे वहीं छोटे पौधे स्वयं को जमीदोज़ होने से बचाने में लगे हुए थे। इन सबके बीच मैं भी अपने परिवार के साथ तीव्र हवाओं के थपेड़े खाकर इधर उधर डोल रहा था , मगर मेरे पास तो खोने को कुछ भी नहीं था मेरे पास न तो मीठे फल, न तो सुन्दर फूल और न ही सुन्दर इठलाती पत्तियों का खजाना। तभी बारिश शुरू हो गई ,ऐसा लग रहा था कि यह बारिश अपने साथ सब कुछ बहा कर ले जाएगी अब तो पशु पक्षियों का जीवन भी खतरे में आ गया था, सभी बचने के लिए इधर-उधर आश्रय ढूंढने लगे ,कोई मजबूत पेड़ के नीचे तो कोई पत्तियों के बीच में छुप कर अपना बचाव कर रहा था ,कुछ ने मोटे तने को बचाव का माध्यम बना लिया। मैं भी इस संकट की घड़ी में ईश्वर को याद कर रहा था और मन ही मन में सोच रहा था कि इस विपत्ति के समय मैं भी किसी के काम आ सकूं तो यह मेरी खुशकिस्मत ही होगी ।मैं बाट ही जोहता रहा मगर कोई मेरे निकट भी नहीं आया क्योंकि सब ने मुझे निरर्थक समझ रखा था सच पूछें तो अपनी असमर्थता पर मेरी आंखों में आंसू आ रहे थे।
मैं दुख के अन्धकार में डूबा हुआ था तभी मैंने देखा कि एक छोटा कीड़ा इस पेड़ से उस पेड़ पर जा रहा था और पुनः वापस होकर अगले पेड़ के पास जाता था शायद कोई उसे अपने पास पनाह देने को तैयार नहीं था , मैंने ध्यान से देखा तो वह लकड़ी काटने वाला कीड़ा था, वह जिस वृक्ष पर आश्रय लेता उसे काट काट कर खोखला कर देता अब मेरी समझ में आया कि सभी वृक्ष उसे पनाह क्यों नहीं दे रहा थे। तभी मैंने देखा कि वह छोटा सा कीड़ा धीरे-धीरे मेरी तरफ आ रहा था सच मानिए कि उसे आते देखकर मैं खुशी से झूम उठा।मैने बिना अपने अंजाम की परवाह किए हुए अपने शरीर पर उस नन्हें कीड़े को आश्रय दे दिया। किसी के काम आने की सुखद अहसास से मुझे परम आनंद की अनुभूति हो रही थी। बारिश थमने का नाम ही नहीं ले रही थी पूरे जंगल में पानी भर चुका था इस अवधि में जिसने स्वयं को बचा लिया वह तो अगली सुबह का सूरज देख पाएगा शेष का अस्तित्व मिट्टी में मिल जाना निश्चित था।
अचानक मुझे तीव्र पीड़ा का अनुभव हुआ, ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कोई मुझे चाकू से काट रहा था इसके साथ ही कट कट की आवाज भी आ रही थी, मैं समझ गया कि आगंतुक ने अपना काम शुरू कर दिया , मगर इसमें उसका क्या कसूर था, उसकी तो नियत ही यही थी ,यह सोचकर मैं अपनी पीड़ा को सहन करता रहा क्योंकि मैंने उससे पनाह दिया था । रात भर वो मेरे शरीर को काटता रहा और मैं दर्द से व्याकुल होने पर भी सारा दर्द समेटे हुए बिना हिले डुले सीधा खड़ा रहा, यह सोचकर कहीं वह कीड़ा गिर ना जाए । पीड़ा इतनी थी कि मैं धीरे धीरे अचेत होता चला गया।
सुबह हो चुकी थी मैंने आंखें खोली तो देखा आंधी थम चुकी थी बारिश रुक गई थी, जंगल में बारिश का जल पृथ्वी के गर्भ में समा चुका था, चिड़ियों ने चहचहाना शुरू कर दिया था । सम्भवतः सभी जीव जंतु अपने स्थाई आश्रय में जा चुके थे । मेरी पीड़ा भी कम हो गई थी। मैंने देखा मेरे ऊपर आश्रय लेने वाला कीड़ा भी जा चुका था परन्तु मेरे शरीर पर अपने निशान के रूप में कई छेद बनाकर । उस दिन मुझे अपने जीवन की सार्थकता दिखाई पड़ने लगी थी । ठंडी हवाओं ने प्रकृति को और भी सुंदर बना दिया था मगर आश्चर्य इस बात का था कि जब हवाएं मेरे शरीर से टकराती थी तो मेरे अन्दर से एक मधुर स्वर लहरी पूरे जंगल में गुन्जायमान रही थी, मैंने देखा कि जंगल के सारे पेड़ पौधे मेरी ओर आश्चर्य से देख रहे थे। वो सभी मेरे अंदर इस अचानक आये हुए परिवर्तन को देख कर आवाक थे। मैने महसूस किया कि ज्यों ज्यों हवा में तीव्रता बढ़ती थी मेरे हृदयतल से मधुर स्वर लहरियां जंगल में प्रवाहित हो रही थी। सबसे अधिक सुख की बात थी कि जंगल के जीव जंतु उन कर्णप्रिय स्वरों को सुनकर मेरी ओर खिचे चले आ रहे थे। मैं समझ गया था कि ईश्वर ने मेरी सुन ली यद्यपि मुझे असीम दर्द सहना पड़ा फिर भी उस छोटे से कीड़े ने मुझे निकृष्ट से विशिष्ट बना दिया। मैं बांस से बांसुरी में बदल चुका था। मैं उस छोटे कीड़े का सदैव आभारी रहूंगा जिसने मुझे थोड़ा सा दर्द देकर मेरे अस्तित्व में चार चांद लगा दिए । शायद ईश्वर ने ही उसे मेरे पास भेजा हो, मेरा ईश्वर पर भरोसा और भी सुदृढ हो गया ।
सारांश है कि इस संसार में ईश्वर प्रदत्त कण कण की उपयोगिता एवं सार्थकता है कुछ भी व्यर्थ नहीं है प्रत्येक जीवन का कुछ ना कुछ महत्व एवं उद्देश्य अवश्य होता है ,बस आवश्यकता है उसे पहचान कर उसे हासिल करने में मिलने वाले दर्द एवं संघर्ष को सहने की ताकत और साहस का मौजूद होना ,साथ ही आवश्यक है ईश्वर पर सदैव अटूट विश्वास एवं भरोसा बना रहना। इसी भरोसे के कारण ईश्वर ने मुझे बांस से बांसुरी बनाकर अपने होंठों पर सजाया ।आज भी मैं संगीत महफिलों की शोभा हूं,
इतना प्यार और सम्मान पाकर मैं गौरवान्वित हूं।
लेखिका
श्रीमती सुषमा मिश्रा
सेवानिवृत्त प्रधानाचार्या
राजकीय बालिका विद्यालय लखनऊ