भगवान की लाठी में आवाज नहीं होती – रंजीता पाण्डेय : Moral Stories in Hindi

गीता मायके आई थी। उसका चेहरा मुरझाया हुआ था, आँखों में उदासी और चिंता की गहरी लकीरें खिंची हुई थीं। गीता की माँ, जो अपनी बेटी के स्वागत में पूरे मनोयोग से लगी हुई थी, उसकी ऐसी हालत देखकर घबरा गई। “आओ बेटा, बैठो। कैसी हो? घर में सब कैसे हैं?” माँ ने गीता को प्यार से पास बिठाते हुए पूछा। गीता ने धीरे से मुस्कुराने की कोशिश की और कहा, “ठीक ही हूँ, माँ।” लेकिन उसकी आवाज़ में दर्द छुपा हुआ था। माँ ने उसकी आँखों में छुपी पीड़ा को भांप लिया, लेकिन गीता बात को टालते हुए अंदर चली गई और आँसुओं में डूब गई।

कुछ समय बाद, जब गीता कपड़े बदलने के लिए कमरे में गई तो उसकी पीठ पर पड़े चोट के गहरे निशान देख उसकी माँ का दिल तड़प उठा। वह जोर से चिल्लाई, “गीता! तेरे ससुराल वालों ने तुझ पर हाथ उठाया है क्या? बता बेटी, मैं उन्हें छोड़ूंगी नहीं। उनकी गलती माफ नहीं करूंगी।” गुस्से में उबलती हुई माँ की आवाज सुनकर गीता के पिता भी कमरे में आ गए। उनकी आँखों में आँसू थे, लेकिन उन्होंने अपनी पत्नी को शांत करते हुए कहा, “श्रीमती जी, पहले गीता के घाव पर मरहम लगाइए, फिर जो करना है करिएगा।”

गीता चुपचाप सब सुन रही थी। उसकी आँखों में दर्द था, पर वह अपनी तकलीफ के बारे में बात नहीं करना चाहती थी। माँ ने उसे अपने पास बिठाकर उसके घावों पर मरहम लगाया और प्यार से पूछा, “बता बेटा, आखिर क्या हुआ? तेरे साथ ये सब क्यों हो रहा है?” गीता ने कुछ देर तक चुप्पी साधे रखी, फिर धीरे-धीरे अपनी दर्दभरी कहानी कहने लगी।

“माँ, आप जानती हैं कि शादी के बाद से मेरे ससुराल में माहौल कैसा रहा है। मेरे सास-ससुर को हमेशा लड़के की चाह थी, लेकिन मेरे पहले ही बेटी हो गई। इस बात को लेकर उन्होंने मुझे कभी माफ नहीं किया। सासू माँ रोज ताने मारती हैं, और पति… वह भी अपनी माँ के कहने में रहता है। जब भी मैं कुछ कहती हूँ, वह मुझ पर हाथ उठाने से भी नहीं चूकता।”

गीता की बात सुनकर उसकी माँ के दिल में गुस्से का तूफान उमड़ पड़ा। “ऐसा कैसे हो सकता है? तुम्हारे ससुराल वालों ने हद कर दी। मैं उन्हें सबक सिखाए बिना नहीं छोड़ूंगी।” माँ के स्वर में आक्रोश और पीड़ा थी। लेकिन गीता के पापा ने शांत रहते हुए कहा, “पहले हम अपनी गलती को समझें, फिर किसी और को दोष दें।”

गीता की माँ ने हैरानी से पूछा, “हमारी क्या गलती है? हमने तो अपनी बेटी को अच्छे से ससुराल भेजा था।” इस पर गीता के पापा ने भारी मन से कहा, “हमने अपनी बहू को कितनी बार सताया? छोटी-छोटी बातों पर ताने मारे, जब वह मायके से कुछ लेकर नहीं आई, तो उसे ताने दिए। बदले में भगवान ने हमारी दोनों बेटियों के लिए भी वही भाग्य लिखा। अब समय आ गया है कि हम अपने घर को ठीक करें और दूसरों को भी यह सिखाएं कि बहू भी बेटी होती है।”

गीता की माँ को अपने पति की बात समझ में आई। वह अपनी बहू के प्रति किए गए बर्ताव को याद करने लगीं। शादी के बाद से ही उन्होंने अपनी बहू को कई बार ताने मारे थे। कभी उसकी रसोई में बनी रोटी पतली क्यों है, कभी घर के काम में कमी क्यों रह गई—हर बात पर उसे टोकती रहीं। आज जब उनकी अपनी बेटी तकलीफ में है, तो उन्हें यह एहसास हुआ कि बहू के साथ उनका व्यवहार भी अनुचित था।

“मैंने सच में गलत किया,” गीता की माँ ने आँसू पोछते हुए कहा। “मुझे अपनी बहू के साथ वैसा नहीं करना चाहिए था। लेकिन अब मैं अपनी बेटी के लिए न्याय चाहती हूँ।” इस पर गीता के पिता ने कहा, “हमें पहले अपनी गलती को सुधारना होगा। बहू को बेटी समझकर उसे सम्मान और प्यार देना होगा। तभी हम अपनी बेटी के लिए कुछ कर सकते हैं।”

गीता की माँ ने अपनी बहू को पास बुलाया और उसे गले लगाते हुए माफी मांगी। बहू की आँखों में आँसू थे, पर उसने सास की माफी को स्वीकार कर लिया। गीता यह देखकर थोड़ी राहत महसूस कर रही थी। उसे उम्मीद थी कि अब उसके ससुराल में भी कुछ बदल सकता है।

फिर गीता के माता-पिता ने ससुरालवालों से बात करने का निश्चय किया। वे ससुराल गए और गीता के सास-ससुर से मिले। पहले तो गीता के ससुरालवालों ने अपनी गलती मानने से इनकार कर दिया। वे यही कहते रहे कि गीता ने परिवार की परंपराओं का पालन नहीं किया, इसलिए उसे सजा मिली। लेकिन जब गीता के पापा ने उन्हें शांतिपूर्ण तरीके से समझाया कि हर इंसान की गरिमा होती है, हर रिश्ते में सम्मान जरूरी है, तब धीरे-धीरे वे भी अपनी गलती समझने लगे।

गीता के ससुरालवालों ने वादा किया कि वे गीता को आगे से किसी भी तरह का कष्ट नहीं देंगे। गीता के पति ने भी अपनी गलती मानी और अपनी पत्नी से माफी मांगी। गीता को लगा कि शायद उसकी तकलीफों का अंत अब शुरू हो गया है।

इस पूरी घटना ने गीता के परिवार और ससुरालवालों को बहुत कुछ सिखाया। यह एहसास हुआ कि बहू भी बेटी होती है, और उसे भी वही सम्मान और प्यार मिलना चाहिए जो एक बेटी को मिलता है। परिवार की एकता और सुख-शांति तभी संभव है जब सभी एक-दूसरे का आदर करें और प्यार से रहें।

गीता के माँ-पापा ने घर लौटते समय एक-दूसरे से कहा, “भगवान की लाठी में आवाज नहीं होती। हमें जो भी मिला, वह हमारे कर्मों का फल है। अब हमें अपने कर्म सुधारने होंगे, ताकि भविष्य में हमारे बच्चों के जीवन में सुख-शांति बनी रहे।”

रंजीता पाण्डेय 

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