भरोसा – मनप्रीत मखीजा

दीदी , ये रुपए आप अपने पास ही रख लो।”

मधु की गृह सहायिका ने मधु द्वारा दी जा रही पगार के साथ कुछ मुड़े तुड़े नोट मिलाकर  पुनः मधु की तरफ बढ़ाते हुए कहा। 

“क्यों बबली! तुझे रुपए की जरूरत ना है क्या इस बार!” 

“दीदी, रुपयों की जरूरत तो कुबेर और लक्ष्मी जी को छोड़कर सभी को है। बात ये है दीदी, कुछ महीनों बाद हमारी मुन्नी (बेटी) अठारह साल की पूरी हो जाएगी..”

“ह्म्म्म….तो तू उसकी शादी के लिए पैसे जोड़ना चाहती है।” मधु ने सहायिका की बात को बीच मे ही टोकते हुए कहा।




“नही नही दीदी…, हम अभी उसकी शादी नही करेंगे। ये पैसे तो हम इसलिए जोड़ना चाहते है ताकि उसका दाख़िला एक अच्छे से कालेज ( कॉलेज) में करवा सके। पढ़ने में बहुत होशियार है हमारी मुन्नी। स्कूल तो सरकारी मिल गया था और छात्रवृति की भी पूरी उम्मीद है, लेकिन कालेज में तो बहुत खर्चा होगा, थोड़ा थोड़ा करके

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आपके पास जोड़ देंगे तो ट्यूशन किताबों की मदद निकल जायेगी। अपने बाप पर तो ना है उसे लेकिन मुन्नी जब भी हमारी तरफ देखती है तो उसकी आँखों मे एक विश्वास की लौ दिखती है हमें, कि हम उसका सपना टूटने नही देंगे। ” 

मधु का ह्रदय भीग गया। कड़ी मेहनत के बाद कईं घरों का काम करके जो रुपए सहायिका को मिलते , उन्हें वह कितनी आसानी से मधु पर भरोसा करके जोड़ने को दे रही। सहायिका ने मधु के हाथ मे अपनी बेटी मुन्नी के सपनों की उम्मीद के साथ अपना मासूम भरोसा भी रख दिया। 

मधु ने जाकर अपने घर के मंदिर में रखे केबिनेट के दराज़ में वो रुपये सम्भाल दिए और माँ सरस्वती व माँ लक्ष्मी की तस्वीर के आगे हाथ जोड़ खड़ी हो गई । मधु को भी भरोसा है माँ को अपने बच्चे की फ़िक्र रहेगी और वो ही सब व्यवस्था करेगी। 

 

स्वरचित व अप्रकाशित

मनप्रीत मखीजा

गुजरात

16 दिसम्बर 2022

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