भाग्यहीन – डाॅक्टर संजु झा : Moral Stories in Hindi

माता-पिता की दुलारी,सास-ससुर की प्यारी और दो बेटों की माँ सुमन मात्र 35 वर्ष की उम्र में भगवान को प्यारी हो गई। किसी ने सोचा भी न था कि इतनी खुबसूरत  और बड़े घर की बेटी होने के बावजूद   सुमन का भाग्य विधाता ने इतना खराब लिख दिया था।

 नाम  अनुसार ही बचपन में सुमन का  चेहरा फूलों-सा खिला-खिला रहता था।जैसे-जैसे सुमन बड़ी हो रही थी,वैसे-वैसे उसका चेहरा कमल-सा खिलता जा रहा था।गोरा रंग,काले घुँघराले बाल,सुतवा नाक,मृगनयनी आँखें ,बाल-सुलभ चपलताएँ उसकी सुन्दरता में चार चाँद लगाते।सुमन अपने माता-पिता की सबसे छोटी संतान थी।उससे बड़े तीन भाई थे।सुमन घर में सबकी लाडली थी।सुमन की माँ बेटी की बलैया लेती हमेशा अपने पति से कहती -“देखो!

 मेरी बेटी बहुत भाग्यशाली है।इसके तीन बड़े भाई हैं।माता-पिता हैं।घर में किसी चीज की कमी नहीं है।मेरी बेटी रानी है!”

सुमन के पिता भी पत्नी की बातों पर हामी भरते हुए कहतें -” हाँ!भाग्यवान, मैं अपनी रानी बेटी के लिए राजकुमार खोजकर लाऊँगा,जो इसे पलकों पर बिठाकर रखेगा।”

सुमन हिरणी की भाँति कुलाँचे  भरती  रहती।उसका उछलना-कूदना,मीठी-मीठी बातें करना घर में सभी को मुग्ध कर देते।समय के साथ सुमन स्कूल जाने लगी।सुमन पढ़ाई में भी होशियार थी,इस कारण अपनी मीठी बोली और मासूमियत से स्कूल में भी सबकी चहेती बन गई  थी।

कुछ दिनों से सुमन की माँ की तबीयत ठीक नहीं रहती थी।शहर में जाकर इलाज से भी कोई फायदा नहीं हो रहा था।डॉक्टर उसकी बीमारी समझ नहीं पा रहे थे।सुमन उस समय मात्र दस साल की थी।जबसे माँ की तबीयत खराब हुई थी,सुमन ने बाहर खेलने जाना बंद कर दिया था।माँ उसे पुचकारते हुए  कहती -” बेटी!मैं ठीक हूँ।तुम कुछ देर बाहर जाकर खेल आओ।”

माँ की बातों का जबाव देते हुए  सुमन कहती -” माँ!तुम जल्दी से ठीक हो जाओ,फिर मैं खूब खेलूँगी।”

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विधाता के लेख को आजतक कौन समझ पाया है?जबतक डॉक्टर सुमन की माँ की बीमारी समझ पाते,उससे पहले ही उसकी माँ रात में सोए-सोए चल बसी।माँ की मौत से सुमन को गहरा सदमा लगा था ।माँ के गुजरते

 ही सुमन भाग्यहीन हो गई। सुमन को समझ में आ गया  था कि उसकी माँ सदा के लिए  उसको छोड़कर जा चुकी है। उसकी चंचलता सदा के लिए  गायब हो चुकी थी।घर में भाभियाँ अपने बच्चों में व्यस्त रहतीं।उसके पिता गाँव के संपन्न किसान थे।खेत से आते ही  उदास बेटी को कलेजे से लगा लेते।उसके पिता जिद्द करते हुए कहते -” सुमन!बेटा,थोड़ी देर सहेलियों के साथ खेलकर आ जाया करो।”

पिता का कहना मानकर सुमन थोड़ी देर के लिए सहेलियों के पास जाती अवश्य, परन्तु जल्दी ही आकर पिता का हाथ पकड़कर बैठ जाती।उसके बाल-मन में भय पैठ गया था कि कहीं पिता भी उसे छोड़कर न चले जाएँ!

सुमन अपने पिता से पूछती -” पिताजी!माँ मुझे छोड़कर क्यों चली गई?कहीं आप तो भी मुझे छोड़कर नहीं जाओगे?”

पिता सुमन को  बाँहों में भरकर कहते -“नहीं बेटा!मैं तुझे दुल्हन  बनाए  वगैर कहीं नहीं जाऊँगा।”

पिता और भाईयों के प्यार के बावजूद सुमन अपनी माँ को नहीं भूल पाई रही थी।स्कूल में अव्वल आनेवाली सुमन पढ़ाई में पिछड़ने लगी।हमेशा गुमसुम बनी रहती थी।”माँ मुझे छोड़कर क्यों चली गई?”यही सवाल बार-बार  उसके मस्तिष्क में घूमा करते।

सुमन की मनःस्थिति से वाकिफ  उसके स्कूल के शिक्षक एक दिन उसके पिता से मिलने आएँ।उन्होंने सुमन के पिता और परिवार वालों से कहा -” आपलोग सुमन का खास ख्याल रखिए,क्योंकि मासूम सुमन को माँ की मौत का गहरा सदमा लगा है,वह अंदर से टूट चुकी है।आपका प्यार  ही उसे सम्भाल सकता है!”

सुमन के परिवार वाले उसका खास ख्याल रखने लगें,परन्तु कोई खास फायदा न हुआ। खामोशी की चादर में खुद को लपेटे हुए सुमन ने द्वितीय श्रेणी में इंटरमीडिएट पास कर लिया।उसका पढ़ने में बिल्कुल मन नहीं लगता था।

सुमन के पिता ने सोचा -“अब सुमन  की शादी ही कर देनी चाहिए। क्या पता शादी के बाद  वह खुश रहने लगे?”

सुमन के पिता ने सुमन के लिए एक बहुत अच्छे खानदान का लड़का खोजा।लड़का सूरज चार भाईयों में सबसे बड़ा था।सूरज देखने में बहुत खुबसूरत, स्मार्ट और सरकारी नौकरी में ऑफिसर था।

शादी के दिन सुमन आसमां से उतरी हुई परी लग रही थी।विदाई के समय सुमन पिता और परिवार से गले लगकर खूब रोई।परिवार ने भी बिन माँ की बेटी को नम आँखों से ससुराल  विदा कर दिया।ससुराल में सुमन का भरा-पूरा परिवार था। उसके पति सूरज  की माँ बचपन में ही मर गई थी।यहाँ भी सुमन के भाग्य ने पीछा नहीं छोड़ा।सास और तीनों देवर सौतेले थे।गनीमत थी कि घर में ससुर का शासन था,इस कारण सास और देवर उसे बहुत प्यार  और सम्मान करते।

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सुमन पति का प्यार  पाकर  धीरे-धीरे मुस्कराने लगी।ससुराल वालों से भी वह घुलने-मिलने लगी।शादी के बाद सूरज सुमन को अपने पास ले जाना चाहता था।उसके माता -पिता ने कहा -” बेटा!कुछ दिनों तक बहू को हमारे पास गाँव में रहने दो।वहू भी हमारे रीति-रिवाज समझेगी।”

सूरज बात मानकर नौकरी पर चला गया।सुमन को ससुराल में अच्छा लगने लगा।कुछ ही दिनों में सुमन ने माँ बनने की खुशखबरी सुनाई। सुमन की तबीयत खराब रहने लगी।खुशखबरी सुनकर सुमन का भाई उसे लिवाने आया,परन्तु उसके ससुर ने प्यार से मना करते हुए  कहा -“बेटा! हम बहू का ख्याल  अच्छी तरह रखेंगे।यहाँ से अस्पताल भी बहुत  दूर नहीं है,इस कारण प्रसव के बाद इसे ले जाना।”

सुमन के भाई ने भी महसूस किया कि यहाँ सुमन काफी खुश है,इस कारण  वापस लौट गया।

कुछ समय बाद  सुमन ने एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया।सुमन की सास बहू और पोते की खूब देखभाल करतीं।उसे एहसास नहीं होता कि उसकी सास सौतेली हैं।माँ बनने के बाद खुबसूरत सुमन का चेहरा मातृत्व की दमक से और चमकने लगा।अब सुमन बच्चे के साथ ससुराल में खुश रहने लगी।सुमन के मायकेवाले भी उसे सुखी  देखकर खुश थे।

छः महीने बाद  सूरज अपनी पत्नी और बेटे को अपने पास  ले आया।सुमन ने तो न ही मायके में कोई काम किया था और न ही ससुराल में ही।यहाँ आकर उसकी जिन्दगी अस्त-व्यस्त हो गई। मेड तो बस झाड़ू-पोंछा करके चली जाती थी।सुमन दिन भर अकेले बच्चे और घर को ढ़ंग से सँभाल नहीं पा रही थी।साथ न रहने के कारण सुमन अब तक पति के स्वभाव को नहीं समझ पाई थी।यहाँ आकर उसे समझ में आ रहा था

कि उसका पति सूरज बहुत  ही घमंडी और जिद्दी था।घर में प्रत्येक काम उसके मन के अनुसार हों तथा घर में सभी चीजें सुव्यवस्थित और सुसज्जित रहें,यही वह चाहता था।सूरज खुद कोई काम नहीं करता था।एक दिन  सूरज ने दफ्तर से आकर पत्नी पर चिल्लाते हुए कहा -” मुझे न तो इस तरह अस्त-व्यस्त घर पसंद है और न ही तुम्हारा गँवारों की तरह रहना।”

गाँव की भोली-भाली सुमन पूरी कोशिश करती कि सबकुछ सुव्यवस्थित ढ़ंग से रहे।एक दिन सुमन ने बेटे को सुलाकर सभी कमरों के चादर बदल डालें।शाम में बच्चे के साथ खुद भी अच्छी तरह तैयार होकर शाम में सूरज का इंतजार करने लगी।घर में घुसते ही पत्नी पर नजर पड़ते ही सूरज ने उसे कहा -“ये क्या देहाती जैसी साड़ी पहनी हो? तुम्हारे मायके वालों ने देहाती समान के साथ देहातन बेटी भी दे दी है।”

पति की बातों से सुमन के मन का उमंग साबुन के झाग की भाँति तुरंत बैठ गया।वह चुपचाप पति के लिए चाय बनाने लगी।उसी समय सूरज गुस्से से कमरे से निकलकर सुमन को चटा-चट थप्पड़ मारने लगा।सुमन समझ नहीं पा रही थी कि उससे क्या गलती हुई है?सूरज ने उसपर चिल्लाते हुए कहना शुरू किया -“तुम्हें किसी बात का सलीका नहीं आता है।जाकर देखों!सभी चादरों का कोना ठीक से दबा हुआ नहीं है।बाहर निकल रहा है!”

सुमन में प्रतिकार की हिम्मत नहीं थी,वह चुपचाप खून के घूँट पीती रहती।एक बार जब सुमन पर सूरज का हाथ उठ गया,उसके बाद तो छोटी-छोटी बातों पर हाथ उठाने लगा।

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कुछ समय बाद सुमन ने दूसरे बेटे को जन्म दिया।प्रसव के समय सुमन की भाभी आई थी।सुमन के प्रति सूरज का दुर्व्यवहार देखकर उसकी भाभी भी दुखी थी।सूरज अपने घमंड के कारण  न तो अपने परिवार वालों का ,न ही अपनी ससुराल वालों की इज्जत करता था।एक महीने रहने के बाद सुमन की भाभी चली गईं।भाई-भाभी के जाने के समय सुमन फूट-फूटकर रोई।उस समय उसके भाई-भाभी को एहसास हो गया

कि सुमन का ब्याह गलत आदमी से हो गया है।भोली-भाली सुमन सहमकर अपना जीवन व्यतीत करने लगी।सूरज उसे किसी बाहरी से  भी बात नहीं करने देता था। सुमन अपनी व्यथा दिल में ही समेटे घूँट-घूँटकर जीने को मजबूर थी।उसके चेहरे की मुस्कराहट  सदा के लिए  गुम हो गई  थी।कुछ दिनों के लिए  सुमन का देवर उसके पास  आया था।सूरज  ने अपने छोटे भाई  के सामने ही छोटी बात  पर उसपर हाथ उठा दिया था।

पता चलने पर सूरज के माता-पिता ने आकर उसे काफी समझाने की कोशिश  की,परन्तु सूरज घमंड  में इतना चूर था कि किसी की नहीं सुनता था।बेटी की दुर्दशा सुनकर सुमन के पिता ने भी आकर दामाद को समझाने की कोशिश  की,परन्तु सूरज तो चिकने घड़े के समान  था,उसपर  किसी की बात का कोई  असर नहीं होता था।सूरज ने  उल्टा ससुर पर भड़कते हुए  कहा -” एक तो  अपनी गँवार बेटी मेरे पल्ले बाँध दिया।

उसे कोई सलीका नहीं सिखाया।अपनी बेटी से बहुत  प्यार है तो अपने साथ ले जाईए।”सुमन के पिता तो खुद बूढ़े हो चले थे,सुमन और दो बच्चों को लेकर  कैसे जाते?  बेबस बेटी के बाप की मजबूरी कोई बेबस पिता ही समझ सकता है।सुमन कुछ खास पढ़ी-लिखी भी नहीं थी,तो आर्थिक  मजबूरी भी उसके साथ थी।आम माता-पिता की तरह बेटी के अच्छे दिनों की कामना करते हुए सुमन के पिता उसे भाग्य भरोसे छोड़कर चले गए। 

भाग्यहीन सुमन के लिए समय का कुचक्र  जारी था। समय के साथ सुमन का बड़ा बेटा पन्द्रह साल का हो चुका था,घर के गंदे माहौल के कारण वह भी पिता की तरह उद्दंड हो गया था।पिता को देखकर वह भी माँ के साथ बदतमीजी करता था।छोटा बेटा पिता के डर से खामोश-सा हो गया था।दिनोंदिन सुमन की जिन्दगी जानवरों से भी बदतर होती जा रही थी।अब सुमन की आँखों से नींद गायब हो चुकी थी।वह कई-कई रातें जागकर बिता देती।एक रात बेचैनी में सुमन ने सूरज की शराब की बोतल से गिलास में शराब निकाल ली और गट-गटकर  उसे पी गई। पहली बार उसे शराब बहुत कड़वी लगी।उसने मन-ही-मन सोचा -” बस आज भर पी ली है,अब कल से उसे हाथ नहीं लगाऊँगी।”

उस रात सुमन को अच्छी नींद आ गई। नींद आने से अगले दिन सुमन को अच्छा महसूस हुआ। अगले दिन से  सूरज के सो जाने के बाद सुमन रोज शराब  पीने लगी।शराब निकालने के बाद उसमें पानी डाल देती,जिससे सूरज को नहीं पता चल सके।परन्तु सच्चाई सूरज से कबतक छिपती,आखिरकार सूरज को पता चल ही गया।एक दिन उसने चिल्लाते हुए कहा -” सुमन!तुमने बोतल से शराब  निकाली है?”

सुमन ने भी उतनी जोर से ही चिल्लाते हुए कहा-“हाँ निकाली है।क्या कर लोगे।मारोगे ही न,तो मारो मुझे।”

अब सुमन के मन में सूरज का भय जाता रहा।सूरज भी अपनी आदतों से बाज नहीं आया।सुमन अब बिना खाए-पिए दिनरात शराब  के नशे में रहती।घर में शराब न रहने पर बड़े बेटे से शराब मँगवाई,जिसके कारण उसका बड़ा बेटा भी गलत आदतों का शिकार  हो गया।छोटा बेटा भी कुंठित सा रहने लगा।अत्यधिक शराब पीने से सुमन की तबीयत खराब  रहने लगी।सूरज उसके प्रति बिल्कुल बेपरवाह-सा हो गया था।

एक दिन घर में ही सुमन की तबीयत बहुत खराब  हो गई। पुलिस  और लोक-लाज के भय से सूरज ने उसे अस्पताल में भर्ती करवा दिया।सुमन की हालत देखकर डॉक्टर ने सूरज से कहा -” अब इस बेजान को लेकर क्यों आएँ हो?इसमें कुछ नहीं बचा है।घर ले जाओ,बस!चन्द दिनों की ही मेहमान है!”

बेटी के गम में घुलते-घुलते सुमन के पिता तो परलोक सिधार  गए  थे।खबर सुनकर  उसके भाई-भाभी मिलने आएँ।सुमन की हालत देखकर उनका हृदय विदीर्ण हो उठा।सुमन ने आँखें खोलकर भाई-भाभी का हाथ पकड़कर कहा -“भाभी!मैं बहुत ही अभागन भाग्यहीन हूँ।मैं जिन्दगी में न तो कभी खुश रह पाई,न किसी को खुश रख पाई?”

सुमन के भाई  ने उसके सिर को सहलाते हुए  कहा -” पगली!तू तो बहुत भाग्यशाली थी,भाग्यहीन वे लोग हैं,जो तुम्हारी अहमियत नहीं समझ सकें।तुम्हारे पति को इसकी सजा अवश्य मिलेगी।”

भाई-भाभी के गले से लिपटकर सुमन ने जिन्दगी की आखिरी हिचकी ली।मात्र 35 वर्ष  की उम्र  में उसका निधन हो गया।

समाप्त।

लेखिका-डाॅक्टर संजु झा।(स्वरचित)

उपरोक्त कहानी समाज में घटित सच्ची घटना पर आधारित है।

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